…ताकि सुस्त न पड़े विकास की रफ्तार

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 1:21 AM IST

मंदी के चलते मांग घटने, नकदी की किल्लत और कर्ज मिलने में आ रही दिक्कतों की वजह से तमाम कंपनियों को जहां अपनी विस्तार योजनाओं पर लगाम लगानी पड़ रहा है, वहीं कारोबार और कर्ज का पुनर्गठन भी करना पड़ रहा है।
कुछ समय पहले तक भारतीय कंपनियों ने अपने कारोबार के विकास-विस्तार के लिए घरेलू और विदेशी बाजारों से भारी मात्रा में कर्ज लिया था। इसका मकसद कंपनी का विस्तार औैर अधिग्रहण की योजनाओं को अंजाम देना था, लेकिन बदलती परिस्थितियों में ऐसा संभव नहीं लग रहा है।
केपीएमजी के कार्यकारी निदेशक अरविंद महाजन का कहना है कि पिछले कुछ समय में कंपनियों की ओर से जो कर्ज लिए गए थे, वे विकास अवसरों को भुनाने के लिए लिए गए थे। डन ऐंड ब्रॉडस्ट्रीट इंडिया के मुख्य परिचालन अधिकारी कौशल संपत का कहना है कि कारोबार में अचानक आए बदलाव की वजह से कंपनियों पर कर्ज का भार बढ़ गया, वहीं इन्वेंटरी में भी इजाफा होने लगा।
कारोबार का पुनर्गठन
वर्ष 2007 में बड़े पैमाने पर अधिग्रहण किया जा रहा था, लेकिन मंदी की आग भड़कने के बाद जहां बाजार धराशायी होने लगा, वहीं कंपनियों की परिसंपत्तियों का मूल्य भी घटने लगा। ऐसी परिस्थिति में प्रवर्तकों के पास लागत में कटौती, परिसंपत्तियों की बिक्र्री और कर्मियों की छंटनी के अलावा और कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है।
बाजार में गिरावट की वजह से जो कंपनियां सबसे ज्यादा प्रभावित हुईं, उनमें स्टील, खनन, शिपिंग, वाहन और रियल एस्टेट प्रमुख हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि मंदी से बचने के लिए कंपनियां जहां अपने नन-कोर कारोबार से बाहर निकल रही हैं, वहीं विस्तार योजनाओं को भी ठंडे बस्ते में डाल रही हैं। सच तो यह है कि कोई भी कंपनी मौजूदा स्थिति में जोखिम उठाने को तैयार नहीं हैं।
कारोबार को अलग-अलग करने का मकसद यह है कि कंपनियों की बाजार पूंजी पहले से कहीं ज्यादा नजर आए। पिछले 6 महीनों के दौरान जिन कंपनियों ने इस तरह की कवायद की है, उनमें एनडीटीवी, इमामी, पैंटालून, स्ट्राइड्स आर्कोलैब प्रमुख हैं। रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ भी नन-कोर कारोबार को अलग करने की तैयारी में है।
हालांकि कुछ कंपनियां अपने तमाम कारोबार का मूल कंपनी में विलय कर रही हैं। इनका मकसद फंड उगाही के लिए निवेशकों को आकर्षित करना है। इनमें रिलायंस इंडस्ट्रीज और जयप्रकाश एसोसिएट्स प्रमुख हैं।
जोखिम प्रबंधन
बाजार में हाल के दिनों में जिस तरह की तेजी देखी जा रही है, उसे कई लोग संदेह की निगाह से देख रहे हैं। अर्नस्ट ऐंड यंग के पार्टनर बद्री नारायणन का कहना है कि बाजार में जब मांग की तुलना में आपूर्ति बढ़ रही हो, तो कंपनियों को कच्चे माल की आउटसोर्सिंग करनी चाहिए। विश्लेषकों का कहना है कि बैकवर्ड इंटीग्र्रेशन से ऐसे माहौल में मदद नहीं मिलती है।
