वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को कहा कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को दीर्घकालिक, उच्च जोखिम वाले ऋण देने से बचने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इसके बजाय बैंकों को जमा आकर्षित करने, खुदरा ऋण देने और मध्यम अवधि की परियोजनाओं को समर्थन देने पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, जिससे परिसंपत्ति-देयता में अंतर के कारण गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) का संकट फिर से पैदा होने से बचा जा सके। उन्होंने कहा कि एनएबीएफआईडी जैसे संस्थान दीर्घावधि परियोजनाओं को धन मुहैया कराने के मामले में बैंकों की अपेक्षा बेहतर स्थिति में हैं।
मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में सीतारमण ने कहा, ‘बैंक सबसे पहले जमा आकर्षित करने के पहले स्रोत होने चाहिए। उन्हें जमा जुटाना चाहिए और फिर ऋण देना चाहिए। मैं यह नहीं कह रही हूं कि उनका मुख्य कारोबार यहीं तक सीमित रखा जाए। वे बहुत सचेत रहकर परियोजनाओं की मदद कर सकते हैं, जो मध्यावधि की परियोजनाएं हों, लंबी अवधि की नहीं।’
उन्होंने कहा, ‘भारतीय बैंकों की ऐसी भयानक स्थिति एक बार फिर नहीं बननी चाहिए, जब संपत्ति देनदारी में अंतर हो।’उन्होंने आगे कहा, ‘और यही वजह है कि ज्यादा जोखिम वाले दीर्घावधि ऋण देना उनके लिए उचित नहीं है, यह काम एनएबीएफआईडी के लिए बेहतर है। दीर्घावधि के लिए ज्यादा जोखिम पर धन मुहैया कराना उनका काम है, न कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का।’
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की सकल गैर निष्पादित संपत्ति (एनपीए) और शुद्ध एनपीए का अनुपात गिरकर मार्च 2024 में कई साल के निचले स्तर क्रमशः 2.8 प्रतिशत और 0.6 प्रतिशत पर पहुंच गया है। यह 2017-18 में 11 प्रतिशत से अधिक हो गया था।
उन्होंने जोर दिया, ‘तो आप उस (संपत्ति देनदारी अंतर) स्थिति में पहुंच गए और साथ ही फोन बैंकिंग भी चल रहा था जिसमें करीबियों को कर्ज दिया जा रहा था, जिसे आप बिल्कुल ही वसूल नहीं सकते थे। इसलिए बैंकों को सचेत रहना चाहिए कि वे क्या करें और कैसे करें। खासकर उन्हें बहुत ज्यादा सचेत रहना चाहिए जो बहुत ज्यादा बैंक बोर्ड के हाथों में हैं और उन्हें संपत्ति देनदारी में अंतर से बचना चाहिए।’
वित्तीय क्षेत्र को आकार देने में भारत के नियामकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रतिक्रिया देते हुए सीतारमण ने कहा, ‘वे (नियामक) वैश्विक स्तर का काम कर रहे हैं।’
उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि भारतीय नियामकों और जिस तरीके से वे काम कर रहे हैं, उससे व्यवस्था में बेहतर पारदर्शिता आई है और भारतीय नियामकों के कामकाज पर बाहर के नियामक भी विचार कर रहे हैं।’सेबी की चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच के चल रहे मसले पर उन्होंने सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन उन्होंने जोर दिया कि इस मामले में जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उनके संदर्भ में बहुत कुछ देखने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, ‘नियामकों के बारे में कुछ भी चर्चा करने के पहले मैं तथ्यों को संज्ञान में लेने की मजबूती से वकालत करती हूं।’सीतारमण का मानना है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) बास्केट और थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) बास्केट में बहुत समानता नहीं है। ‘डब्ल्यूपीआई बास्केट में कुछ ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें शायद सीपीआई में होना चाहिए। और सीपीआई बास्केट में कुछ ऐसी चीजें भी हैं जिनका शायद पहले जैसा समकालीन महत्त्व नहीं है।’ उन्होंने कहा कि इसके कंपोनेंट पर समग्रता से विचार करना चाहिए, जिससे वह समसामयिक हो सके।