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मुख्य क्षेत्रों के लिए सस्ते हों ऋण: बैंक

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 7:04 PM IST

ऐसे समय में जब बुनियादी परियोजनाओं (इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट) में वित्तीय सहायता की जरूरत महसूस की जा रही है।


वहीं बैंकरों ने खतरे की घंटी बजा दी है और कहा है कि मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए अगर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा 50 आधार अंक की भी बढ़ोतरी की जाती है तो इससे मौजूदा परियोजनाओं के लिए वित्तीय संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो जाएंगी।


इसी हफ्ते की  शुरुआत में भारतीय रिजर्व बैंक के साथ अन्य बैंक अध्यक्षों की एक बैठक हुई थी। बैठक में तेजी से बढ़ते मुद्रास्फीति के बारे में भी चर्चा की गई थी। इस प्री-पॉलिसी बैठक के दौरान बैंकरों ने कहा था कि सरकार और कंद्रीय बैंक द्वारा सड़क, पॉवर प्लांट और बंदरगाहों जैसी बुनियादी परियोजनाओं के लिए मुहैया किए जाने वाले ऋण को सस्ते करने की ओर कदम बढ़ाया जाना चाहिए।


हालांकि सरकार और आरबीआई पहले से ही बैंकरों को ऋण मुहैया करवाने के लिए कई तरह के  उपाय शुरू किए हैं। लेकिन विभिन्न परियोजनाओं में राशि मुहैया कराने के लिए बैंकों को अभी भी कई उपायों की जरूरत है।


योजना आयोग ने बताया कि अगर अगले पांच सालों में भारत को विकसित देशों की श्रेणी में आना है, तो इन्फ्रास्ट्रक्चर की क्षेत्र में अभी 500 बिलियन डॉलर निवेश करने की आवश्यकता है। आयोग का मानना है कि देश के आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ने की एक खास वजह इन्फ्रास्ट्रक्चर का कमजोर होना भी है।


एक बैंक के अध्यक्ष ने बताया,”नई परियोजनाओं में धीमी गति के संकेत पहले से ही दिखाई पड़ रहे हैं। अभी भी कुछ ऐसी परियोजनाएं हैं जो बीते छह-सात महीनों से पाइपलाइन में ही हैं।”


बैंकरों का कहना है कि वर्तमान समय में बैंकों द्वारा 10.5 फीसदी की ब्याज दर पर बुनियादी परियोजनाओं को फंड मुहैया करवाया जाता है,जो कि काफी अधिक समझा जाता है। अगर मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए ब्याज दर को 11 फीसदी तक बढ़ा दिया गया तो बुनियादी परियोजनाओं के लिए मुश्किलें काफी बढ़ जाएंगी।


इसके अलावा बैंकर ने बताया,”ज्यादातर बुनियादी परियोजनाएं लंबी अवधि वाली परियोजनाएं हैं।  लिहाजा ऐसी स्थिति में जहां ऋण दरों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है, इससे परियोजनाओं के लिए चुनौतियां बढ़ सकती हैं। खासकर ऊर्जा और बंदरगाह परियोजनाओं में अधिक समस्या उत्पन्न हो सकती है।”


इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस कंपनी के अध्यक्ष एस. एस. कोहली ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि अभी कुछ नई परियोजनाएं आ सकती हैं और उसके लिए ऋण की जरूरत होगी।


आईडीबीआई के अध्यक्ष योगेश अग्रवाल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को दिए साक्षात्कार में कहा कि साल 2007-08 के दौरान जो फंड आवंटित किए गए थे, उसे कंपनियों द्वारा इस्तेमाल नहीं किया गया था। कंपनियां यह उम्मीद कर रही थीं कि आने वाले कुछ महीनों में ऋण दरों में कमी आ जाएगी। लेकिन अब स्थिति ऐसी बन गई हैं कि ऋणों दरों के  दबाव की वजह से बहुत सारी परियोजनाओं पर रोक लग सकती है।

First Published : April 4, 2008 | 11:25 PM IST