प्रतीकात्मक तस्वीर
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 9 अप्रैल को चीन को छोड़कर सभी देशों पर अपने व्यापक टैरिफ 90 दिन तक रोकने की घोषणा की। ऐक्सिस सिक्योरिटीज के प्रबंध निदेशक (एमडी) और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) प्रणव हरिदासन ने देवांशु सिंगला को ईमेल पर दिए साक्षात्कार में कहा कि ट्रंप की घोषणा से अस्थायी राहत मिलती है, लेकिन अनिश्चितता खत्म नहीं होती है। संपादित अंश:
आप अमेरिकी टैरिफ पर 90 दिनों की रोक और भारतीय बाजारों पर इसके प्रभाव को कैसे देखते हैं?
अमेरिका के नए जवाबी टैरिफ पर 90 दिन की रोक अस्थायी तौर पर राहत देती है, लेकिन इससे अनिश्चितता खत्म नहीं होती। 10 फीसदी टैरिफ अभी भी लागू है और चीन की जवाबी कार्रवाई से पता चलता है कि हम समाधान के आसार नहीं हैं। भारत पर इसका सीधा असर भले ही न हो, लेकिन हम इसके परोक्ष प्रभाव देख रहे हैं। आईटी (सूचना प्रौद्योगिकी), फार्मा और ऑटो जैसे ज्यादा निर्यात वाले सेक्टरों को इस पर सावधानी से काम करना होगा क्योंकि अगर वैश्विक वृद्धि में और नरमी आई तो उनके अनुमानों, मार्जिन और सौदे मिलने पर कुछ दबाव पड़ सकता है। हालांकि, चीन प्लस वन की कहानी से भारत को दीर्घकालिक लाभ मिल सकता है। इसे देखते हुए खपत, बैंक और बुनियादी ढांचे जैसे घरेलू केंद्रित क्षेत्र बेहतर तरीके से सुरक्षित हैं। हम कम से कम अल्पावधि में आईटी पर तटस्थ से लेकर अंडरवेट बने हुए हैं जब तक कि अनुमानों पर कोहरा नहीं छंट जाता।
विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) भारत की टैरिफ बाद वाली स्थिति पर कैसी प्रतिक्रिया दे रहे हैं? क्या वित्त वर्ष 26 में निवेश का रुख बदलेगा?
वित्त वर्ष 26 विदेशी निवेश के लिए अधिक सकारात्मक हो सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नकद आरक्षित अनुपात में कटौती, उपभोग-केंद्रित बजट और वैश्विक स्तर पर नरम रुख जैसे उपाय सकारात्मक हैं। आय को लेकर स्पष्टता में सुधार से एफआईआई वापस आ सकते हैं, खासकर लार्जकैप और बुनियादी रूप से मजबूत शेयरों की ओर।
वित्त वर्ष 25 में निवेश के लिहाज से सबसे महत्त्वपूर्ण कारक क्या था और वित्त वर्ष 2026 के लिए आपका दृष्टिकोण क्या है?
वित्त वर्ष 2025 में अनुशासन और परिसंपत्ति आवंटन पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण रहा। इतनी ज्यादा वैश्विक उथल-पुथल के बीच जो लोग दीर्घकालिक प्रक्रिया पर टिके रहे और शोरगुल से दूर रहे, उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया। इसने लक्ष्य आधारित निवेश, पुनर्संतुलन और चक्रों के दौरान निवेशित रहने की जरूरत को और मजबूत किया।
वित्त वर्ष 26 में भारत को लेकर मेरी सोच सकारात्मक है। मिड और स्मॉलकैप की तुलना में लार्जकैप शेयर ज्यादा उचित कीमत पर उपलब्ध हैं। बैंक, औद्योगिक और पूंजीगत सामान जैसे घरेलू क्षेत्र अपनी मजबूत बैलेंस शीट, नीतिगत प्रोत्साहन और पूंजीगत व्यय में बहाली के कारण अच्छी स्थिति में हैं। दूसरी ओर, निर्यातोन्मुखी सेक्टर जैसे स्पेशियलिटी केमिकल्स, ऑटो एंसिलरीज और प्रीसिजन मैन्युफैक्चरिंग, वैश्विक व्यापार में स्थिरता आने और चाइना प्लस वन के गति पकड़ने पर चौंका सकते हैं। ये कम पसंद किए जाने वाले क्षेत्र डार्क हॉर्स बन सकते हैं।
वित्त वर्ष 2026 में ब्रोकिंग उद्योग के आउटलुक पर आपकी क्या राय है?
छह महीने पहले की तुलना में परिदृश्य ज्यादा सकारात्मक है। एफऐंडओ मानदंडों, डिपॉजिटरी प्रतिभागियों के एएमसी शुल्क और लेनदेन शुल्क से जुड़ी अनुपालन लागतों के कारण खुदरा भागीदारी में गिरावट आई और कुल वॉल्यूम भी कम हुआ। हालांकि, सबसे बुरा समय बीत चुका है और हम सामान्य होने के संकेत देख रहे हैं। जैसे-जैसे प्रतिभागी समायोजित होंगे और आत्मविश्वास फिर से बढ़ेगा, वॉल्यूम में स्थायी सुधार की संभावना है। प्रौद्योगिकी, अनुपालन अवसंरचना और ग्राहक-केंद्रित प्लेटफॉर्म से लैस अच्छी तरह से पूंजीकृत ब्रोकर तूफान रुकने के साथ ही हिस्सेदारी हासिल करने के लिहाज से बेहतर स्थिति में हैं। भले ही विस्फोटक वृद्धि न हो लेकिन वित्त वर्ष 26 में अलग-अलग ब्रोकरों के लिए समेकन और वॉल्यूम में टिकाऊ सुधार हो सकता है।