निपटें निवेश की अव्यवस्थ्तता से

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 12:16 AM IST

पंद्रह महीनों की बुरी खबरों के बाद पिछले एक महीने से विश्व भर के शेयर बाजारों में थोड़ा सुधार देखने को मिला है।
कारोबारी और निवेशक दोनों में ही यह भरोसा जगा है कि कुल मिला कर हालात अब उतने बुरे नहीं हैं। आंकड़े खुद ही बोलते हैं। बंबई स्टॉक एक्सचेंज का संवेदी सूचकांक (सेंसेक्स) एक महीने में 32.39 प्रतिशत ऊपर चढ़ा है। मिड और स्मॉल-कैप सूचकांकों में भी क्रमश: 31.52 और 31.43 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है।
वैसे निवेशक जिन्होंने कई महीनों से अपने पोर्टफोलियो पर ध्यान नहीं दिया था, अब फिर से उसमें दिलचस्पी लेने लगे हैं। इस व्यापक बढ़त की वजह से कई वैसे शेयरों में सुधार हुआ है, जिनमें पिछले 14 महीनों में भारी गिरावट आई थी।
उदाहरण के लिए पवन छग्गर के शेयरों में निवेश की राशि उस समय 12 लाख रुपये थी जब बाजार अपने शिखर पर था। उनके निवेश में शेयरों के साथ-साथ म्युचुअल फंड भी शामिल थे। छग्गर कहते हैं, ‘अक्टूबर में जब मैंने अंतिम बार अपना पोर्टफोलियो देखा था तो उसमें लगभग 54 प्रतिशत की गिरावट आई थी।’ लेकिन पिछले एक महीने में उनके पोर्टफोलियो में 22 प्रतिशत का सुधार हुआ है।
शेयर बाजार के लुढ़कने के बाद से यह पहली तेजी है। निवेश सलाहकार गुल टेकचंदानी कहते हैं, ‘शेयर बाजार में आई तेजी निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो पुनर्गठित करने का बेहतर अवसर प्रदान करता है क्योंकि बुरे कारोबारी शेयरों में भी तेजी आई है।’ लेकिन वैसे निवेशक जो अपने निवेश की शुरुआत करना चाहते हैं उनके लिए इस तेजी के क्या मायने हैं?
ऐसी तेजी को मंदी वाले बाजार की तेजी के रूप में जाना जाता है। आम तौर पर इसकी शुरुआत बाजार के महत्वपूर्ण रूप से नीचे जाने के बाद होती है। ऐसी तेजी अचानक आती है और अल्पकालीन होती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि बाजार की वर्तमान तेजी अस्थायी है क्योंकि इसके पीछे कोई तर्क नहीं है। कई निवेशक ऐसा मानते हैं कि कंपनियों के परिणाम और अगले वर्ष के दिशानिर्देश कमजोर रहेंगे। चुनाव परिणामों को लेकर अनिश्चितता से भी बाजार प्रभावित होने के आसार हैं।
आम तौर पर बाजार में तेजी के समय निवेशक तेज बढ़त वाले शेयरों का चुनाव करते हैं। साल 2000 में, जब डॉट-कॉम की तेजी आई थी, निवेशकों ने भारी मात्रा में तकनीकी शेयरों की खरीदारी की थी। म्युचुअल फंड भी इस दौर में पीछे नहीं रहे थे और निवेशकों को आकर्षित करने के लिए टेक्नोलॉजी फंड लॉन्च किया था।
जब बाजार धराशायी हुए तो कोई भी तकनीकी शेयर साबूत नहीं बचा। हिमाचल फ्यूचरिस्टिक कम्युनिकेशन का ही उदाहरण लीजिए। साल 2000 में इसके शेयर 2,552 रुपये के शीर्ष स्तर पर थे और जब डॉट-कॉम का बुलबुला फूटा तो ये फिसल कर काफी नीचे आ गया। आप भरोसा करेंगे कि फिलहाल इसका कारोबार मात्र 9.06 रुपये पर किया जा रहा है।
