भारत-अमेरिका के बीच बढ़ते आर्थिक जुड़ाव को वास्तव में व्यापार और पूंजी प्रवाह में दिख रही वृद्धि दर्शाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 21 जून से शुरू हुई छठी अमेरिकी यात्रा के एजेंडे में आर्थिक संबंधों पर चर्चा सबसे अहम है। यह मोदी की पहली ऐसी बैठक है जिसे राजकीय यात्रा का दर्जा प्राप्त है।
भारत में नए कारखानों की फंडिंग के लिए और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के माध्यम से नए उद्यम स्थापित करने के लिए पहले की तुलना में अधिक पूंजी मिल रही है। वर्ष 2018-19 तक पांच वर्षों में औसत वार्षिक अमेरिकी एफडीआई 2.7 अरब डॉलर थी। यह तब से चार वर्षों में बढ़कर 8.7 अरब डॉलर हो गई है।
अमेरिका में इस तरह का पूंजी प्रवाह, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आंकड़ों में दिखाई देता है। इसमें कर्ज भी शामिल हैं। 2018-19 तक पांच वर्षों में पूंजी निकासी औसतन 1.7 अरब डॉलर थी। यह 2019-20 के बाद से बढ़कर औसतन 3.2 अरब डॉलर हो गई है। विदेशी पोर्टफोलियो पूंजी प्रवाह के मामले में भी अमेरिका शीर्ष पर है। यह वह पैसा है जो अमेरिका के म्युचुअल फंड और अन्य संस्थाएं, भारतीय शेयर बाजार में शेयरों को खरीदने में निवेश करती हैं।
अमेरिका भारत में सबसे बड़ा एफपीआई निवेशक है जो प्रत्येक 100 रुपये मूल्य की एफपीआई में से लगभग 38 रुपये का योगदान देता है। भारत आयात की तुलना में अमेरिका को अधिक निर्यात करता है। वर्ष 2022-23 में निर्यात 79 अरब डॉलर था जबकि आयात 50 अरब डॉलर था। पिछले पांच वर्षों में निर्यात की तुलना में आयात थोड़ा तेजी से बढ़ा है। वर्ष 2017-18 के बाद से आयात में 89 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि निर्यात में 64 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
अमेरिका से भारत का आयात मुख्य रूप से कच्चे तेल, पेट्रोलियम उत्पादों, कोयला और अन्य कुछ श्रेणियों से होता है। वर्ष 2022-23 में शीर्ष पांच श्रेणियों की आयात में लगभग 49 प्रतिशत हिस्सेदारी थी। निर्यात की स्थिति भी समान थी। प्रमुख निर्यात में फार्मास्यूटिकल उत्पाद और रेडीमेड सूती वस्त्र और एसेसरीज थे। कुल निर्यात में शीर्ष पांच श्रेणी के निर्यात की हिस्सेदारी 36 प्रतिशत रही।