कोरोनावायरस महामारी ने सबसे गरीब राज्यों के ग्रामीण इलाकों के संकट को बढ़ाया है। सबसे गरीब पांच राज्यों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (मनरेगा) योजना के तहत मांगे गए काम की हिस्सेदारी बढ़ी है जो ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक बेहतरी का एक संकेतक है। वहीं दूसरी तरफ सबसे अमीर पांच राज्यों की मनरेगा के तहत काम मांगने की हिस्सेदारी में कमी आई है।
अगर अधिक लोग मनरेगा के तहत काम की मांग करते हैं तब इसका मतलब यह है कि कम लोगों के पास नौकरी या फिर कोई पूरक आमदनी का स्रोत है। योजना के तहत काम की मांग में वृद्धि बढ़ते आर्थिक संकट को दर्शाती है।
महामारी के दौरान सबसे अमीर और सबसे गरीब राज्यों में मनरेगा के तहत मांगे गए काम में वृद्धि हुई, लेकिन सबसे गरीब पांच राज्यों, ओडिशा, असम, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार ने वर्ष 2020-21 में सालाना आधार पर 85.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जो कर्नाटक, हरियाणा, तेलंगाना, गुजरात और तमिलनाडु जैसे सबसे अमीर पांच राज्यों की वृद्धि दर से दोगुनी से अधिक है।
मनरेगा के तहत सबसे अमीर और सबसे गरीब राज्य की हिस्सेदारी के लिहाज इसके नतीजे उलटे रहे हैं। वर्ष 2014-15 में मांगे गए कुल काम में शीर्ष पांच राज्यों की हिस्सेदारी 29.3 प्रतिशत थी, जबकि पांच सबसे गरीब राज्यों की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत थी। वर्ष 2021-22 तक स्थिति उलट गई और सबसे अमीर राज्यों की हिस्सेदारी घटकर 22.6 प्रतिशत हो गई थी, जबकि निचले स्तर के पांच राज्यों की हिस्सेदारी 23.3 प्रतिशत थी।
यह सबसे अमीर और सबसे गरीब राज्यों के बीच बढ़ती आर्थिक असमानता के संकेत देता है जो महामारी आने से पहले ही बढ़ रही थी। वित्त वर्ष 2019-20 तक के दशक में पांच सबसे अमीर राज्यों की कृषि आमदनी औसतन 2.2 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी जबकि सबसे गरीब राज्यों के लिए यह औसतन 1.5 प्रतिशत थी।
आमदनी में जैसे-जैसे और कमी आएगी वैसे ही सबसे गरीब राज्यों में ग्रामीण रोजगार योजना के तहत काम की मांग बढ़नी तय है। अब तो मनरेगा की तर्ज पर शहरी रोजगार योजना की मांग की जा रही है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड ने पहले बताया था कि सबसे अमीर राज्यों की आमदनी सबसे गरीब राज्यों की तुलना में तेजी से बढ़ रही है, शीर्ष पांच अमीर राज्यों और निचले स्तर के पांच सबसे गरीब राज्यों के बीच प्रति व्यक्ति आमदनी का अनुपात वर्ष 2021-22 में बढ़कर 3.3 गुना हो गया है।