इसी तरह बाजार की पिछली तेजी के दौरान रियल एस्टेट क्षेत्र निवेशकों का चहेता रहा। इस श्रेणी के कई शेयरों की कीमतें अब 90 प्रतिशत से अधिक की गिरावट में चल रही हैं। जेएम फाइनैंशियल के प्राइवेट वेल्थ ग्रुप के निदेशक और प्रमुख विपुल शाह ने कहा, ‘ऐसे मामलों में कीमतें सुधर कर कभी अपने वास्तविक स्तर पर नहीं आ पातीं भले ही निवेशक चाहे जितना इंतजार करले। अंतत: बिकवाली होनी है। मंदी के बाजार की वर्तमान तेजी निवेशकों को ऐसा करने का अवसर उपलब्ध कराता है।’
सभी शेयरों में बढ़त होने से निवेशकों को बेहतर कीमतों पर बाहर होने का मौका मिलता है। इससे घाटा कम करने में मदद मिलती है। छग्गर के मामले में, वह रियल एस्टेट में किए गए निवेश से बाहर होना चाहते हैं।
उन्होंने आरंभिक सार्वजनिक निर्गम के ठीक बाद 550 रुपये पर हाउसिंग डेवलपमेंट ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एचडीआईएल) के शेयर खरीदे थे। एक महीने में इस शेयर में 87 फीसदी की तेजी आई थी और अभी इसका कारोबार 118.95 रुपये पर किया जा रहा है।
लैडर7 फाइनैंशियल एडवाइजरी सर्विसेज के निदेशक सुरेश सदगोपन ने कहा, ‘पोर्टफोलियो का पुनर्गठन निवेशकों की जोखिम उठाने की क्षमताओं पर निर्भर करता है।’ इसका मतलब हुआ कि जो निवेशक अधिकतम प्रतिफल की आशा करते हैं वे वैसी श्रेणियों या कंपनियों में निवेश कर सकते हैं जहां पैसे डूबने के आसार अधिक है। स्पष्ट रूप से इस जोखिम को विभिन्न श्रेणियों की कंपनियों में निवेश कर कम किया जा सकता है।
वर्तमान परिस्थितियों के आधार पर वे रियल एस्टेट को सर्वाधिक जोखिम वाली श्रेणी में रखते हैं। फिर निर्माण, होटल, कमोडिटी और ऑटो से जुड़ी बुनियादी कंपनियों की बारी आती है। मध्यम जोखिम की श्रेणी में अभियांत्रिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, बैंकिंम और टेलीकॉम आते हैं। अपेक्षाकृत सुरक्षित श्रेणी में फार्मा और एफएमसीजी शामिल हैं।
निवेश सलाहकार निवेशकों को इन श्रेणियों में केवल लार्ज-कैप कंपनियों पर विचार करने की सलाह देते हैं। सदगोपन ने कहा, ‘आर्थिक मंदी के दौर में लार्ज-कैप कंपनियां छोटी कंपनियों की तुलना में परिस्थितियों से निपटने में ज्यादा सक्षम होती हैं।’ बाजार में तेजी आने के समय वे छोटी कंपनियों के मुकाबले अधिक तेजी से बढ़ते हैं।
और ऐसे समय में, सबसे बढ़िया यह है कि आप बुरे शेयरों से बाहर हो जाएं भले ही थोड़ी हानि उठानी पड़े। इसके बाद कुछ बेहतर शेयर अपने पोर्टफोलियो में शामिल करें। यह देखते हुए बढ़त व्यापक स्तर पर आई है, आप अपनी हानि को कुछ हद तक कम कर सकते हैं। म्युचुअल फंडों में मामले में भी यह नीति अपनाई जानी चाहिए।
एक सवाल जो निवेशकों के मन में घुमड़ता है वह यह है कि उनके पोर्टफोलियो में शामिल खराब प्रदर्शन करने वाले शेयरों में तेजी आई है जिससे वे बाहर हो सकते हैं, लेकिन इसके साथ-साथ अच्छे शेयरों की  कीमतें भी बढ़ी है और बुरे से अच्छे शेयरों का रुख करना खर्चीला हो रहा है। लेकिन, निवेशक को बुरे शेयरों को रखने की अपेक्षा ऐसे कठोर कदम उठाने चाहिए।
निश्चय ही अगर आप जिन शेयरों की खरीदारी करना चाहते हैं वे खर्चीले लगते हैं तो नकदी लेकर बैठ जाइए। निवेश सलाहकार कहते हैं कि जब बाजार में गिरावट आती है तो खरीदारी थोड़ी-थोड़ी किया करें।

First Published : April 13, 2009 | 7:24 PM IST