जनवरी 2008 के दौरान बाजार की तेजी के समय से जो परिस्थितियां थीं, आज उससे बिल्कुल उलट हैं।
उस समय कंपनियों की आय में तेजी से इजाफा हो रहा था और विश्लेषक बड़े-बड़े लक्ष्यों की बात करने में मशगूल थे। अगस्त 2008 से बाजार की परिस्थितियों में ज्यादा बदलाव शुरू हुआ और इसके साथ ही विश्लेषकों ने भारतीय कंपनियों की आय के अनुमानों में भारी कटौती करनी शुरू कर दी।
इतना ही नहीं वे मूल्यांकनों (जैसे पीई और पीबीवी गुणकों) में भी कमी कर रहे हैं। इससे शेयरों की कीमतों पर असर पड़ा है। इस अवधि के दौरान संवेदी सूचकांक (सेंसेक्स) में लगभग 40 प्रतिशत की कमी आई और 1 अक्टूबर 2008 से इसमें लगभग 32 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है।
पिछले तीन महीनों में वित्त वर्ष 2009 के लिए बीएसई सेंसेक्स की आय के अनुमानों में 5 से 7 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2010 के अनुमानों में 14 से 15 प्रतिशत की कटौती की गई है जो औसतन क्रमश: 910 रुपये और 1,040 रुपये बनती है।
आईडीबीआई फोर्टिस लाइफ इंश्योरेंस के मुख्य निवेश अधिकारी अनीश श्रीवास्तव कहते हैं, ‘पहले हम लोगों का अनुमान था कि वित्त वर्ष 2009 में सेंसेक्स की आय में लगभग 17 से 18 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी, लेकिन अब यह अनुमान लगभग 9 से 10 प्रतिशत का है।’
सबसे अधिक निराशावादी नजरिया डीएसपी मेरिल लिंच के विश्लेषकों, ज्योतिवर्ध्दन जयपुरिया और आनंद कुमार का है। उनका कहना है, ‘पिछले छह वर्षों में आय में 25 प्रतिशत की चक्रवृध्दि दर के बाद हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2009 की प्रथम छमाही में आय में विकास शून्य होगा (वित्त वर्ष 2009 में 6 प्रतिशत का विकास) और वित्त वर्ष 2010 में आय में नकारात्मक विकास होगा यानी आय गिर जाएगी।’
पिछले तीन महीने के दौरान, खास तौर से दूसरी तिमाही के परिणामों के बाद विश्लेषकों ने आय के अनुमानों को कम करने में आक्रामक रुख अपनाया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने भविष्य में इसमें और कटौती के संकेत भी दिए हैं।
यह परिस्थिति गैर-सेंसेक्स कंपनियों के लिए भी उतनी ही बुरी है क्योंकि उनके लिए भी 1 से 35 प्रतिशत तक की कटौती की गई है। इनमें कुछ लार्ज और मिड-कैप कंपनियां शामिल हैं। मिड-कैप कंपनियां प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितियों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती हैं और संभव है कि इनकी आय के अनुमानों में भविष्य में और अधिक कटौती की जाए।
व्यापक आधार पर देखा जाए तो संशोधित आकलनों में वैश्विक और घरेलू अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की चिंताओं को भी शामिल किया गया है, जो मांग में कमी (कुछ मामलों में बिक्री में कमी) और कम होते मुनाफे के रूप में दिखना शुरू हो गई हैं।
नकदी की समस्या के कारण कंपनियों को दीर्घावधि की योजनाओं के लिए पूंजी जुटाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। एक तरफ बैंक ऋण देने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं और दूसरी तरफ कई कंपनियों के राइट्स ऑफर की मांग में भी कमी देखने को मिली है।
