ऐसे समय में जब शेयर बाजार में अस्थिरता का माहौल है तो निवेशक डेट की ओर मुड़ रहे हैं।
बेशक यहां रिटर्न काफी कम है, लेकिन जब मूलधन की सुरक्षा पहली प्राथमिकता हो तो इन योजनाओं का महत्व काफी बढ़ जाता है। बैंकों की सावधि जमा (एफडी) एक बेहद लोकप्रिय डेट योजना है। इस समय इनमें 10 से 11 फीसदी का आकर्षक ब्याज मिल रहा है।
हालांकि इनके अलावा और भी कई परंपरागत डेट योजनाएं हैं जिनसे एक निश्चित समय बाद सुरक्षित रिटर्न मिलता है और जो कर छूट के लिहाज से खासी अहम हैं। अगर फिक्स्ड डिपॉजिट की बात करें तो देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) 1,000 दिन की अवधि पर इस समय 10.5 फीसदी ब्याज दे रहा है।
5 से 10 साल तक की लंबी अवधि की जमाओं पर वह 9.25 फीसदी रिटर्न देता है। बैंक की वेबसाइट के अनुसार ये दरें दिसंबर से क्रमश: 9.5 फीसदी और 9 फीसदी हो जाएंगी। इन योजनाओं में टैक्स के बाद मिलने वाला रिटर्न इस बात पर निर्भर करता है कि निवेशक किस इनकम स्लैब से है।
एफडी की सबसे अच्छी बात यह है कि सिर्फ एक फीसदी के करीब जुर्माना भरने के एक दिन बाद ही इन्हें भुनाया जा सकता है। एफडी के अलावा नाबार्ड के भविष्य निर्माण बॉन्ड (बीएनबी) ने हाल में एफडी के बाद सभी फिक्स्ड मेच्योरिटी योजनाओं से टैक्स के बाद अधिक रिटर्न दिया है। हालांकि ये लंबी मियाद वाली योजनाएं हैं।
अगर आपके पास दस साल का समय हो और आपका न्यूनतम निवेशक 8,500 रुपये हो तो मेच्योरिटी पर आप 20,000 रुपये एकत्र कर सकते हैं। आपको मिलने वाले रिटर्न की दर इस प्रकार है: 8.93 फीसदी टैक्स से पहले, टैक्स के बाद यह बॉन्ड 8.29 फीसदी रिटर्न देगा। इन बॉन्डों पर 10 फीसदी लांग टर्म कैपिटल गैन टैक्स लगता है।
हालांकि इनमें नकदी एक प्रमुख मामला है। एफसीएच सेंट्रम वेल्थ मैनेजर्स में वेल्थ मैनेजमेंट सर्विस के प्रमुख श्रीराम वेंकट सुब्रमण्यन का कहना है कि नाबार्ड के बॉन्डों, राष्ट्रीय बचत पत्र (एनएससी) और किसान विकास पत्र (केवीपी) जैसी परंपरागत निवेश योजनाओं में धन लगाते समय निवेशकों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि इन योजनाओं की अवधि के दौरान इनको भुनाना बेहद मुश्किल होगा।
बीएनबी सूचीबध्द हैं और जिन निवेशकों ने डीमेट फार्म में बॉन्ड ले रखे हैं, वे उसमें कारोबार कर सकते हैं, लेकिन वे किसी इमरजेंसी में बेचना चाहेंगे तो उन्हें तरलता न होने के कारण अच्छी कीमत नहीं मिलेगी। राष्ट्रीय विकास पत्र (एनएससी)और किसान विकास पत्र (केवीपी) जैसी अन्य योजनाओं का क्रमश: तीन और ढाई सालों का लॉक इन पीरियड होता है।
केवीपी टैक्स से पहले 8.41 फीसदी रिटर्न देता है, लेकिन इनमें कोई टैक्स लाभ नहीं मिलता। यहां 100 रुपये का न्यूनतम निवेश 8.7 साल में दोगुना हो जाता है। टैक्स की बात की जाए तो इस योजना में मिला ब्याज निवेशक की आय के में जुड़ जाएगा और उसे अपने आयकर स्लैब के अनुसार टैक्स देना होगा।
