विश्व बैंक के ताजा अनुमान के मुताबिक कोविड-19 महामारी के कारण 2020 में करीब 5.6 करोड़ भारतीय अत्यंत गरीबी में धंस गए, जिससे दुनिया भर में गरीबों की संख्या बढ़कर 7.1 करोड़ हो गई। दूसरे विश्व युद्ध के बाद गरीबी कम करने के मामले में यह साल सबसे खराब रहा।
विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री इंदरमीत गिल ने ट्वीट में कहा, ‘2030 तक अति गरीबी खत्म करने का वैश्विक लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएगा क्योंकि तब तक करीब 60 करोड़ लोग गरीबी में फंसे होंगे।’ विश्व बैंक ने अपनी हालिया रिपोर्ट ‘गरीबी और साझा समृद्धि’ में गरीबी का अनुमान लगाने के लिए 2.15 डॉलर के नए क्रयशक्ति समानता (परचेजिंग पावर पैरिटी) के पैमाने का उपयोग किया है। पहले इसे 1.9 डॉलर क्रयशक्ति के आधार पर आंका जाता था।
विश्व बैंक ने 2011-12 के बाद से सरकार से घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण आंकड़े नहीं मिलने के कारण भारत के लिए गरीबी का अनुमान लगाने के वास्ते सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी द्वारा आयोजित उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण के आंकड़ों का उपयोग किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011 के बाद से भारत में गरीबी में कमी आई है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी कम होने की वजह से हुआ है। रिपोर्ट कहती है, ‘कुल गरीबी भले ही कम हुई हो लेकिन कमी की रफ्तार यह पहले लगाए गए अनुमान से कम है। पिछले अनुमान में 2017 में 1.90 डॉलर को गरीबी रेखा माना गया था और गरीबी 10.4 फीसदी रहने की बात कही गई थी।
लेकिन नवीनतम अनुमान से पता चलता है कि 2017 में 1.90 डॉलर की गरीबी रेखा पर गरीबी 13.6 फीसदी थी।’ 2.15 डॉलर की नई गरीबी रेखा के लिहाज से अर्थव्यवस्था पर वैश्विक महामारी के प्रभाव से पहले 2019 में भारत में अत्यधिक गरीबी घटकर 10.01 फीसदी रह गई थी जो 2018 में 11.09 फीसदी थी। बैंक ने कहा है कि साल 2020 के लिए गरीबी दर का अनुमान लगाना अभी बाकी है।
योजना आयोग के पूर्व सदस्य एनसी सक्सेना ने कहा कि विश्व बैंक भारत में गरीबी के स्तर को कमतर आंक रहा है क्योंकि वह गरीबी को डॉलर में क्रयशक्ति के समान मूल्य पर मापता है, जो करीब 20 रुपये है। उन्होंने कहा, ‘स्वतंत्र अर्थशास्त्रियों द्वारा किए गए कई आकलन से पता चलता है कि वैश्विक महामारी के दौरान 27.5 से 30 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी रेखा के दायरे में आ गए। नीति आयोग के अपने बहुआयामी गरीबी सूचकांक के तहत भी करीब 25 फीसदी लोगों की पहचान गरीब के तौर पर की गई है।’
विश्व बैंक के ताजा आकलन में अर्थव्यवस्था पर रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव पर गौर नहीं किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यूक्रेन में युद्ध और खाद्य एवं ऊर्जा कीमतों में तेजी से स्थिति कहीं अधिक खराब हुई है।
