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नकदी प्रबंधन हो सकती है पूनम गुप्ता की प्राथमिकता

(एनसीएईआर) की पहली महिला महानिदेशक रहने के साथ ही प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य और 16वें वित्त आयोग की सलाहकार परिषद की संयोजक भी हैं।

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मनोजित साहा   
Last Updated- April 02, 2025 | 10:36 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की नवनियुक्त डिप्टी गवर्नर पूनम गुप्ता को अन्य विभागों के अलावा सबसे महत्त्वपूर्ण मौद्रिक नीति विभाग मिलने की संभावना है। केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दर में कटौती का चक्र शुरू किया गया है, ऐसे में गुप्ता को मौद्रिक नीतियों का बेहतर तरीके से आगे लाभ पहुंचाने के उपाय तलाशने होंगे। उनकी नियुक्ति मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की अप्रैल की बैठक से कुछ ही दिन
पहले हुई है।

गुप्ता नई दिल्ली की नैशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) की पहली महिला महानिदेशक रहने के साथ ही प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य और 16वें वित्त आयोग की सलाहकार परिषद की संयोजक भी हैं। डिप्टी गवर्नर का पद संभालने से पहले उन्हें ये जिम्मेदारियां छोड़नी पड़ सकती हैं।

आरबीआई की छह सदस्यों वाली मौद्रिक नीति समिति में गुप्ता मौद्रिक नीति के प्रभारी डिप्टी गवर्नर के रूप में बतौर सदस्य शामिल होंगी। समिति ने फरवरी की बैठक में नीतिगत रीपो दर में कटौती की थी। केंद्रीय बैंक द्वारा पिछले पांच वर्षों में पहली बार ब्याज दरों में कटौती की गई है। चालू वित्त वर्ष में एमपीसी की पहली बैठक 7 से 9 अप्रैल तक होगी जिसमें रीपो दर में एक और कटौती की उम्मीद है।
गुप्ता ने दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की है और अमेरिका के मैरीलैंड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की है।

फरवरी में नीतिगत दर में कटौती के बावजूद बैंक ऋण और जमा दर में इसका लाभ नहीं मिल पाया। बैंकों ने बाह्य बेंचमार्क से जुड़ी दर (ईबीएलआर) में कटौती की है। इस तरह का कर्ज खुदरा और छोटे व्यवसाय को दिया जाता है तथा ये ज्यादातर रीपो दर से जुड़ा होता है। मगर कॉर्पोरेट को दिए जाने वाले कर्ज की दर यानी सीमांत कोष लागत आधारित दर (एमसीएलआर) में कोई बदलाव नहीं हुआ है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बैंकों ने अभी तक जमा दरों में कटौती नहीं की है। एमसीएलआर कोष की लागत से जुड़ी है इसलिए जब तक बैंकों की जमा लागत में कमी नहीं आएगी, वे एमसीएलआर में कटौती करने की स्थिति में नहीं होंगे। बैंकों की लोन बुक में ईबीएलआर और एमसीएलआर की हिस्सेदारी 40-40 फीसदी है।

बैंकिंग तंत्र में करीब चार महीने से नकदी की कमी बनी हुई है। हालांकि पिछले सप्ताहांत में तरलता में मामूली अधिशेष दिखा। तरतला की कमी के कारण भी ग्राहकों को दर कटौती का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। खुले बाजार परिचालन नीलामी और डॉलर-रुपये खरीद/बिक्री स्वैप के माध्यम से आरबीआई ने बैंकिंग प्रणाली में 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की तरलता डाली है, इसके बावजूद जनवरी से तरलता की कमी देखी गई। इसके अलावा अप्रैल की शुरुआत में परिपक्व होने वाले रीपो के माध्यम से 1.8 लाख करोड़ रुपये और डाले गए।

आम तौर पर रीपो कटौती का बैंकों द्वारा लाभ पहुंचाने में समय लगता है और इसमें दो तिमाही तक लग सकती हैं। लेकिन आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा है कि केंद्रीय बैंक जल्द से जल्द रीपो कटौती का असर कर्ज की दर में देखना चाहता है।

मल्होत्रा ने फरवरी में नीतिगत

समीक्षा बैठक के बाद कहा था, ‘हमारा प्रयास बैंकिंग तंत्र में नकदी बढ़ाने का होगा ताकि दर कटौती का लाभ जल्द मिल सके।’
बैंकिंग तंत्र में नकदी की स्थिति को दुरुस्त करने के लिए आरबीआई के अधिकारी गुरुवार को बैंकरों के साथ बैठक करेंगे।

वृहद अर्थशास्त्र और उभरती अर्थव्यवस्थाओं से संबंधित मुद्दों की विशेषज्ञ गुप्ता ऐसे समय में केंद्रीय बैंक में शामिल हो रही हैं जब इस बात पर बहस चल रही है कि क्या आरबीआई को हेडलाइन मुद्रास्फीति के बजाय मुख्य मुद्रास्फीति को लक्षित करना चाहिए। हेडलाइन मुद्रास्फीति में खाद्य पदार्थों की कीमतों के कारण तेजी देखी जाती है। इस समय यह चर्चा इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि मौद्रिक नीति ढांचे की समीक्षा होनी है जो 1 अप्रैल, 2026 से अगले पांच साल के लिए प्रभावी होगी।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में इकनॉमिक्स ऐंड पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर बैरी आइशेनग्रीन के साथ अगस्त 2024 में एनसीएईआर के एक संयुक्त पेपर में गुप्ता ने कहा था कि प्रमाण से पता चलता है कि पिछले आठ वर्षों में मुद्रास्फीति को लक्षित करने से बेहतर परिणाम मिले हैं, जिसमें मुद्रास्फीति में कमी आई और अस्थिरता भी घटी है।

रिपोर्ट के लेखकों ने खुदरा मुद्रास्फीति बास्केट में खाद्य कीमतों के भार को अद्यतन करने का सुझाव देते हुए कहा, ‘इस रिकॉर्ड को देखते हुए आरबीआई को हेडलाइन मुद्रास्फीति के बजाय कोर मुद्रास्फीति को लक्षित करना या लक्ष्य और सहज दायरे को बदलना जैसे कदम जोखिम भरे और प्रतिकूल होंगे।’ उन्होंने सुझाव दिया कि आज के समय में प्रति व्यक्ति आय पर खाद्य पदार्थों का भार मौजूदा 45.8 फीसदी के बजाय 40 फीसदी होना चाहिए।

पेपर में कहा गया है, ‘प्रति व्यक्ति आय में अनुमानित वृद्धि के कारण यह संभवतः एक दशक में घटकर लगभग 30 फीसदी हो जाएगा। यह सुधार वर्तमान मुद्रास्फीति का लक्ष्य तय करने की व्यवस्था के बारे में चिंता को कम करेगा।’

बाजार अप्रैल की मौद्रिक नीति में गुप्ता के दृष्टिकोण का इंतजार कर रहा है कि वह 25 आधार अंक या अधिक की कटौती के पक्ष में वोट देती हैं या नहीं क्योंकि इससे वृद्धि और मुद्रास्फीति के बीच उनकी प्राथमिकता का संकेत देगा। यह भी देखना होगा कि वह रुख में बदलाव के पक्ष में वोट देती हैं या नहीं। फरवरी की बैठक में समिति के सभी छह सदस्यों ने तटस्थ रुख बनाए रखने के लिए वोट दिया था।

First Published : April 2, 2025 | 10:27 PM IST