नए नियमों से दिक्कतें ज्यादा

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 10, 2022 | 6:00 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक ने भारतीय कंपनियों में अप्रत्यक्ष विदेशी हिस्सेदारी का आकलन करने के लिए नए विदेशी निवेश दिशानिर्देशों पर एतराज जताया है।
रिजर्व बैंक ने यह कहकर इस पर एतराज जताया है कि नए नियम पारदर्शी नहीं हैं और इससे विभिन्न क्षेत्रों में निवेश की सीमा का लेखा जोखा रखने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
वित्त मंत्रालय को भेजी जाने वाली अपनी टिप्पणी में रिजर्व बैंक ने कहा है कि इस संबंध में विभिन्न क्षेत्रों में निवेश की सीमा को बढ़ाया जाना एक बेहतर विकल्प हो सकता था। इस पूरी घटना पर नजर रख रहे सूत्रों का कहना है कि निवेश की सीमा को निर्धारित करने के पीछे मकसद संवेदनशील क्षेत्रों में भारतीय हिस्सेदारों और देश के  हितों की सुरक्षा है।
रिजर्व बैंक की इस टिप्पणी को जल्द ही वित्त मंत्रालय को भेजा जाएगा जो रिजर्व बैंक द्वारा उठाए गए सवालों पर वाणिज्य मंत्रालय से विचार विमर्श करेगा। उल्लेखनीय है कि वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाली औद्योगिक संवर्धन एवं नीति विभाग (डीआईपीपी) विदेशी निवेश के लिए दिशानिर्देश तय करने वाली सर्वोच्च संस्था है।
हाल में 2009 सीरीज के जारी किए गए प्रेस नोट में डीआईपीपी ने स्पष्टीकरण दिया है कि अप्रत्यक्ष विदेशी निवेश बहुस्तरीय ढ़ांचे के जरिए किया जा सकता है जबकि किसी भारतीय कंपनी द्वारा स्थापित अन्य कंपनी जिसमें किसी विदेशी निवेशक की हिस्सेदारी 49 फीसदी से कम है और स्वामित्व भारतीय मालिक के हाथों में हैं, उसमें विदेशी निवेश आकर्षित करने वाला नहीं कहा जा सकता है।
अभी तक भारतीय कंपनी में अप्रत्यक्ष विदेशी हिस्सेदारी नई कंपनी की शुरुआत करने जा रही वास्तविक भारतीय कंपनी में विदेशी हिस्सेदारी के समानुपाती हुआ करती थी।  रिजर्व बैंक ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि किसी विदेशी कंपनी के लिए भारतीय कंपनी में हिस्सेदारी बढाने के कई तरीकेहो सकते हैं।
रिजर्व बैंक ने यह भी कहा कि इसके लिए यह शेयरों की खरीदारी या प्रबंधन में नियंत्रण होना जरूरी नहीं है। सूत्रों के अनुसार यह डिपॉजिटरी रिसिप्ट, तरजीही शेयरों के आवंटन, शेयरधारकों की सहमति आदि के जरिए किया जा सकता है।
इसी तरह भारतीय कंपनियां विदेशी कंपनी के नियंत्रण के तहत शेल कंपनियां स्थापित कर सकती हैं जो भारत में निवेश कर सकती हैं। ऐसी स्थिति में वास्तविक नियंत्रण और साथ ही कंपनी में वास्तविक विदेशी हिस्सेदारी भी पता करना मुश्किल हो जाएगा।

First Published : February 26, 2009 | 1:34 PM IST