मुश्किल है काम के अनुबंध पर अप्रत्यक्ष कर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 10:46 PM IST


वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट कार्य के लिए किया गया एक अनुबंध है जिसमें संपत्ति का हस्तांतरण किया जाता है और साथ ही उत्पादों और सेवाओं की भी बिक्री की जाती है। इस तरह ऐसे अनुबंध पूरी तरह से कंपोजिट कॉन्ट्रैक्ट होते हैं जिनमें उत्पादों की आपूर्ति के साथ साथ सेवाओं के लिए भी प्रावधान होता है। वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट पर अप्रत्यक्ष कर लगाना एक जटिल प्रक्रिया है। पिछले दो दशकों से अधिक तक इन पर स्टेट वैट के तहत उत्पाद कर वसूला जाता रहा है और अभी हाल ही में सेवाओं के लिए सेवा कर प्रावधानों के तहत भी इन पर कर वसूलने की


तैयारी है।


इन दोनों ही प्रक्रियाओं में कर वसूलना एक जटिल प्रक्रिया है। वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट पर कर लगाने में एक सबसे बड़ी चुनौती सब कॉन्ट्रैक्टरों के काम को लेकर होती है। कार्य के लिए जो कॉन्ट्रैक्ट तैयार किया जाता है वह प्रोजेक्ट के मालिक या कॉन्ट्रैक्टी और प्रिंसिपल कॉन्ट्रैक्टरों के बीच होती है। वहीं प्रिंसिपल कॉन्ट्रैक्टर बदले में सब कॉन्ट्रैक्टरों के साथ करार करता है। परिणामस्वरूप करार में जिन शर्तों और प्रावधानों का उल्लेख होता है वह कॉन्ट्रैक्टी और प्रिंसिपल कॉन्ट्रैक्टर के बीच रहती हैं और इसमें सब कॉन्ट्रैक्टी को शामिल नहीं किया जाता है। ऐसे में सब कॉन्ट्रैक्टरों के कामों पर अप्रत्यक्ष कर लगाना थोड़ा मुश्किल होता है। एक अतिरिक्त पहलू यह भी है कि सब कॉन्ट्रैक्टिंग या तो पूरे कॉन्ट्रैक्ट का हिस्सा होता है या फिर कॉन्ट्रैक्ट के कुछ हिस्सों का।


सब कॉन्ट्रैक्ट कामों पर वैट कितना और कैसे लगाया जाए इसमें समय के साथ और विभिन्न राज्यों की सीमाओं के साथ बदलाव आता रहा है। शुरुआत में वर्क्स कॉन्टैक्ट के टर्नओवर पर कर वसूला जाता था और यह ध्यान में रखा जाता था कि लेबर चार्ज, उत्पादों को छोड़कर कुछ अन्य कंज्यूमेबल खर्चों को इसमें से घटा दिया जाए। और यह भी साफ किया गया था कि कर मुख्य कॉन्ट्रैक्टर से वसूला जाए और अलग से सब कॉन्ट्रैक्टरों से कर की वसूली न हो।


साथ ही एक विकल्प यह भी था कि सब कॉन्ट्रैक्टरों टर्नओवर पर अलग से कर वसूला जाए और जब मुख्य कॉन्ट्रैक्टर से कर वसूला जाए तो उसमें सब कॉन्ट्रैक्टर के हिस्से को घटा दिया जाए। तीसरा विकल्प जिसे इन दिनों सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है वह यह है कि मुख्य कॉन्ट्रैक्टरों और सब कॉन्टैक्टरों से अलग अलग कर वसूलना। हालांकि इस सिद्घांत में यह इसका स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट के उत्पाद वाले हिस्से पर ही केवल वैट लगाया जाता है और वह भी सिर्फ एक बार। हालांकि सब कॉन्ट्रैक्टेड कार्य पर दोहरे कराधान से बचने के लिए जिस मेकेनिज्म का इस्तेमाल किया जाता है उस पर लंबे समय से विवाद चल रहा है। आंध्र प्रदेश राज्य बनाम लार्सन और टुर्बो लिमिटेड के एक हालिया मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट पर कर वसूलने के बारे में फैसला सुनाया। मामले में फैसला आंध्र प्रदेश मूल्य वर्द्घित कानून 2005 की संबंधित धाराओं को ध्यान में रखकर सुनाया गया। अदालत ने कहा कि सब कॉन्ट्रैक्टरों से कर वसूलने से पहले सेल्स को ध्यान में रखना जरूरी है। चूंकि यह करार कार्य को लेकर किया गया था, इस वजह से संपत्ति के हस्तांतरण पर सब कॉन्ट्रैक्टरों का ही असर पड़ता है क्योंकि वास्तव में ये कार्य उनके जरिए ही पूरे किए जाते हैं।


