रक्षा शिपयार्ड के बदलते तेवर : सारी दुनिया पर है नजर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 9:43 PM IST

कई दशकों तक भारत के तीन शिपयार्ड (जलपोत बनाने का कारखाना)सार्वजनिक क्षेत्र की अक्षमता और रक्षा मंत्रालय की ढुलमुल नीति की वजह से प्रभावित रहे।


मार्क्सवादियों के गढ़ कोलकाता में तो गाडर्ेन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंटरप्राइजेज(जीआरएसई) में तो यूनियनबाजी भी जोरों पर रही जिसकी वजह से जंगी जहाजों के निर्माण में देरी हो जाया करती थी। लेकिन ये सारी बातें अब इतिहास ही है। अब रक्षा मंत्रालय का अब अपने शिपयार्डों पर नियंत्रण ढीला हो गया है। इस वजह से अब स्थितियां बिल्कुल अलग हो गई है।


बिजनेस स्टैंडर्ड को यह जानकारी मिली है कि जीआरएसई युध्द पोतों और मचर्ेंट शिप के वास्ते डिजाइन सेंटर बनाने के लिए फ्रांस की एक कंपनी डीसीएनएस (डायरेकशन डेस कंस्ट्रकशन नेवलिस सर्विसेज) के साथ बातचीत कर रही है। यह भारत और विश्व बाजार को लक्षित करेगा।जीआरएसई के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक रियर एडमिरल टी एस गणेशन ने इस बात पर जोर दिया कि बातचीत अभी चल ही रही है और किसी प्रकार की सहमति बनने पर इसकी घोषणा कर दी जाएगी।


एडमिरल गणेशन बताते हैं कि डिजाइन केंद्र को इस तरह विकसित किया जा रहा है कि इससे जंगी और मचर्ेंट दोनों तरह के जहाजों का डिजाइन बनाया जा सके। हम इस सिलसिले में विदेशी शिपयार्ड से भी संपर्क बनाना चाहते हैं क्योंकि उनके यहां इसे बनाने की कीमत काफी ज्यादा है। वे कोलकाता से डिजाइन प्राप्त कर सकते हैं और उसके बाद जहाज अपने यहां अपेक्षाकृत सस्ते दामों पर बना सकते हैं।जीआरएसई ने इस बात की पुष्टि की कि इसमें एक तीसरे सहयोगी से भी बात की जा रही है और वह सहयोगी है भारतीय आईटी इंजीनियरिंग कंपनी इन्फोटेक इंटरप्राइजेज।


इस कंपनी का नाम जियोस्पेसियल इंफॉरमेशन सिस्टम (जीआईएस)बहुत मशहूर है। इस कंपनी ने अमेरिकी सेना के लिए पहले ही एक डिजाइन सिस्टम बनाने के लिए काम किया है और इसने प्यूर्टो रिको के साथ संयुक्त वेंचर में इस काम को अंजाम दिया है। इस तरह के किसी भी संयुक्त वेंचर से इनकार करते हुए इन्फोटेक इंटरप्राइजेज के सीईओ बी वी आर मोहन ने कहा कि हमारे कुल राजस्व का 68 प्रतिशत इंजीनियरिंग क्षेत्र से आता है।


और इसमें से 62 प्रतिशत तो एयरोस्पेस क्षेत्र से आता है लेकिन कंपनी समुद्री और जहाज निर्माण की प्रक्रि या में पिछले दो साल से पूरी तन्मयता से लगी है। हमारे पास जहाज के निर्माण में माहिर 150 इंजीनियर हैं। इस क्षेत्र में हमलोग अपने पैर और फैलाना चाहते हैं।एडमिरल गणेशन कहते हैं कि वे इस डिजाइन केंद्र के गठन से खुश हैं और चाहते हैं कि संयुक्त वेंचर की प्रक्रिया अगस्त 2008 तक पूरी हो जाए। हालांकि इसके लिए जीआरएसई की बैठकों में एक आम राय होना जरूरी है।


जीआरएसई रक्षा मंत्रालय की अपेक्षाओं से कहीं आगे निकल रही है। अब तो रक्षा मंत्रालय किसी और डिजाइन केंद्र को बनाने का विचार नहीं कर रही है क्योंकि वह सोच रही है कि जीआरएसई, मझगांव डॉक्स लि. (एमडीएल)और गोवा शिपयार्ड लि.(जीपीएल) के जरिये ही हर तरह के जहाजों के डिजाइन तैयार कर लिए जाए। लेकिन जीआरएसई तो अपनी गति पकड़ ही चुकी है, साथ ही एमडीएल भी अपने दम पर संयुक्त वेंचर जैसी प्रक्रि या को कार्यरूप दे रही है।


एमडीएल के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक वाइस एडमिरल एस के के कृष्णन ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि  शिपयार्ड बनाने को लेकर एमडीएल चार कंपनियों से बात कर रही है और इस संबंध में उसने आईसीआरए को बतौर कंसल्टेंट नियुक्त किया है जो संयुक्त वेंचर की बारीकियों और कानूनी पेंचीदगियों के बारे में दिशा निर्देशन कर सके। एमडीएल किसी तीसरी आईटी सहयोगी के  बारे में नही सोच रही है जैसा जीआरएसई सोच रही है।रक्षा मंत्रालय इस बात से चिंतित है कि इस तरह के डिजाइन कें द्र की वजह से बहुत सारे डिजाइन ब्यूरो प्रभावित हो रहे हैं।

First Published : April 16, 2008 | 10:38 PM IST