माइक्रोफाइनैंस सेक्टर कोविड महामारी से पैदा हुए दबाव से बाहर निकल रहा है। एक्सेस डेवलपमेंट सर्विसेज की ओर से मंगलवार को जारी इनक्लूसिव फाइनैंस रिपोर्ट के मुताबिक माइक्रो फाइनैंस इंस्टीट्यूशंस (MFI) की डिफॉल्ट की दर मार्च 2022 में घटकर 5.3 प्रतिशत पर आ गई है, जो जून 2021 में 16.7 प्रतिशत थी। इसका मापन 30 दिन से ज्यादा अवधि के जोखिम वाले पोर्टफोलियो के आधार पर किया जाता है।
कुछ मौसमी और कार्यक्रम आधारित अपवादों को छोड़ दें तो शुद्ध गैर निष्पादित संपत्तियां पिछले 22 साल में 1 प्रतिशत से कम रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस सेक्टर के जोखिम वाले पोर्टफोलियो (30 से ज्यादा दिन) की स्थिति देखें तो इसकी मात्रा मार्च 2020 के 1.39 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2021 में 9.01 प्रतिशत हुई, उसके बाद मार्च 2022 में गिरकर 5.27 प्रतिशत पर पहुंची है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 और 2022 की बढ़ोतरी की वजह मॉरेटोरियम के तहत आए ऋण औऱ उसके बाद के पुनर्गठन की वजह से है, लेकिन आजीविका की मुश्किलों ने कर्ज का भुगतान असंभव बना दिया था।
रिपोर्ट के सह-लेखक एन. श्रीनिवासन ने कहा कि इस क्षेत्र ने कोविड के व्यवधानों को मजबूती से पीछे छोड़ दिया है और सकारात्मक इरादे के साथ आगे बढ़ रहा है।
उन्होंने कहा, ‘जैसा कि उद्योग के प्रमुखों संकेत दिया है, भविष्य का दृष्टिकोण काफी बेहतर लगता है। व्यापार प्रतिनिधि, विलय, बैंकों में रूपांतरण और गैर-सूक्ष्म वित्त ऋणों में प्रवेश जैसे कई रास्ते उपलब्ध होने के साथ एमएफआई के पास भविष्य में करने के लिए बहुत काम है।’
कर्नाटक और तमिलनाडु सूक्ष्म वित्त से बकाया ऋणों का उच्चतम प्रतिशत वाले राज्य हैं। इसके बाद बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का स्थान है।