साथ ही वर्क्स कॉन्टै्रक्टों में संपत्ति के हस्तांतरण में उत्पादों को भी शामिल किया गया होता है। इस वजह से जिन उत्पादों का निर्माण सब कॉन्ट्रैक्टरों द्वारा किया गया है उनके हस्तांतरण में मुख्य कॉन्ट्रैक्टर हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।


अदालत ने यह माना कि सबकॉन्ट्रैक्टरों और परियोजना के मालिकों के बीच कोई सीधा करार नहीं किया गया होता है, पर सब कॉन्ट्रैक्टरों द्वारा जिन उत्पादों को तैयार किया जाता है उनके साथ संपत्ति का हस्तांतरण केवल एक बार ही किया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व फैसले को बरकरार रखा और कहा कि सब कॉन्ट्रैक्टरों की ओर से तैयार की गई संपत्ति को दो बार, एक बार मुख्य कॉन्ट्रैक्टर से कॉन्ट्रैक्टी को और दूसरी बार सब कॉन्ट्रैक्टर से मुख्य कॉन्ट्रैक्टर को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है। फैसले में इस बात को साफ किया गया कि सब कॉन्ट्रैक्टर अपने हिस्से के काम के लिए वैट की अदायगी खुद ही करेगा और इसके लिए सब कॉन्ट्रैक्टर से कॉन्ट्रैक्टी के लिए संपत्ति का हस्तांतरण तो किया ही जाएगा, भले ही इन दोनों के बीच किसी तरह का करार नहीं किया गया हो। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने यह साफ किया कि इस सिद्घांत को कॉन्ट्रैक्ट को ध्यान में रखकर ही लागू किया जाना चाहिए। ऐसा भी मौका आ सकता है जब सब कॉन्ट्रैक्टर के काम को मुख्य कॉन्ट्रैक्टर के लिए काम के इनपुट के तौर पर देखा जा सकता है और ऐसी स्थिति में सब कॉन्ट्रैक्टर की ओर से चुकाए गए कर पर इनपुट टैक्स क्रेडिट वसूलने का विकल्प होता है।


ऐसा ही प्रावधान मौजूदा समय में वैट कानूनों में भी है और इनपुट टैक्स क्रेडिट को मंजूरी देने के लिए ही एपी कानून में संशोधन किया गया था। पर उच्चतम न्यायालय ने कार्य के दौरान संपत्ति के हस्तांतरण को लेकर जिन सिद्घांतों को बनाए रखा था, वे महत्त्वपूर्ण हैं। ये जो फैसले सुनाए गए हैं वे वर्क्सकॉन्ट्रैक्ट में वैट को लेकर ही सुनाए गए हैं। इस तरह के वर्क्सकॉन्ट्रैक्टों में श्रम और सेवा तत्वों के बारे में सर्विस टैक्सेशन में जो कहा गया है उसके अनुसार वर्क्सकॉन्ट्रैक्ट सर्विसेज की वैल्यू उस रकम पर निर्भर करती है जो वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट में से उत्पादों के मूल्य को घटाने पर प्राप्त होती है।



First Published : October 5, 2008 | 8:02 PM IST