भारतीय रिजर्व बैंक के मौजूदा गवर्नर यागा वेणुगोपाल रेड्डी के कार्यकाल पर कयासों का माहौल गर्म हैं कि उनका कार्यकाल बढ़ाया जाएगा या कोई नया व्यक्ति उनकी जगह लेगा।
गौरतलब है कि रेड्डी का पांच वर्षीय कार्यकाल सितंबर में समाप्त हो रहा है। गवर्नर कोई भी हो लेकिन उसे कुछ चुनौतियों का सामना करना पडेग़ा जैसे महंगाई दर अपने 13 सालों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है, विकास दर में नौ फीसदी के स्तर से धीरे-धीरे गिरावट आ रही है और सब्सिडी की वजह से जनता की पर्स पर बोझ पड़ रहा है।
इसके अलावा सरकारी प्रभुत्व वाला बैंकिंग सेक्टर भी अगले साल ज्यादा विदेशी भागेदारी के लिए तैयार दिखता है। भारत ने खुद को रुपए की कन्वटबिलिटी के लिए तैयार कर लिया है। भारत की एक खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था संक्रमण के दौर में है।
मैक्वारे कैपिटल सेक्योरिटीज में इंडिया और एशियान इकोनोमिक्स के हेड राजीव मलिक ने कहा कि चाहे रेड्डी हो या कोई और , सबका मुख्य जोर महंगाई पर नियंत्रण रखकर विकास दर को बरकरार रखने पर होगा। भारतीय मीडिया में चर्चा है कि रेड्डी को कार्यकाल विस्तार मिल सकता है क्योंकि सरकार उन्हें चुनावों तक बरकरार रखने के लिए उत्सुक है।
भारत में चुनाव मई 2009 तक होनें हैं और कार्यकाल विस्तार दूसरी सरकार को अपनी पसंद का गवर्नर नियुक्त करने की छूट देगा। यदि रेड्डी इस पद से हटते हैं तो इस पद के लिए तीन संभावित उम्मीदवार हैं- रिजर्व बैंक के डिप्टी डायरेक्टर राकेश मोहन, वित्त्त सचिव डी. सुब्बाराव और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में भारत के डायरेक्टर आदर्श किशोरे।
रेड्डी का कार्यकाल पांच सितंबर को समाप्त हो रहा है और जल्द ही इस पर निर्णय लिए जाने की संभावना है। प्रावधानों के अनुसार रिजर्व बैंक के गवर्नर के कार्यकालों और उनके कार्यकाल विस्तार को सीमित नहीं किया गया है। बाजार के लिए प्राथमिकता भारत की उदारवादी अवस्था को पटरी पर रखना होगा।
कई विश्लेषकों का मानना है कि रेड्डी का ध्यान मुख्य रूप से विकास दर को बरकरार रखने और सबप्राइम संकट के प्रभावों को खत्म करने पर रहा है। आदित्य बिड़ला गु्रप केवरिष्ठ अर्थशास्त्री अजीत रानाडे का कहना है कि आर्थिक गतिविधि में बहुत सीमित बढ़त होने के बावजूद ,एक्सटरनल इंगेजमेंट और निवेश में काफी स्थिरता है।
उनके कार्यकाल में विकास दर औसत रूप से 8.8 फीसदी रही और उनके पांच साल के कार्यकाल में लगातार मुद्रा नीति को कड़ा किया गया। दूसरे अन्य क्रेंद्रीय बैंकों के बजाय भारतीय रिजर्व बैंक ने सिर्फ महंगाई को नियंत्रण करने पर फोकस नहीं किया बल्कि वित्त्तीय स्थिरता को बरकरार रखने और रोजगार के ज्यादा अवसरों पर ध्यान दिया।
महंगाई की दर बढ़ती कच्चे तेल और कमोडिटी की कीमतों की वजह से 12 फीसदी केस्तर पर पहुंच गई। लीमैन ब्रदर्स में अर्थशास्त्री रोब सुब्बारमन का कहना है कि महंगाई सिर्फ भारत की समस्या न होकर पूरी दुनिया की समस्या है। पिछले समय के दौरान लेंडिंग रेट में बढ़ोतरी करने के बाद आरबीआई महंगाई से लड़ने के लिए गंभीर दिखती है।
इसके अलावा आरबीआई ने प्रॉपर्टी मार्केट के लिए बैंक लेडिंग के प्रावधानों को भी टाइट किया है। क्रेडिट ल्यूनेस सिक्योरिटीज एशिया के क्रिस वुड कहते हैं कि आरबीआई ही एक ऐसा केंद्रीय बैंक रहा है जिसने बेहतरीन तरीके से निपटा है और बैंक ने सिर्फ सीपीआई पर ही फोकस नहीं किया है।