आने वाले कुछ दिनों में भारतीय कंपनियों को एक बड़ी राहत मिल सकती है जिसके तहत इन कंपनियों को विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बॉन्ड(एफसीसीबी) पर उनकी मियाद पूरी हो जाने पर मार्क-टू-मार्केट घाटे को कम (एमोर्टाइजेशन) करने की अनुमति मिल सकती है।
गौरतलब है कि हाल के कुछ दिनों में डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमतों में काफी गिरावट आई है जिसे देखते हुए ही भारतीय कंपनियों को इस तरह दी जाने की बात की जा रही है।
चार्टर्ड एकाउंटेंट निमायक भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट्स संस्थान (आईसीएआई) ने इस संबध में भारतीय कंपनियों द्वारा दिए गए प्रस्ताव पर विचार करने के लिए एक समिति बनाई है और आशा की जा रही है कि संस्थान एक सप्ताह के भीतर संसोधित नियमों की घोषणा करेगा।
नए नियम के प्रभावी हो जाने के बाद कंपनियों को चालू वित्त वर्ष की पिछली तीन तिमाहियों में हुए एमटीएम घाटों को राइट बैंक करने की भी अनुमति दी जा सकती है। इस बारे जब आईसीएआई के अध्यक्ष उत्तम प्रकाश अग्रवाल से संपर्क किया गया तो उनका कहना था कि उन्हें भारतीय कंपनियों की तरफ से इस बारे में प्रस्ताव मिले हैं और उसी के आधार पर इन प्रस्तावों पर विचार करने के लिए एक समिति बनाई गई है।
उन्होनें कहा कि मुझे आशा है कि एक से दो दिनों में इस पर कोई फैसला आ जाएगा और उस आधार पर हम आश्वयक परिवर्तन कर पाने की स्थिति में होंगे। विश्लेषकों के अनुमान के अनुसार करीब 185 कंपनियों ने वर्ष 2004-05 और 2007-08 के बीच 20 अरब डॉलर के एफसीसीबी जारी किए हैं। इनमें से करीब 15 अरब डॉलर अभी भी बकाया है जबकि जमा रकम को इक्विटी में तब्दील कर दिया गया है। अधिकांश एफसीसीबी को अगले दो से तीन सालों में भुगतान किए जाने हैं।
कुछ कंपनियों जिन पर कि एफसीसीबी बकाया है, मसलन, जेएसडब्ल्यू इस्पात, टाटा इस्पात और सुजलॉन एनर्जी ने चालू वित्त वर्ष के नौ महीनें की अवधि के दौरान क्रमश: 815 करोड़, 775 करोड़ और 741 करोड़ रुपये का एमटीएम का घाटा बुक किया है। इनमें अन्य एमटीएम घाटे जैसे हेजिंग से जुड़े घाटे भी शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि चालू तिमाही में डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में 5.6 फीसदी की गिरावट आई है।