इनमें टैक्स के बाद रिटर्न 7.57 फीसदी (दस फीसदी स्लैब में आने वाले निवेशकों के लिए), 6.73 फीसदी (बीस फीसदी स्लैब में आने वाले निवेशकों के लिए) और 5.89 फीसदी (तीस फीसदी स्लैब में आने वाले निवेशकों के लिए) हो जाता है।
दूसरी ओर एनएससी टैक्स के लिहाज से बेहतर है। इसमें निवेश की जाने वाली एक लाख रुपये तक की राशि को आयकर की धारा 80 सी के तहत छूट मिली हुई है। यहां पर 100 रुपये के न्यूनतम निवेश पर आठ फीसदी रिटर्न मिलता है।
यहां भी मेच्योरिटी केवीपी की तरह ब्याज के जरिए अर्जित आय पर कर लगता है। इसी तरह निवेशक सरकार और बैंकों द्वारा जारी दूसरी बांडों में भी निवेश कर सकता है। इनमें नाबार्ड के ग्रामीण बॉन्ड भी हैं जिनकी परिपक्वता अवधि पांच साल की है।
इनमें न्यूनतम 5,000 रुपये के निवेश पर 8.5 फीसदी रिटर्न मिल सकता है। इन बॉन्डों में भी निवेशक को आयकर की धारा 80 सी के तहत करों में छूट तो मिलती है, लेकिन यहां भी ब्याज के जरिए अर्जित आय कर के दायरे में आती है और इनमें निवेशक के कर स्लैब के आधार पर कर लगता है।
खुद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी छह साल की अवधि में आठ फीसदी रिटर्न देने वाले बॉन्ड जारी करता है। पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ) एक बेहद लोकप्रिय परंपरागत निवेश योजना है। इसमें निवेशक 8 फीसदी के रिटर्न पर 70,000 रुपये सालाना जमा कर सकता है।
पीपीएफ खातों प ब्याज हर पहले और पांचवें महीने दिया जाता है। 15 साल की अवधि में इन खातों के परिपक्व हो जाने पर अर्जित कुल ब्याज आय में कोई टैक्स नहीं लगता। अन्य मदों में डाकघर की मासिक आय योजना (एमआईपी) शामिल है। सि पर भी आठ फीसदी रिटर्न मिलता है लेकिन इसमें कोई टैक्स लाभ नहीं मिलता।
इन एमआईपी में निवेशक अधिकतम 4.5 लाख रुपये तक निवेश कर सकता है। संयुक्त खातों में यह सीमा दोगुनी हो जाती है। इन एमआईपी की अवधि छह महीने होती है। यहां तक की रिकरिंग डिपॉजिट (आरडी) पर भी आठ फीसदी रिटर्न मिलता है। यह दर अलग-अलग बैंको में अलग-अलग होती है, लेकिन डाकघर में आरडी की ब्याज दर एक समान होती है।
इस खाते की अवधि एक साल से लेकर दस साल तक होती है। इसमें कोई व्यक्ति 100 रुपये प्रतिमाह से बचत शुरु कर सकता है। यहां ब्याज के जरिए अर्जित 12,000 रुपये तक की सालाना आय को करमुक्त रखा गया है।
इस तरह से निवेशक के लिए इस समय कई प्रकार की परंपरागत डेट योजनाएं उपलब्ध हैं। लेकिन तरलता का अभाव और बेहद कम रिटर्न इनके नकारात्मक पहलू हैं। फिर भी यह निवेश प्रारंभ करने के लिए अच्छे विकल्प हैं।
एक पंजीकृत वित्तीय योजनाकार सुरेश सदगोपन ने बताया कि शुरुआत में जब कोई व्यक्ति निवेश शुरु करता है तो वह परंपरागत योजनाओं को ही चुनता है। आमदनी बढ़ जाने के बाद वह अपनी जोखिम उठाने की क्षमता के आधार पर इक्विटी या शेयर जैसी परसिंपत्ति श्रेणियों की ओर रुख करता है।