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हम अवसरों का मूल्यांकन करेंगे

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 06, 2022 | 11:04 PM IST

वह आईसीआईसीआई बैंक के शीर्ष प्रबंधन टीम के नए चेहरे हैं,लेकिन बैंक के साथ दशकों से जुड़े हुए हैं। वह अंतरराष्ट्रीय और कॉरपोरेट बैंकिंग के लिए नियुक्त किए गए हैं।


बैंक के ही सीईओ केवी कामत के साथ भी उन्होंने इंस्टीटयूशन(डीएफआई)के लिए काम किया है। बैंक के विदेशी कारोबार की आधारशिला उन्होंने रखी और इसलिए ऐसा अक्सर कहा जाता है कि कामत के बाद अगले मुख्य कार्यकारी अधिकारी वही होंगे।


बैंक आगामी दिनों में क्या करने जा रहा है, इस पर अनीता भोईर और सिध्दार्थ से बातचीत की।


आप हाल ही में भारत वापस आए हैं, अब तक की यात्रा को आप किस रूप में देखते हैं?


भारत वापस आने को लेकर जो सबसे रोमांचकारी बात है कि ऐसे समय में मेरी वापसी हुई है जब यहां भारत में बहुत कुछ हो रहा है। पिछले छह महीनों से मैं इसी रोमांच के सागर में गोता लगा रहा हूं। खासकर हमारी टीम ने जिस तरह से काम किया है,वह खासा सुखद अनुभूति देने वाला है।


पिछले कई सालों से हमने अपना सारा ध्यान कॉरपोरेट बैंकिं ग बिजनेस पर लगाए रखे हैं,और जिसके परिणाम एक मजबूत एकीकरण को लेकर मिल रहा है। इसी का तकाजा है कि  हमें विदेशों में अपने बैंकिंग संबंधी कारोबार को बढ़ाने में मदद मिली। खासकर इसने हमारे विदेशी विलय और अधिग्रहण संबंधी बाजार(एम एंड ए) के लिए एक अहम भूमिका अदा की।


इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य बेहद घरेलू रखा गया है और हमें इस स्पेस में अभी और काम करना बाकी है। इस काम में  हमारे आकार भी हमारी मदद करेंगे। इसके अलावा हमारे मूल्यांकन कौशल भी औरों के मुकाबले बेहतर हैं,लिहाजा,बड़े फाइनेंसियल पोर्टफोलियों को तैयार और उससे कारोबार करने में भी मदद मिलेगी।


आपने किस प्रकार लो-कॉस्ट डिपॉजिट बनाए और अपने वैश्विक ऑपरेशन के लागत कम रखने में आप किस प्रकार सफल हुए?


वैश्विक कारोबार तो आईसीआईसीआई बैंक के रसूख के चलते अच्छा चल रहा है। जहां तक बात लागत की करें तो हमारे पास जो तकनीक है,वह अन्य बैंको के पास उपलब्ध तकनीक से काफी सस्ता है।


आईसीआईसीआई पीएलसी (यूरोप में बैंक की पालिसी)की कॉस्ट-टू-इनकम रेशियो भी अन्य वैश्विक बैंको के मुकाबले 25 फीसदी है। इसके अलावा जमा खातों पर कॉस्ट-पर- ट्रांजक्सन भी कम हो रहा है,जबकि बैलेंस-पर- अकांउट में इजाफा जारी है। हमारे पास अच्छे साधन हैं,और हमें ग्राहकों से शिकायतें भी कम मिलती हैं। हम अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए विज्ञापनों पर खर्च नही करते और साथ ही,ब्याज दर अदा करने वाले टॉप फाइव की फेहरिस्त में भी हम नही हैं।


अमेरिकी सबप्राइम क्राइसिस का भारत के कॉरपोरेट ग्रोथ और फंडिंग प्लान पर क्या असर पड़ा है?


मुझे नही लगता कि इसका कोई खास असर भारत के कॉरपोरेट ग्रोथ औरा फंडिंग प्लान पर पड़ा है। मैने किसी भी बड़े बिजनेस घराने को इस क्राइसिस के चलते कोई डील तोड़ते नही देखा है। हां,रूपया मजबूत होने के चलते फंडों की लागत में इजाफा जरूर हुआ है।


कामत के बाद अगले उत्तराधिकारी के रूप में आपको देखा जा रहा है?


इस वक्त मेरे पास एक खासी रोमांचक नौकरी हाथ में है,और बैंक के लिहाज से यह एक अहम मसला है। स्पष्ट रूप से कहूं तो यही वह चीज है जो मेरे लिए जरुरी है।

First Published : May 13, 2008 | 10:19 PM IST