प्रभाव
नकदी की किल्लत झेल रही कंपनियां कर्ज पुनर्गठन के लिए ऋणदाताओं से बात करती हैं, ताकि कर्ज के भुगतान में उन्हें कुछ सहूलियत मिल सके। इसका कंपनी के परिचालन पर क्या असर पड़ता है, इसके बारे में एक्यूरिस कैपिटल के उपाध्यक्ष सौरव चटर्जी कहते हैं कि वित्तीय पुनर्गठन से कंपनी को तात्कालिक लाभ तो मिलता है, लेकिन लंबे समय में इसका बुरा प्रभाव पडता है।
वॉकहार्ट को उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं। यह कर्ज का पुनर्गठन कर रही हैं, लेकिन जब तक यह पूरा नहीं हो जाता, तब तक कंपनी न तो अपना विस्तार कर सकती हैं और न ही अधिग्रहण की योजना बना सकती है। यहां सात कंपनियों का उल्लेख किया जा रहा है, जो ऋण पुनर्गठन की योजना पर काम कर रही हैं। आइए जानते हैं, उन्हें इसकी जरूरत क्यों पड़ी और इससे कंपनी के विकास पर क्या असर पड़ेगा?
डीएलएफ
मंदी से निपटने के लिए रियल्टी कंपनी डीएलएफ कई परियोजनाओं को ठंडे बस्ते में डाल दिया है, वहीं नन-कोर परिसंपत्तियों की बक्री भी कर रही है। इसके साथ ही बिक्री बढ़ाने के लिए ग्राहकों को छूट तक दे रही हैं, साथ ही फंड के लिए नए विकल्पों को तलाश रही है। मांग में कमी आने की वजह से कंपनी ने करीब 6.1 करोड़ वर्गफीट पर विस्तार को एक तिमाही के लिए टाल दिया है।
कंपनी की समस्या डीएएल को लेकर भी है। दरअसल, इसमें निवेश करने वाले प्राइवेट इक्विटी निवेशक डी.ई. शॉ अब डीएएल से बाहर निकलने की तैयारी कर रहे हैं। इसमें शॉ ने करीब 2,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है।
डी.ई.शॉ की रकम लौटाने के लिए डीएलएफ को नए निवेशकों को आकर्षित करना होगा या फिर डीएएल की परिसंपत्तियों को लीज या गिरवी रखकर रकम की व्यवस्था करनी होगी या फिर सहायक कंपनी का मूल कंपनी में विलय करना होगा। विश्लेषकों का कहना है कि डीएएल को मूल कंपनी में विलय करना डीएलएफ के लिए फायदेमंद नहीं होगा, क्योंकि डीएएल को सेज डेवलपर की तौर पर मिल रही कर में छूट का लाभ विलय के बाद नहीं मिल पाएगा।
डीएलएफ अपनी पवन ऊर्जा परिसंपत्तियों को भी बेचने की योजना बना रही है। इसमें कंपनी की ओर से करीब 2,000 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है। कंपनी की ओर से मध्य आय वर्ग के लिए हैदराबाद, चेन्नई, बेंगलुरु और गुड़गांव में कुछ परियोजनाएं लॉन्च की गई हैं, वहीं कुछ परियोजनाओं को री-लॉन्च किया गया है। इससे भी कंपनी को नकदी की प्राप्ति हो सकती है।
गौरतलब है कि कंपनी पर करीब 15,500 करोड़ रुपये का कर्ज है। इनमें से 1,600 करोड़ रुपये का शार्ट टर्म लोन है, जिसे इस साल जून तक चुकाना है। ऐसे में विश्लेषक निकट भविष्य में कंपनी के शेयरों में उछाल की कम उम्मीद कर रहे हैं।
इमामी
