विधानसभा चुनाव

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024: लुभावने वादों में सभी दल आगे, मगर राज्य की वित्तीय चुनौतियां भी सामने

Haryana Assembly Elections 2024: वित्त वर्ष 25 में ऋण और GSDP अनुपात लगभग 26.1 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान जारी किया गया था। वित्त वर्ष 20 में यह 25.1 प्रतिशत के स्तर पर था।

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शिखा चतुर्वेदी   
Last Updated- September 30, 2024 | 10:06 PM IST

हरियाणा में विधान सभा चुनाव के लिए 5 अक्टूबर को मतदान होगा। प्रचार अभियान अब अंतिम चरण में पहुंच गया है। मतदाताओं को लुभाने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां बढ़-चढ़ कर वादे कर रही हैं और लगभग सभी ने अपने-अपने घोषणा पत्रों को कल्याणकारी योजनाओं से सजाया है। हरियाणा में राजस्व की कोई कमी नहीं है और राजनीतिक दल स्थानीय संसाधनों के सहारे चुनावी वादों को पूरा करने का दम भर रहे हैं।

राज्य में सभी दलों का जोर जवान, किसान और पहलवान के मुद्दों पर है। मालूम हो कि कृषि प्रधान राज्य हरियाणा की पहचान पहलवानों से भी है और यहां अधिकांश युवा सेना एवं पुलिस की नौकरी पसंद करते हैं। इसलिए प्रमुख मुद्दे इन्हीं से संबंधित हैं और प्रचार अभियान भी इन्हीं के इर्द-गिर्द घूम रहा है। इसके अलावा बेरोजगारी और महिला कल्याण की बातें भी चुनाव में हो रही हैं।

किसानों के लिए राजनीतिक दल न्यूनतम समर्थन मूल्य, बुनियादी विकास, महिलाओं के खाते में नकद ट्रांसफर और पूर्व अग्निवीरों के लिए सरकारी नौकरी की गारंटी जैसे मुद्दे जोर-शोर से उठाए जा रहे हैं।

हरियाणा खेती पर अपने कुल बजट का 5.3 प्रतिशत ही खर्च करता है, जो अन्य राज्यों के औसत 5.9 प्रतिशत से काफी कम है। इस संदर्भ में किसानों से संबंधित प्रस्तावित योजनाएं और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी जैसे वादे समय की मांग हैं और जो भी राजनीतिक दल अपने इन मुद्दों को बेहतर ढंग से पेश करेगा, वही किसानों का समर्थन हासिल कर सकता है।

राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों में महिला कल्याण के मुद्दे को भी प्रमुखता से उभारा गया है। इस समय हरियाणा में महिलाओं में बेरोजगारी दर 2.2 प्रतिशत है और उनके काम या रोजगार की गुणवत्ता चिंता का सबब बनी हुई है।

लगभग 38.6 प्रतिशत महिलाएं अलिखित अनुबंध पर काम करने को मजबूर हैं और वे सवैतनिक छुट्टी और सामाजिक सुरक्षा लाभों से भी वंचित रहती हैं। कार्य क्षेत्र में 36.8 प्रतिशत पुरुष भी इसी प्रकार की समस्याओं और चुनौतियों से जूझ रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा ऐसा राज्य है, जहां की जनसंख्या में महिला पुरुष अनुपात में गहरी खाई है। इससे सामाजिक पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ा रहा है।

राजनीतिक दल सामान्य रूप से बेरोजगारी का मुद्दा भी प्राथमिकता से उठा रहे हैं। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि हरियाणा में बेरोजगारी दर में उल्लेखनीय रूप से कमी आई है। वर्ष 2022-23 में यह 6.1% थी जो 2023-24 में गिरकर 3.4% पर आ गई है। यह राष्ट्रीय औसत से थोड़ा ऊपर है। रोजगार के मोर्चे पर यह सकारात्मक संकेत है, फिर भी स्नातक और परास्नातकों के लिए काम पाना बड़ी चुनौती बना हुआ है।

राज्य में स्नातकों और परास्नातकों में बेरोजगारी दर क्रमश: 6.6 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत है। यद्यपि ये आंकड़े राष्ट्रीय औसत से कम हैं, फिर भी चिंता का विषय हैं और इस दिशा में काफी ध्यान दिए जाने की जरूरत पर बल देते हैं। इतना ही नहीं, नौकरी की गुणवत्ता का मुद्दा अभी भी गंभीर बना हुआ है। लगभग 46.6 प्रतिशत लोग स्वरोजगार से जुड़े हैं।

वर्ष 2022-23 में यह आंकड़ा 45.3 प्रतिशत पर था यानी अपना काम करने वालों की संख्या बढ़ी है। इसके उलट कुल नौकरियों में केवल 39 प्रतिशत ही वेतनभोगी या नियमित प्रकृति की हैं। इस दिशा में बहुत अधिक सुधार की जरूरत दिखती है। अंत में, राजनीतिक दल अग्निवीरों में बेरोजगारी को लेकर भी थोड़ा सतर्क हैं और अपने चुनावी घोषणा पत्रों में इस चुनौति से निपटने का प्रमुखता से जिक्र किया है।

चाहे जिस पार्टी की भी सरकार बने, चुनावी वादों को पूरा करने के लिए हरियाणा की अपने दम पर कर राजस्व जुटाने की क्षमता काफी उत्साहजनक तस्वीर पेश करती है। अनुमान के मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष में कुल राजस्व प्राप्ति का 72.5 प्रतिशत स्थानीय कर स्रोतों से आएगा।

स्थानीय करों के मामले में वर्ष 2023-24 में राष्ट्रीय औसत केवल 49.2 प्रतिशत ही था। राजस्व पैदा करने की इतनी मजबूत स्थिति के कारण राज्य को सामाजिक मुद्दों और कल्याणकारी योजनाओं पर पैसा खर्च करने में कोई दिक्कत पेश नहीं आएगी, लेकिन राज्य के ऋण भार को लेकर चुनौती बरकरार है।

वित्त वर्ष 25 में ऋण और जीएसडीपी अनुपात लगभग 26.1 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान जारी किया गया था। वित्त वर्ष 20 में यह 25.1 प्रतिशत के स्तर पर था।

भारतीय रिजर्व बैंक की 2022 की रिपोर्ट में हरियाणा को ऋण और जीडीपी अनुपात मामले में शीर्ष 10 राज्यों में रखा गया है। ऋण का लगातार बढ़ता भार राज्य के वित्तीय सेहत के लिए काफी चुनौतीपूर्ण है और दीर्घावधि में सामाजिक कल्याण की योजनाओं पर खर्च करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।

राज्य के अपने कर राजस्व का 60 प्रतिशत वेतन, ब्याज भुगतान और पेंशन आदि पर खर्च हो जाता है। इसके अलावा, राज्य को पूंजी परिव्यय को वित्त वर्ष 2020 में ₹17,666 करोड़ से घटाकर वित्त वर्ष 25 में अनुमानित ₹16,821 करोड़ करना पड़ा।

First Published : September 30, 2024 | 10:05 PM IST