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संकट में सुनहरे भविष्य की उम्मीद!

Last Updated- December 09, 2022 | 2:59 PM IST

देश की अर्थव्यवस्था के लिए वर्ष 2008 काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा। वर्ष की शुरुआत जहां मजबूती से हुई, वहीं साल खत्म होते-होते वैश्विक मंदी की छाया मंडराने लगी।


ऐसे में सबके जेहन में सवाल है कि क्या आने वाला साल अर्थव्यव्स्था के लिहाज से अच्छा होगा और महंगाई-मंदी के बादल छंटेंगे? बिानेस स्टैंडर्ड ने इसी मुद्दे पर व्यापार गोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें देशभर के पाठकों, विशेषज्ञों ने अपनी राय जाहिर की।

प्रमुख अर्थशास्त्री डी. के. जोशी का कहना है कि जिस तरह के हालात पूरी दुनिया में बने हुए हैं, उसे देखकर तो यही लगता है कि आने वाला साल भी बहुत अच्छा नहीं होगा। हां, इतनी उम्मीद जरूर की जा सकती है कि अगले साल की दूसरी छमाही में हालात कुछ बेहतर बन सकते हैं।

यह सब भी बहुत कुछ अच्छा मानसून पर निर्भर करेगा। वहीं ज्यादातर पाठकों का कहना है कि आर्थिक मोर्चे पर छाया संकट अकेले भारत की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे विश्व को इसने झकझोर कर रख दिया है।

वैसे, अमेरिका में बराक ओबामा की ताजपोशी अगले साल होगी, तो संभव है कि कुछ परिवर्तन देखने को मिले। मंदी पर काबू पाना नए साल में सबसे बड़ी चुनौती होगी।

लेकिन इस पर काबू के लिए सरकार और रिजर्व बैंक ने जिस तरह के कदम उठाए हैं, उससे सरकारी खजाने पर भार तो बढ़ेगा ही, राजकोषीय घाटा भी बढ़ेगा। सरकारी पैकेज का ज्यादा लाभ तो उच्च वर्गों और बड़ी कंपनियों को ही होगा। छोटी-मझोली कंपनियों को संकट की मार झेलनी ही पड़ेगी।

वैसे कुछ पाठकों और विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि सरकार और उद्योग जगत के प्रयास से अगले साल सार्थक परिणाम नजर आएंगे और चुनौतियों के बावजूद अगले साल देश की अर्थव्यवस्थाके विकासोन्मुख बने रहने की संभावना है।

एसोचैम के महासचिव डी. एस. रावत का मानना है कि मौजूदा हालात से निपटने के लिए सरकार, उद्योग जगत और आम आदमी को मिलकर काम करना होगा।

First Published - December 29, 2008 | 12:12 AM IST

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