इस समय बीमा कंपनियों द्वारा बीमा कारोबार में विदेशी निवेश को 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत किए जाने से अधिक भारत में बीमा कानून में संशोधन की जरूरत महसूस की जा रही है।
भारतीय कंपनियों के प्रमोटर्स भारतीय बीमा कंपनियां उस प्रावधान में भी संशोधन को लेकर कुछ राहत की उम्मीद कर रहे हैं, जिसके तहत 10 वर्षों बाद कंपनियों को स्वयं को सूचीबध्द कराना अनिवार्य होता है।
सूत्रों का कहना है कि जीवन बीमा कंपनियां इस प्रावधान को समाप्त करने की मांग या कम से कम इसमें ढील की उम्मीद कर रही है, सरकार इस प्रावधान में कुछ संशोधन का प्रस्ताव रखने का मन बना चुकी है। इसकेअलावा बीमा कानूनों में संशोधन के बाद सार्वजनिक क्षेत्र की जनरल इंश्योरेंस कंपनियों के लिए अपनी विस्तार योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए पूंजी जुटाना आसान हो जाएगा।
वामदलों द्वारा सरकार से समर्थन वापसी के बाद सरकार प्रमुख आर्थिक सुधारों मेंतेजी लाने के तहत बीमा कानून सहित सार्वजनिक क्षेत्र की जेनरल इंश्योरेंस एंड लाइफ इंश्योरेंस कार्पोरेशन के कानून में संसोधन को लेकर आश्वस्त दिखती है। मालूम हो कि सरकार लगभग 36 महीने पूर्व ही कानून में संसोधन के प्रस्ताव के साथ तैयार थी, लेकिन वामदलों के समर्थन के अभाव मे ंवह ऐसा कर पाने में सक्षम नहीं हो पाई और साथ ही सरकार इस मुद्दे पर अन्य विपक्षी दलों का भी समर्थन लेते हुए नहीं दिखना चाह रही थी।
गौरतलब है कि बीमा कंपनियां बीमा क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश की सीमा में बढ़ोतरी की मांग करती आ रही है क्योंकि अपने कारोबार को बेहतर बनाने केलिए उन्हें सतत रूप से पूंजी की आवश्यकता पड़ती है। इसकी वजह बताते हुए एक जीवन बीमा कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने कहा कि अपनी क्षमता, तकनीकी रूप से और मजबूत होने और बेहतर ग्राहक सेवा प्रदान करने के लिए विदेशी पूंजी निवेश की जल्द से जल्द आवश्यकता है।
मालूम हो कि बीमा क्षेत्र में 49 प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश को मंजूरी देने के अलावा वित्त मंत्रालय उन भारतीय प्रोमोटरों पर से प्रतिबंध हटाने की बात कर रही है जिसके तहत प्रोमोटरों द्वारा अपने कारोबार को शुरू करने के दस वर्षों बाद अपनी हिस्सेदारी को घटाकर 26 प्रतिशत तक लाने का प्रावधान है। सन 1932 के बीमा कानून के तहत कोई भी विदेशी पुर्नबीमाकर्ता भारत में स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकता है और किसी भी स्थानीय उपक्रम में वह कम से कम 200 करोड रुपये के भुगतान के साथ अधिक से अधिक 26 प्रतिशत की हिस्सेदारी रख सकता है।
हालांकि सन 2000 से बीमा क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति दिए जाने के बाद भी सार्वजनिक क्षेत्र की जेनरल इंश्योरेंस कंपनी ही एकमात्र देश में रीइंश्योरर है और विदेशी रीइंश्योरर्स ने अपने आप को इस क्षेत्र से पूरी तरह अलग रखा है। हाल में ही बीमा कानूनों में संसोधन न किए जाने के अभाव में ही लॉयड की सिंडीकेट ने भारत से अपने प्रतिनिधि को वापस बुला लिया। बढ़ते औद्योगिक खतरे के मद्देजनर सरकार विदेशी रीश्योरर्स को भारत में अपनी शाखाएं खोलने की अनुमति देने का प्रस्ताव रख रही है। इससे रीइंश्योरेंस के खर्चे में कमी आएगी और इनकी शाखाएं खुलने से भारत एशिया में रीइंश्योरेंस का प्रमुख केन्द्र बन जाएगा।
अन्य प्रस्तावित सुधार
स्वास्थ्य बीमा कंपनियों के लिए कम से कम पूंजी की अनिवार्यता 100 करोड़ रुपये से घटाकर 50 करोड़ रुपये होगा।
एलआईसी के लिए चुकता पूंजी 5 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 100 करोड़ रुपये की जाएगी।
आईआरडीए की जगह खुद बीमा कंपनियों को बीमा एजेंट, सर्वेयर और नुकसान आकलन करने वाले नियुक्त करने की अनुमति मिलेगी।
पांच साल के बाद किसी पॉलिसी में किसी तरह का कोई सवाल नहीं उठाया जाएगा।