ऐसे कई कारक आय के संशोधित अनुमानों में पहले ही दिखने लगे हैं। हालांकि, कुछ ऐसे भी कारक हैं जिन पर नजर रखने की जरूरत है। इनमें घरेलू ब्याज दरों में हाल में की गई कटौती और नकदी को बढ़ाना शामिल है। इसके अलावा, चूंकि कमोडिटी की कीमतों में (धातु, सीमेंट, तेल और पेट्रोरसायन उत्पाद) कमी आ रही है।
इसलिए कई कंपनियों के मार्जिन में भी कमी आएगी। एक तरफ इस तरह की बातों से भविष्य में होने वाली आय में संभवत: कमी हो सकती है वहीं दूसरी ओर परिस्थितियों में अनिश्चितता बरकरार है। आइए, महत्वपूर्ण क्षेत्रों और कंपनियों की आय के नवीनतम अनुमानों के साथ ही उनमें संशोधन के कारण जानने की कोशिश करते हैं।
सेंसेक्स की आय में सबसे अधिक कमी कमोडिटी कंपनियों की वजह से आई है। कमोडिटी से संबध्द कंपनियों की हिस्सेदारी सेंसेक्स में 22.78 प्रतिशत की है जिनमें तेल एवं गैस, धातु और सीमेंट क्षेत्र की कंपनियां शामिल हैं।
पिघलने लगी धातु
विश्लेषकों ने सेंसेक्स में शामिल धातु क्षेत्र की कंपनियों की आय के अनुमानों में भारी कटौती की है जो वित्त वर्ष 2009 और 2010 के लिए लगभग 40 से 60 प्रतिशत की है। लौह एवं अलौह धातुओं की कम मांग और कीमतों में कमी के कारण धुंधले परिदृश्य के आधार पर इस तरह की कटौती की गई है।
अमेरिका, यूरोप तथा जापान को मंदी से प्रभावित मान लिया गया है और आकलनों के मुताबिक इस वजह से धातुओं की खपत में 5 से 20 प्रतिशत की कमी आ सकती है। उभरती अर्थव्यवस्थाओं द्वारा अधिक अधिक खपत के अनुमानों के बावजूद विकसित देशों की खपत में होने वाली कमी की भरपाई होने का कोई अनुमान नहीं है।
पिछले छह महीनों में लंदन मेटल एक्सचेंज पर जस्ता, तांबा और एल्युमिनियम की कीमतों में लगभग 40 से 60 प्रतिशत की कमी आई है। यह भी एक कारण है कि स्टरलाइट इंडस्ट्रीज, हिंडाल्को, हिंदुस्तान जिंक जैसी कंपनियों की प्राप्तियां घटी हैं और भविष्य में भी इसके कम होने के अनुमान हैं।
इस्पात की घरेलू कीमतों में 30 से 40 प्रतिशत की कमी आई है इससे भी स्टील कंपनियों की प्राप्तियों और आय पर प्रभाव पड़ना चाहिए। एडलवाइस सिक्योरिटीज के विश्लेषक प्रसाद बाजी ने वित्त वर्ष 2010 के लिए टाटा स्टील की समेकित आय के अपने अनुमानों में 86 प्रतिशत की कटौती की है क्योंकि यूरोप की मूल्य-परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं।
इससे टाटा स्टील की सहयोगी कंपनी कोरस की आय प्रभावित होगी। गैर-सेंसेक्स धातु कंपनियों, जैसे जेएसडब्ल्यू स्टील, सेल और अंन्य कंपनियों के लिए भी नजरिया अच्छा नहीं है क्योंकि इनकी आय के अनुमानों में लगभग 45 प्रतिशत तक की कटौती की गई है।
सीमेंट और रियल्टी
सीमेंट का क्षेत्र भी अपवाद नहीं रहा, इसकी आय के अनुमानों में भी कटौती की गई है। वित्त वर्ष 2009 और 10 के लिए ग्रासिम इंडस्ट्रीज और एसीसी की आय के अनुमानों में 5 से 12 प्रतिशत तक की कमी की गई है।