पिछले साल अक्टूबर में इमामी ने झंडु फार्मास्यूटिकल्स की 72 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने की घोषणा की है। इस पर करीब 750 करोड़ रुपये खर्च किए गए। इमामी अब झंडु के कारोबार का पुनर्गठन कर रही है। इसके लिए एक समिति का गठन किया गया है, जो कंपनी के कॉरपोरेट गवनर्ेंस, टैक्स ऑप्शन और लागत पर विचार कर रही है।
ऐसा माना जा रहा है कि इमामी दोनों कंपनियों के एफएमसीजी और रियल्टी कारोबार का विलय कर सकती है। जानकारों का कहना है कि इमामी झंडु केमिकल्स की बिक्री भी कर सकती है। हालांकि ऐसा कदम तब उठाया जा सकता है, जब कंपनी को यह आभास होगा कि यह इकाई झंडु फार्मा के आयुर्वेदिक उत्पादों के उपयुक्त नहीं है। कंपनी दो उत्पादों की विस्तार पर और निवेश कर सकती है।
इसमें नवरत्न तेल और बोरोप्लस शामिल है। गौरतलब है कि कंपनी की कुल बिक्री में करीब 55 फीसदी हिस्सा इन उत्पादों की है। आयुर्वेदिक तेल सेगमेंट में कंपनी की बाजार हिस्सेदारी 54 फीसदी, जबकि एंटीसेप्टिक क्रीम सेगमेंट में 70 फीसदी बाजार हिस्सेदारी है।
खास बात यह कि दोनों सेगमेंट 15-20 फीसदी की दर से विकास कर रहे हैं। विश्लेषकों का कहना है कि 220 रुपये पर कंपनी के शेयर को खरीदने से एक साल पर अच्छा रिटर्न मिलने की उम्मीद है।
जयप्रकाश एसोसिएट्स
जयप्रकाश एसोसिएट्स अपनी चार सहायक कंपनियों का पुनर्गठन कर रही हैं। इनमें इंजीनियरिंग और कंस्ट्रक्शन, रियल एस्टेट, सीमेंट और हॉस्पिटैलिटि कारोबार शामिल हैं। इन कंपनियों को एकीकृत करने से कंपनी को परिचालन में जहां सुविधा होगी, वहीं बैलेंस शीट को भी मजबूती मिलेगी। कंपनी का मानना है कि बैलेंस शीट 7,930 करोड़ रुपये से बढ़कर 8,914 करोड़ रुपये हो जाएगा।
इसके साथ ही कंपनी की नेटवर्थ 4,598 करोड़ रुपये से बढ़कर 5,550 करोड़ रुपये हो जाएगी। कंपनी अगले तीन सालों में विभिन्न परियोजनाओं पर करीब 4,000 करोड़ रुपये निवेश की योजना बना रही है। ऐसे में कंपनी को फंड की व्यवस्था करने में आसानी होगी। कंपनी को सीमेंट कारोबार का विलय करने से जहां लागत में कटौती हो सकेगी, वहीं परिचालन में भी आसानी होगी।
कंपनी के पास करीब 41,00 करोड़ रुपये का ऑर्डर है। ऐसे में सहायक कंपनियों के विलय से कंपनी को फंड उगाही में भी आसानी होगी और खर्चों में कटौती भी की जा सकती है। लंबे समय में कंपनी के इस कदम का शेयरों पर अच्छा प्र्रभाव पड़ सकता है।
एनडीटीवी
समाचार चैनलों के लिए 26 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियम की वजह से एनडीटीवी नए निवेश को आकर्षित करने के लिए कारोबार के पुनर्गठन योजना पर काम कर रही है। इसके लिए कंपनी समाचार और मनोरंजन चैनलों को अलग-अलग कंपनी में विभाजित करने की तैयारी कर रही है।
एनडीटीवी स्टूडियो के तहत अंग्रेजी समाचार चैनल, हिंदी समाचार चैनल और बिजनेस चैनल एनडीटीवी प्रॉफिट शामिल होगा, जबकि इमेजिन और लाइफस्टाइल चैनल मूल कंपनी एनडीटीवी में ही रहेगा।?जहां अभी 24 फीसदी संस्थागत विदेशी निवेश किया गया है। अंग्रेजी के समाचार चैनलों में कंपनी अच्छा कारोबार कर रही है, जबकि हिंदी के चैनल अन्य खबरिया चैनलों से काफी पीछे हैं।
