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अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में

Last Updated- December 11, 2022 | 9:31 PM IST

प्रमुख आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल और उनकी टीम ने वित्त वर्ष 2021-22 की आर्थिक समीक्षा तैयार करते समय दो खंडों में समीक्षा की पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन की व्यवस्था बंद कर दी और समीक्षा में सरकार के लिए भारी-भरकम सुझाव भी नहीं दिए। पहले की आर्थिक समीक्षाओं में जनधन, आधार, सार्वभौमिक बुनियादी आय और ज्यादा नोट छापने की सलाह दी गई थीं। उन्हें सरकार ने स्वीकार किया था मगर उनके कारण नीति निर्माण पर विवाद भी खड़े हो गए थे।
इस बार समीक्षा में आंकड़ों या डेटा के नए प्रारूप के उपयोग के महत्त्व तथा टीकाकरण अभियान, उच्च आवृत्ति वाले डेटा और अनिश्चितता भरे समय में अर्थव्यवस्था का वास्तविक समय में प्रबंधन करने के लिए उपग्रह इमेज जैसी गतिविधियों के महत्त्व को रेखांकित किया गया है। ये सभी संकेतक दर्शाते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2022-23 की चुनौतियों से निपटने के लिए बेहतर स्थिति में है।
आर्थिक समीक्षा में 2022-23 के दौरान आर्थिक वृद्घि दर 8 से 8.5 फीसदी के दायरे में रहने का अनुमान लगाया गया है। चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्घि दर 9.2 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। इसका मतलब है कि कोविड से पहले 2019-20 की तुलना में वृद्घि दर महज 1.3 फीसदी अधिक होगी। हालांकि हाल के समय में आर्थिक समीक्षा में वृद्घि के अनुमान को व्यापक तौर पर ज्यादा दिखाया गया है। वैसे, इस साल की समीक्षा में वृद्घि का अनुमान यह मानकर लगाया गया है कि महामारी के कारण अर्थव्यवस्था प्रभावित नहीं होगी, मॉनसून सामान्य रहेगा, वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा तरलता को धीरे-धीरे कम किया जाएगा, तेल की कीमतें 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहेंगी और वैश्विक आपूर्ति शृंखला की अड़चनें धीरे-धीरे दूर होंगी।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि महामारी के कारण हुए नुकसान से निपटने के लिए सरकार ने मांग प्रबंधन के बजाय आपूर्ति-पक्ष में सुधार पर जोर दिया। इसमें कई क्षेत्रों के नियमन में ढील, प्रक्रिया को सरल बनाना, पिछली तिथि से कराधान को खत्म करने के उपाय, निजीकरण, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन आदि शामिल हैं। समीक्षा में कहा गया है कि खुदरा मुद्रास्फीति स्वीकार्य दायरे में है और दो अंक में थोक मुद्रास्फीति आधार प्रभाव के कारण है। आधार प्रभाव सामान्य होने पर इसमें भी कमी आ जाएगी। मगर इसमें कहा गया है कि भारत को आयातित मुद्रास्फीति से सावधान रहने की जरूरत है, खास तौर पर वैश्विक ईंधन की ऊंची कीमतों से।
आवश्यक जिंसों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए बेहतर भंडारण और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन पर जोर दिया गया है और कीमतों में मौसमी तेजी से बचने के लिए बागवानी और जल्द खराब होने वाले कृषि जिंसों की बरबादी रोकने के उपाय आजमाने का सुझाव दिया गया है।
विकसित देशों द्वारा तरलता कम किए जाने से पंूजी निकासी की आशंका के मसले पर समीक्षा में कहा गया है कि उच्च विदेशी मुद्रा भंडार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में निरंतरता और निर्यात आय में वृद्घि से मदद मिलेगी। मगर समीक्षा में आगाह किया गया है कि वैश्विक तरलता कम होने और जिंसों की कीमतों में उतार-चढ़ाव जारी रहने, और कोविड के नए स्वरूप के आने से 2022-23 में चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं। घरेलू मांग नरम होने की बात हर तरफ कही जा रही है किंतु आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि सरकार की खपत 7.2 फीसदी बढ़ सकती है जो 2021-22 के कोविड-पूर्व स्तर से अधिक होगी।

First Published - January 31, 2022 | 10:51 PM IST

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