गैर-सेंसेक्स कंपनियां जैसे अंबुजा सीमेंट और अल्ट्राटेक सीमेंट के बारे में अनुमान है कि वित्त वर्ष 2010 में इनकी आय में क्रमश: 19.6 प्रतिशत और 4.6 प्रतिशत की कमी आएगी। आय के अनुमानों में कटौती, सीमेंट की कम बिक्री, इसकी कीमतों में गिरावट और निर्माण तथा हाउसिंग क्षेत्र में आई मंदी को प्रदर्शित करती है।
हाउसिंग क्षेत्र की मंदी का प्रभाव रियल एस्टेट कंपनियों के परिदृश्य पर भी पड़ा है। रियल एस्टेट की कीमतों और मांग में अनुमानित गिरावट, अधिक ब्याज दरों और फंड की व्यवस्था से जुड़े मुद्दों की वजह से इस क्षेत्र का परिदृश्य काफी प्रभावित हुआ है। वित्त वर्ष 2009-10 के लिए डीएलएफ की आय में 6 से 20 प्रतिशत की कटौती की गई है। परिस्थितियों को देखते हुए विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में रियल्टी कंपनियों की आय के अनुमानों में और अधिक कटौती की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है।
तेल और गैस भी फिसले
इस क्षेत्र की हिस्सेदारी सेंसेक्स में दूसरी सबसे बड़ी है और इसमें ओएनजीसी (4.49 प्रतिशत) और रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियां शामिल हैं। इन कंपनियों की अनुमानित आय में कमी के अनुमानों का खासा प्रभाव सेंसेक्स की आय पर भी होगा।
लगातार कम हो रही कच्चे तेल की कीमतों और ग्रॉस रिफाइनिंग मार्जिन (जीआरएम) के कम होने से विश्लेषकों ने रिलायंस इंडस्ट्रीज का जीआरएम घटा दिया है। विश्लेषकों का आकलन है कि वित्त वर्ष 2010 और 2011 में कंपनी का मार्जिन 10 से 11 डॉलर प्रति बैरल रहेगा। इस प्रकार कंपनी की आय के अनुमानों में वित्त वर्ष 2009 और 2010 के लिए लगभग 10 से 20 प्रतिशत की कटौती की गई है।
कच्चे तेल की कीमत कम होने के कारण वित्त वर्ष 2010 के लिए ओएनजीसी के आय के अनुमानों में भी 7.8 प्रतिशत की कमी की गई है।
बैंकिंग
सेंसेक्स में बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं की हिस्सेदारी महत्वपूर्ण है और इनमें एचडीएफसी बैंक, एचडीएफसी, एसबीआई और आईसीआईसीआई बैंक शामिल हैं। यही वजह है कि सेंसेक्स की आय पर इनका प्रभाव सबसे अधिक होता है।
विश्लेषकों ने वित्त वर्ष 2009 और 2010 के लिए इस क्षेत्र की आय के अनुमानों में क्रमश: 8 प्रतिशत और 12 प्रतिशत की कटौती की है। खुदरा ऋण विकास में मंदी, ब्रिटेन की सहयोगी इकाई को हुए मार्क टु मार्केट घाटे और गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के बढ़ते दबावों के कारण आईसीआईसीआई बैंक की आय के अनुमानों में वित्त वर्ष 2009 के लिए 11.3 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2010 के लिए 18.2 प्रतिशत की कटौती हाल में की गई है।
दूसरी तरफ, एचडीएफसी बैंक की आय के अनुमानों में सबसे कम कटौती की गई है (वित्त वर्ष 2010 के लिए मात्र 2 प्रतिशत)। इसकी वजह कम एनपीए, बेहतर मार्जिन और जोखिम प्रबंधन प्रणाली के बेहतर होने के अनुमान हैं।
ऑटो: आसान नहीं राह
