अमेरिका की तरफ से लगाए गए जवाबी टैरिफ (reciprocal tariffs) से आर्थिक वृद्धि की रफ्तार धीमी पड़ सकती है। इसे देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रेपो रेट में 75 से 100 बेसिस प्वाइंट तक की कटौती कर सकता है। कई ब्रोकरेज हाउस का अनुमान है कि महंगाई दर फिलहाल काबू में रहने की उम्मीद है, इसलिए ब्याज दर में कटौती की संभावना बन रही है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) की अगली बैठक अगले हफ्ते होने जा रही है। यह बैठक चालू वित्त वर्ष 2025-26 (FY26) की पहली समीक्षा बैठक होगी। उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार भी समिति रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट (bps) की कटौती कर सकती है।
गौरतलब है कि फरवरी में MPC ने रीपो रेट में 25 bps की कटौती की थी, जो पांच साल में पहली बार हुआ था।
इस बीच, गोल्डमैन सैक्स (Goldman Sachs) के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अमेरिका की हालिया GDP ग्रोथ में कटौती और पहले क्वार्टर के कमजोर आंकड़ों के चलते भारत की ग्रोथ को नुकसान हो सकता है। उनके मुताबिक, ‘रिसिप्रोकल टैरिफ’ यानी जवाबी शुल्क से भारत की इकॉनमी को 30 बेसिस प्वाइंट (bp) का झटका लग सकता है। इसके अलावा सर्विस एक्सपोर्ट में सुस्ती से और 20 bp की गिरावट आ सकती है।
कुल मिलाकर 50 bp का असर भारत की ग्रोथ पर पड़ सकता है। इस आधार पर गोल्डमैन सैक्स ने कहा है कि वह 2025 में 50 बेसिस प्वाइंट की अतिरिक्त मौद्रिक नरमी (monetary easing) की उम्मीद कर रहे हैं। इसके तहत दूसरी और तीसरी तिमाही में 25-25 bp की कटौती की जा सकती है। इस तरह पूरे चक्र में कुल 100 bp की रेपो रेट कटौती की जा सकती है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2025 के आखिरी क्वार्टर तक महंगाई दर 4% से नीचे रह सकती है। इसके अलावा लिक्विडिटी में सुधार से 10 bp और क्रूड की कीमतों में गिरावट से भी 10 bp का ग्रोथ सपोर्ट मिल सकता है।
अमेरिका ने भारत से आने वाले कुछ प्रोडक्ट्स पर 26% रेसिप्रोकल टैरिफ यानी बराबरी का आयात शुल्क लगाने का प्रस्ताव दिया है, जो 9 अप्रैल से लागू हो जाएगा। यह टैक्स मार्केट की उम्मीदों से काफी ज्यादा है। हालांकि, यह टैक्स कुछ एशियाई देशों के मुकाबले कम है, जिससे भारत को थोड़ी राहत मिल सकती है।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका ने कई अन्य देशों पर इससे भी ज्यादा आयात शुल्क लगाए हैं। ऐसे में उन देशों से सस्ते प्रोडक्ट्स भारत में डंप किए जाने की संभावना बढ़ सकती है। इससे भारत में महंगाई कुछ हद तक कम हो सकती है।
UBS की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि फरवरी में हुई 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती के बाद मौजूदा चक्र में रीपो रेट में और 50 बेसिस प्वाइंट तक कटौती की गुंजाइश है।
रिपोर्ट के मुताबिक, “मुद्रा में लचीलापन बनाए रखने के साथ ही हमें उम्मीद है कि आगे भी मौद्रिक नीति में सहयोग मिलेगा। इसमें रीपो रेट में और कटौती, लिक्विडिटी सपोर्ट और नियामकीय छूट शामिल हो सकती है।”
गौरतलब है कि फरवरी की कटौती से पहले मई 2022 से फरवरी 2023 के बीच कुल 250 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी की गई थी। वहीं, घरेलू मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने अक्टूबर 2023 में अपने रुख को ‘विथड्रॉअल ऑफ एकमोडेशन’ से बदलकर ‘न्यूट्रल’ कर दिया था।
वित्त वर्ष 2025-26 में देश की इकॉनमी ग्रोथ 6.5% रहने का अनुमान है, लेकिन एमके ग्लोबल (Emkay Global) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस अनुमान पर अब नीचे की ओर खतरा बढ़ गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, अगर अमेरिका और दूसरे देशों की ओर से ग्लोबल ट्रेड पर भारी टैरिफ लगे रहते हैं, तो इससे ग्लोबल या अमेरिकी मंदी का खतरा बढ़ सकता है, जो भारत की ग्रोथ को भी प्रभावित करेगा।
Emkay Global ने यह भी कहा कि ग्लोबल कमोडिटी की कीमतों में गिरावट और सामानों की ज्यादा सप्लाई से भारत के इंडस्ट्रियल सेक्टर पर डिसइन्फ्लेशन (मूल्य घटने का असर) पड़ सकता है।
हालांकि भारत पर ग्लोबल टैरिफ और एक्सपोर्ट में गिरावट का असर बाकी देशों की तुलना में थोड़ा कम हो सकता है, लेकिन फिर भी भारत बाकी उभरते एशियाई बाजारों (EM Asia) के साथ साइकलिक डाउनटर्न से बच नहीं पाएगा। रिपोर्ट के मुताबिक, इस माहौल में आरबीआई और बाकी इमर्जिंग मार्केट्स के सेंट्रल बैंक को फाइनेंशियल मार्केट्स के जरिए कई तरह के दबावों और राहत संकेतों का सामना करना पड़ेगा, भले ही उनका झुकाव दरों में कटौती की ओर क्यों न हो।