गिरते बाजार में कॉन्ट्रा फंड में लंबी अवधि के लिए करें निवेश

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 10, 2022 | 1:55 AM IST

जब इक्विटी बाजार में कारोबार की धूम मची होती है तो उस समय निवेशक जमकर निवेश करते हैं।
जब आर्थिक विकास अपने चरम पर होता है और शेयर बाजार खरीदारी की आंधी से लबरेज होता है तो उस समय हम अपने फंड प्रबंधकों द्वारा इस्तेमाल की गई रणनीति के बारे में शायद ही सवाल करते हैं। इसकी वजह यह होती है कि उस समय हमारे फंड प्रबंधक बेहतर प्रतिफल देते हैं और हमें मुनाफेसे मतलब होता है न कि उनके द्वारा अपनाई जा रही रणनीति से।
लेकिन जब बाजार में गिरावट की आंधी शुरू होती है तो उस समय आम तौर पर निवेशक धड़ाधड़ अपनी रणनीति और इससे जुड़े अन्य पहलुओं के अलावा कुछ अन्य विकल्पों पर भी विचार करने लग जाते हैं।
इसी तरह की एक रणनीति है कांट्रेरियन इन्वेस्टिंग। जैसा कि नाम से ही साफ होता है, निवेश की यह रणनीति बाजार की मौजूदा स्थिति से भिन्न है। इस तरह की रणनीति अपनाने का खास मकसद गिरते बाजार में अपने निवेश को बचाना है, लेकिन साथ ही विपरीत परिस्थिति यों की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
चढ़ते बाजार में भी प्रतिफल अपेक्षाकृत कम हो सकता है।कांट्रेरियन शब्द को समझना खासा महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे कई तरीकों से परिभाषित किया जा सकता है। 

ज्यादातर मामलों में कॉन्ट्रा इन्वेस्टिंग का मतलब उन शेयरों के चयन से है जो मौजूदा समय में बेहतर तो नहीं कर रहे हैं लेकिन बुनियादी रूप से मजबूत होने से आगे चलकर बेहतर प्रतिफल देने की क्षमता रखते हैं।
कॉन्ट्रा इन्वेस्टिंग के लिए कई रणनीतियों का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें कि पहला शेयरों में सीधे तौर पर निवेश, जिससे किसी खास थीम की पहचान की जाती है। 

इसमें सबसे पहले शेयरों की थीम के अनुरुप खरीदारी की जाती है और फिर कुछ समय तक इसे पास ही रखा जाता है। सबसे आसान विकल्प म्युचुअल फंडों द्वारा ऑफर किए जा रहे कॉन्ट्रा फंडों का चयन है।
हालांकि इस थीम में निवेश करते हुए एक बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है कि बाजार के विपरीत इस रणनीति का यह कतई मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि मंदी या गिरावट के समय शेयरों या फंडों की कीमत में गिरावट नहीं होगी। खासकर, मौजूदा कारोबारी माहौल में तो यह बात काफी सटीक बैठती है जहां रोजाना बाजार में गिरावट देखने को मिल रही है।
जाहिर है, गिरावट के इस दौर में क्षेत्र कोई मायने नहीं रखता है क्योंकि कुछ अपवाद को छोड़कर लगभग सभी क्षेत्रों में गिरावट देखने को मिली है। ऐसे में कॉन्ट्रा इन्वेस्टमेंट में अगर गिरावट देखने को मिल रही है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
अगर विभिन्न कॉन्ट्रा फंड से मिलने वाले प्रतिफल पर नजर डाली जाए तो 17 फरवरी 2009 को समाप्त हुई एक साल तक की अवधि के दौरान इनमें सभी का प्रतिफल गिरा है। हालांकि इसके बावजूद सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले और सबसे खराब प्रदर्शन करनेवाले फंडों में अंतर तो होता ही है।
सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले फंडों में जहां 36 फीसदी तक की गिरावट आई है वहीं इसी अवधि के दौरान सबसे खराब प्रदर्शन करनेवाले फंडों में 70 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है। इससे यह बात पूरी तरह से स्पष्ट हो जाती है कि ऐसे समय में जबकि बाजार में सारे फंड धड़ाधड़ गिर रहे हैं, कॉन्ट्रा फंड पर मिलने वाले प्रतिफल में भी गिरावट देखने को मिल सकती है।
इसका दूसरा कारण यह हो सकता है कि फंड प्रबंधक ऐसे शेयर खरीद सकते हैं जिनकी कीमतों में काफी गिरावट आई है लेकिन अगर ये अपने एतिहासिक न्यूनतम स्तर पर भी पहुंच गए हैं तो भी इसमें प्रवेश का स्तर सबसे कम नहीं हो सकता है।
ऐसे हालात में कुछ समय के लिए इन शेयरों में गिरावट जारी रह सकती है। कॉन्ट्रा इन्वेस्टिंग के साथ जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें तत्क्षण मुनाफा कमाने की संभावना नहीं है।
ऊपर चढ़ते बाजार में निवेश की तुलना में कॉन्ट्रा फंड में निवेश करने का मतलब लंबा इंतजार करना होता है, कुल मामलों में तो बेहतर प्रतिफल पाने के लिए इंतजार काफी दुखदायी भी हो सकता है। 

स्पष्ट है कि इन फंडों में निवेश करने वाले निवेशकों को धैर्य का परिचय देना होगा। इसके अलावा इन फंडों के साथ आपकी अपेक्षाओं के पूरा नहीं होने का खतरा भी जुड़ा होता है।
हालांकि सबसे अच्छी बात यह है कि अगर कॉन्ट्रा फंड में निवेश करने की रणनीति सफल हो जाती है तो फिर मिलने वाला प्रतिफल काफी आकर्षक हो सकता है। 

हलांकि इन फंडों से मिलने वाले प्रतिफल की तुलना कोई अगर इक्विटी डाइवर्सिफाइड फंडों से करता है तो इन दोनों में काफी समानताएं हुआ करती हैं।
उदाहरण के लिए यूटीआई एमएनसी सबसे बेहतर इक्विटी डाइवर्सिफाइड फंड हैं जिसमें पिछले एक सालों में मात्र 30 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है। 

इसकी तुलना में यूटीआई कॉन्ट्रा फंड जो कॉन्ट्रा फंड श्रेणी में सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले फंडों में से एक रहा है, इसमें भी मात्र 36 फीसदी तक की ही गिरावट दर्ज की गई है।
दोनों तरह के  फंडों के प्रतिफल में समानता का कारण यह है कि कई कॉन्ट्रा फंड एक ही तरह के थीम में निवेश करते हैं क्योंकि इन पर निवेशकों की तरफ से सकारात्मक प्रतिफल का दबाव रहता है।
इससे कॉन्ट्रेरियन थीम की अवधारणा को नुकसान पहुंचता है। हालांकि अगर पूरी तन्मयता के साथ इसमें निवेश किया जाता है तो कॉन्ट्रा फंड काफी दिलचस्प है। हालांकि इनमें निवेश करने से पहले निवेशकों को पोर्टफोलियो पर सावधानी से एक नजर डाल लेनी चाहिए।
लेखक प्रमाणित वित्तीय योजनाकार हैं।

First Published : February 22, 2009 | 9:17 PM IST