घरेलू बिक्री कम होने और अंतरराष्ट्रीय कारोबार, जिसमें जगुआर और लैंड रोवर शामिल हैं, की चिंताओं की वजह से टाटा मोटर्स की आय के अनुमानों में वित्त वर्ष 2010 के लिए 45 प्रतिशत की कटौती की गई है। कुल मिलाकर ऑटो क्षेत्र उपभोक्ताओं की घटती मांगों से प्रभावित हो रहा है।
ऑटो क्षेत्र में मंदी की वजहों में ब्याज दरों का अधिक होना भी शामिल है। कार की कुल बिक्री का लगभग 70 प्रतिशत और वाणिज्यिक वाहनों में से लगभग 90 प्रतिशत के लिए कर्ज लिया जाता है। चूंकि वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री अर्थव्यवस्था के विकास पर निर्भर करती है, इसलिए आर्थिक मंदी के कारण वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री भविष्य में और घट सकती है।
ट्रैक्टर की श्रेणी में विकास को देखते हुए महिंद्रा ऐंड महिंद्रा अपेक्षाकृत सुरक्षित है। विश्लेषकों ने वित्त वर्ष 2009 और 2010 के इसकी आय के अनुमानों में बढ़ोतरी की है। अच्छी घरेलू बिक्री और बेहतर निर्यात के अनुमानों के कारण मारुति की आय के अनुमानों में कटौती करना महत्वपूर्ण नहीं है।
दोपहिया और तिपहिया की बिक्री साल दर साल आधार पर अक्टूबर महीने में 10 प्रतिशत कम हुई थी। सबसे अधिक कमी बजाज ऑटो के कारोबार में आई थी। साल दर साल आधार पर इसमें 31 प्रतिशत की कमी देखी गई। वित्त वर्ष 2009 और 2010 के लिए विश्लेषकों ने बजाज ऑटो के ईपीएस में 17 से 21 प्रतिशत की कमी की है।
आईटी: वैश्विक चिंता
सेंसेक्स में तीसरी सबसे बड़ी भागीदारी आईटी क्षेत्र की है। वित्त वर्ष 2009 के लिए आईटी क्षेत्र की आय के अनुमानों में महत्वपूर्ण कटौती नहीं की गई है। हालांकि, वित्त वर्ष 2010 के लिए इसके आय के अनुमानों में लगभग 7 से 8 प्रतिशत की कटौती की गई है जिसकी वजह वर्तमान वित्तीय संकट, अमेरिका और यूरोप में मंदी, बिलिंग दरों के कम होने के आसार और कंपनियों द्वारा कम नियुक्तियां किया जाना है।
सबसे कम प्रभाव इन पर…
सेंसेक्स में सभी शामिल लगभग सभी क्षेत्रों की कंपनियों की आय के अनुमानों में चालू और अगले वित्त वर्ष के लिए कटौती की गई है। हालांकि, एफएमसीजी (आईटीसी और एचयूएल) तथा विद्युत क्षेत्र की कंपनियों (एनटीपीसी, टाटा पावर और रिलायंस इन्फ्रा) की आय के अनुमानों में कोई कटौती नहीं की गई है।
वित्त वर्ष 2010 के लिए टाटा पावर की आय के अनुमानों में विश्लेषकों ने 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है। वित्त वर्ष 2009 के लिए एनटीपीसी की अनुमानित आय में भी विश्लेषकों ने मामूली 0.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है जबकि वित्त वर्ष 2010 के लिए इसमें 2.5 प्रतिशत की कटौती की गई है।
आईटीसी और एचयूएल की आय के अनुमानों में भी महत्वपूर्ण बदलाव नहीं किए गए हैं जबकि टेलीकॉम और अभियांत्रिकी क्षेत्र पर भी मामूली प्रभाव देखने को मिला है। कुछ कंपनियों को छोड़ कर फार्मा का क्षेत्र भी अपेक्षाकृत सुरक्षित है।
रैनबैक्सी सेंसेक्स में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली अकेली कंपनी है और इसकी भागीदारी केवल 0.59 प्रतिशत की है। ग्लेनमार्क और सन को छोड़ कर शेष गैर-सेंसेक्स कंपनियों का परिदृश्य स्थिर है।