जेफरीज के विश्लेषकों का कहना है कि बदले हालात में भारत की अर्थव्यवस्था पर राजकोषीय दबाव बढ़ता जा रहा है। जेफरीज की तरफ से हाल में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि तेल के दाम 100 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गए हैं और यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। विश्लेषकों के अनुसार देश में आने वाले महीनों में कई चुनाव आने वाले हैं और ऐसे में तेल के दाम में उछाल देश के खजाने पर असर डाल सकता है।
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ महीनों से शेयर बाजार में तेजी के बाद शेयर महंगे हो गए हैं। इसे देखते हुए जेफरीज के विश्लेषकों के अनुसार निकट भविष्य में भारतीय बाजारों में अनिश्चितता बढ़ सकती है। जेफरीज में प्रबंध निदेशक महेश नंदूरकर, अभिनव सिन्हा और निशांत पोद्दार ने मिलकर यह रिपोर्ट तैयार की है।
नंदूरकर ने कहा, ‘निफ्टी 20,000 से ऊपर चला गया है और एक साल का फॉरवर्ड प्राइस-अर्निंग्स (पीई) 19.3 गुना स्तर पर पहुंच गया है और यह 10 वर्षों के औसत से 12 प्रतिशत अधिक है। इसे देखते हुए प्रतिफल में अंतर (यील्ड गैप) का हमारा मानक 200 आधार अंक पर है, जो मार्च के निचले स्तर से 58 आधार अंक और औसत से 69 आधार अंक अधिक है। ये आंकड़े मूल्यांकन को लेकर असहज स्थिति की ओर इशारा कर रहे हैं।‘
शेयर की रणनीति के रूप में उन्होंने कंज्यूमर स्टेपल्स (रोजाना इस्तेमाल के आवश्यक सामान बनाने वाली कंपनियां) शेयरों में खरीदारी की सलाह कम कर दी है और अपने पोर्टफोलियो में भारती एयरटेल को ऊपर कर दिया है। नंदूरकर ने कहा, ‘हम बाजार में गिरावट आने पर खरीदारी करेंगे। इसकी वजह यह है कि पूंजीगत व्यय में सुधार के बाद अब मध्यम अवधि निवेश के लिए माकूल लग रहे हैं।’
तेल में तेजी
जेफरीज का कहना है कि तेल के बढ़ते दाम और आने वाले महीनों में चुनावों की सरगर्मी से राजकोषीय स्थिति पर दबाव बढ़ सकता है। सऊदी अरब और रूस ने तेल के उत्पादन में कटौती कर दी है जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की आपूर्ति कम हो गई है और इसका सीधा असर ऊंची कीमतों के रूप में दिख रहा है। 21 अगस्त को तेल 83 डॉलर प्रति बैरल था, जो अब लगभग 14.5 प्रतिशत तक उछल चुका है।
नंदूरकर ने कहा, ‘तेल 90 डॉलर प्रति बैरल को पार कर चुका है इसलिए दीवाली के समय ईंधन के दाम में कमी की गुंजाइश भी न के बराबर रह गई है। इसके उलट दाम बढ़ सकते हैं। तेल के बढ़ते दाम रुपये की विनिमय दर भी असर डालेंगे। तेल का दाम प्रति बैरल 10 डॉलर बढ़ने से चालू खाते का घाटा 0.4 प्रतिशत अंक बदल जाता है।
जेफरीज के अनुसार चुनाव करीब आने से सामाजिक क्षेत्र पर व्यय बढ़ाने का दबाव सरकार पर बढ़ सकता है। इसका कहना है कि राज्यों में लोगों को निःशुल्क चुनावी तोहफे देने की शुरुआत भी हो चुकी है। नांदुरकर का कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के शेयरों में तेजी से सरकार ऐसी कुछ कंपनियों में विनिवेश पर विचार कर सकती है।