वहीं प्रॉफिट को भी सीएनबीसी टीवी 18 से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। मनोरंजन चैनलों की भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। कलर्स, स्टार प्लस और जी से इमेजिन काफी पीछे चल रहा है। कारोबार के पनर्गठन से कंपनी को नए निवेश जुटाने में आसानी होगी। कारोबार को अलग-अलग करने से एनबीसी यूनिवर्सल को भी फायदा होगा, जो पिछले साल एनडीटीवी में 16 फीसदी हिस्सेदारी के लिए करीब 15 करोड़ डॉलर का निवेश कर चुकी है।
कंपनी अब इसमें अपनी हिस्सेदारी 50 फीसदी तक बढ़ा सकती है। इसके साथ ही कंपनी को लागत में कटौती करने का रास्ता भी मिलेगा। कंपनी के पुनर्गठन की खबर से शेयर बाजार में भी अच्छा संकेत गया और पिछले एक माह के दौरान कंपनी के शेयरों की कीमतों में करीब 33 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया।
पैंटालून रिटेल
मंदी के चलते भारतीय रिटले कारोबार को भारी नुकसान हो रहा है। ऐसे में पैंटालून को भी विस्तार योजनाओं को धीमा करना पड़ा और फंड के लिए अन्य स्रोतों की तलाश करनी पड़ रही है। कंपनी ने 40 लाख वर्गफीट में विस्तार की योजना बनाई थी, जिसे घटाकार 25 लाख वर्गफीट कर दिया है।
कंपनी को अगले 6 महीने में 260 करोड़ रुपये कर्ज का भुगतान करना है, जिसमें कोई समस्या नहीं है, लेकिन विस्तार योजनाओं के लिए फंड की व्यवस्था करना परेशानी का सबब हो सकती है। ऐसे में कंपनी ने कारोबार को अलग-अलग सेगमेंट में बांटने की योजना बनाई है।
प्रवर्तकों से फंड जुटाने के अलावा, कंपनी प्राइवेट इक्विटी के जरिए भी 1,000 करोड़ रुपये उगाहने की योजना पर काम कर रही है। कंपनी को अलग-अलग सेगमेंट में बांटने से इसे फंड जुटाने के लिए नए निवेशकों का आकर्षित करने में आसानी होगी। विश्लेषकों का कहना है कि कंपनी के शेयरों में थोड़ी नरमी आने बाद खरीदारी करने से अच्छा रिटर्न मिलने की उम्मीद है।
रिलायंस इंडस्ट्रीज
आरपीएल के आरआईएल में विलय से जहां कंपनी को आर्थिक स्तर पर लाभ मिलने की उम्मीद है, वहीं परिचालन लागत भी कम होगी और कारोबार के जोखिम को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है। इस विलय से आरआईएल को आरपीएल की पूंजी और नकदी से फायदा मिल सकता है, क्योंकि कंपनी को थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
वॉकहॉर्ट
कंपनी पर करीब 3,400 करोड़ रुपये का कर्ज है। ऐसे में कंपनी को कर्ज पुनर्गठन के लिए ऋणदाताओं से संपर्क करना पड़ा। कंपनी अपने बायोटेक करोबार को अलग करने की योजना बना रही है, वहीं फंड जुटाने के लिए रणनीतिक साझेदार भी तलाश रही है।
(साथ में जितेंद्र कुमार गुप्ता)

First Published : April 20, 2009 | 10:37 AM IST