एफपीआई निवेश की थम रही तेजी

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 10:01 PM IST

दुनिया के बड़े देशों में आर्थिक प्रोत्साहन वापस लेने की शुरुआत का असर भारत पर दिखना शुरू हो गया है। देश में विदेशी पूंजी की आमद पहले जितनी नहीं रह गई है और इसमें कमी का सिलसिला शुरू हो गया है। देश में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने शेयरों में निवेश काफी कम कर दिया है। इसे पहले कैलेंडर वर्ष 2020 की दूसरी छमाही और कैलेंडर वर्ष 2021 की पहली तिमाही में एफपीआई की तरफ  से निवेश में भारी उछाल दिखी थी। भारतीय शेयर बाजार में पिछले 12 महीनों के दौरान एफपीआई निवेश पिछले 19 महीनों में सबसे कम रहा है। एफपीआई ने फरवरी 2020 से जनवरी 2022 के बीच 125.8 करोड़ डॉलर के शुद्ध निवेश किए हैं। यह दिसंबर 2021 में समाप्त 12 महीनों की अवधि के दौरान दर्ज 376.8 करोड़ डॉलर रकम से कम है। यह मार्च 2021 में समाप्त 12 महीनें की अवधि के दौरान आए करीब 37 अरब डॉलर से 96 प्रतिशत कम है।
इस महीने भी एफपीआई शुद्ध बिकवाल बन गए हैं। नैशनल सिक्योरिटी डिपॉजिटरी सर्विसेस लिमिटेड (एनएसडीएल) के आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2020 के पहले दो हफ्तों में 53.2 करोड़ डॉलर मूल्य के शेयरों की बिकवाली की है। जनवरी के बाकी दिनों में भी यह सिलसिला जारी रहा तो यह लगातार चौथा महीना होगा जब एफपीआई शुद्ध बिकवाल होंगे। अक्टूबर 2021 के बाद से एफपीआई अब तक 5.3 अरब डॉलर रकम निकाल चुके हैं।
विश्लेषकों की नजर में आने वाले समय में भी यह रुझान जारी रह सकता है क्योंकि दुनिया के बड़े देशों में आर्थिक प्रोत्साहन एवं कम ब्याज दरों का दौर अब समाप्ति की ओर बढ़ रहा है। जे एम इंस्टीट्यूशनल इक्विटी में प्रबंध निदेशक एवं मुख्य रणनीतिकार धनंजय सिन्हा कहते हैं, ‘दुनिया के केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति सख्त कर रहे हैं। उत्तर अमेरिका और यूरोप में बढ़ती महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए वहां के केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं। इससे भारत सहित दुनिया के तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में विदेशी पूंजी का प्रवाह कमजोर पड़ जाएगा।’ सिन्हा के अनुसार अगर अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल बैंक बॉन्ड खरीदारी कम करने और ब्याज दरें बढ़ाने की अपनी योजना में कोई बदलाव नहीं करता है तो वित्त वर्ष 2023 में नया एफपीआई निवेश नहीं आएगा।
कई दूसरे विशेषज्ञ हाल की तिमाहियों में वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति में बदलाव को भी एफपीआई में कमी का करण मानते हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस कहते हैं, ‘हाल की तिमाहियों में विकसित बाजारों की आर्थिक वृद्धि में तेजी आई है। इससे भारत सहित अन्य तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाएं एफपीआई के लिए आकर्षण का केंद्र नहीं रह जाएंगी। वे इन देशों के बाजारों में निवेश करने में उत्साह नहीं दिखाएंगी।’
मदन सबनवीस का कहना है कि विदेशी पूंजी आक र्षित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरें बढ़ा सकता है। उन्होंने कहा कि इस समय ब्याज दरें काफी कम हैं जो अधिक विदेशी निवेश आने नहीं दे रही है। इसके उलट दुनिया के ज्यादातर केंद्रीय बैंक ने दरें बढ़ा दी हैंं या इनमें बढ़ोतरी का सिलसिला शुरू कर दिया है। विदेशी निवेश तक कम हो रहा है जब भारतीय अर्थव्यवस्था को चालू खाता घाटा कम करने के  लिए अधिक पूंजी की जरूरत है।

First Published : January 17, 2022 | 11:04 PM IST