छोटों पर पड़ी चाबुक की बड़ी मार

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 2:05 PM IST

रिजर्व बैंक के गवर्नर वाई. वी. रेड्डी ने मंगलवार को कड़ी मौद्रिक नीति का जो चाबुक चलाया है, उसकी सबसे गहरी मार देश के छोटे और मझोले कारोबारियों को लगी है।


मूलत: कर्ज लेकर जैसे-तैसे पूंजी जुटाने वाले ये कारोबारी इस मार के असर से न सिर्फकराह रहे हैं, बल्कि कइयों का तो दम ही निकला जा रहा है। कई शहरों के कारोबारियों के इसी दर्द को महसूस कर आप तक पहुंचाने की हमारी एक कोशिश:

कट जाएगी जेब

कानपुर शहर के छोटे और मझोले उद्योगों का कहना है कि अगर बैंक ब्याज दर बढ़ाते है, तो पूंजी की व्यवस्था करने में उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। व्यापारियों का कहना है कि अगर बैंक ब्याज दर में एक फीसदी का भी इजाफा करते हैं, तो दो साल के लिए दो लाख रुपये के लोन पर करीब 35 हजार रुपये का भार बढ़ जाएगा।

असंगठित क्षेत्र के कारोबारी अगर 3-4 लाख रुपये का लोन लेते हैं, तो उन्हें करीब 1500 रुपये प्रति माह का अतिरिक्त भुगतान करना होगा। वर्तमान में बैंक छोटी-मध्यम इकाइयों को 14.75 फीसदी की दर से लोन उपलब्ध करा रहे हैं। हालांकि यह दर लोन की अवधि पर निर्भर करता है, और न्यूनतम सीमा 9.75 फीसदी है।

सच तो यह है कि ब्याज दर बढ़ने से सबसे ज्यादा मार छोटी इकाइयों पर ही पड़ती है, क्योंकि उनके पास पूंजी का कोई और साधन नहीं होता है। यही नहीं, कई इकाइयां साहूकारों से कर्ज लेती हैं। ऐसे में जब बैंक ब्याज दरों में बढ़ोतरी करता है, तो महाजन भी इसमें दो गुना तक इजाफा कर देते हैं।
(कानपुर से विष्णु पाण्डेय)

बंदी की डगर सामने

पहले इंस्पेक्टर राज फिर बिजली की दिक्कतों के बीच जैसे-तैसे अपना उद्योग बचाए रखे उत्तर प्रदेश के उद्यमियों के लिए नई क्रेडिट पॉलिसी ने दिक्कतें बढ़ा दी हैं। मंदी के इस दौर में राहत के बजाय कर्ज महंगा होने से उद्यमियों पर दोहरी मार पड़ने वाली है। कर्ज महंगा कर देने से सबसे ज्यादा छोटे और मझोले उद्योग प्रभावित होंगे।

प्रदेश में छोटे और मझोले कारखानों के मालिकों के लिए बीते एक साल से कच्चे माल के दामों में आई भारी तेजी और कर्ज का लगातार महंगा होते जाना बड़ी समस्या बन गई है। बड़े उद्योग के लिए कर्ज के और रास्ते खुले हैं, वे विदेशों से भी फंड पा जाते हैं, जिससे उनका काम हो जाता है, लेकिन छोटे कारखाने वाले कहां जाएं। उनके लिए बैंक ही पूंजी जुटाने का सहारा हैं।

उत्तर प्रदेश में 2002 में हुए सर्वे के मुताबिक, 15 लाख माइक्रो, लघु और मझोले उद्यमी हैं। जबकि लघु और मझोली इकाइयां जो कि पूंजी के लिए बैंक के पास जाती हैं, उनकी संख्या 22000 है। ऐसे में इन उद्योगों को पूंजी के संकट का सामना करना पड़ेगा, वहीं कई उद्योग पूंजी की कमी के चलते बंदी के कगार पर पहुंच जाएंगे।
(लखनऊ से सिध्दार्थ कलहंस)

थम सकता है विस्तार

आरबीआई के ताजा कदम से चंडीगढ़ की ज्यादातर छोटी और लघु इकाइयों के कारोबार पर असर पड़ेगा, वहीं कई इकाइयों को पूंजी की किल्लत के चलते अपनी विस्तार योजनाओं को ठंडे बस्ते में डालने को मजबूर होना पड़ेगा। वर्ष 2007-08 में जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पंजाब में तकरीबन 206,833 इकाइयां काम कर रही हैं, जिनमें लाखों लोगों को रोजगार मिला हुआ है।

ऐसे में पहले से ही महंगाई की मार झेल रही इकाइयां कर्ज और महंगा होने से चरमरा सकती हैं। साथ ही इसमें काम करने वाले लोगों के रोजगार पर भी असर पड़ने की आशंका है। यही नहीं, अगर इन इकाइयों के उत्पादन पर असर पड़ा, तो देश की विकास दर भी प्रभावित हो सकती है, क्योंकि सकल घरेलू उत्पादन में इन इकाइयों का महत्वूपर्ण स्थान है।

राज्य की छोटी-मझोली उद्योगों को पहले ही चीनी कंपनियों से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा। ऐसे में कर्ज महंगा होने से उत्पादन लागत और बढ़ जाएगी, जिससे उत्पादित वस्तुओं की कीमतों में भी इजाफा होगा, जिसका फायदा चीनी कंपनियों को होगा।
(चंडीगढ़ से विजय रॉय)

कड़ी चुनौती

भारतीय रिजर्व बैंक की ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने के कदम से महाराष्ट्र्र की छोटी-लघु इकाइयां सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी, क्योंकि इनका ज्यादातर काम लोन पर ही चलता है। कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी से इन पर पहले से ही बोझ बढ़ा हुआ है, वहीं अब बैंकों से लोन मिलना भी ज्यादा कठिन हो जाएगा।

ऊंची ब्याज दरों की वजह से राज्य की ज्यादातर छोटी इकाइयां बंद होने की कगार पर पहुंच गई हैं। राज्य के सैकड़ों उद्योग पूंजी के अभाव और सरकारी सहायता नहीं मिलने की वजह से दम तोड़ चुके हैं। सरकार उन्हें प्रोत्साहन देने की जगह ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी कर रही है, जो एसएमई के हित में नहीं है। इससे उद्योगों की उत्पादन लागत बढ़ रही है। इनको बड़ी कंपनियों की चुनौती का सामना भी करना पड़ रहा है।
(मुंबई से अनुराग शुक्ला)

प्रतिस्पर्धा में नहीं टिकेंगे

दिल्ली के छोटे एवं मध्यम उद्यमी या कारोबारी कर्ज के लिए स्थानीय बैंक पर पूर्ण रूप से निर्भर होते हैं। ऐसे में ब्याज दरों में बढ़ोतरी से उनके लिए कर्ज लेना मुश्किल हो जाएगा। और लागत बढने से वे बड़े उद्यमियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे। इससे उनका कारोबार कम होगा। लिहाजा वे अपनी इकाइयों को बंद करने के लिए बाध्य होंगे।

आवास ऋण की ब्याज दरों में बढ़ोतरी से भी छोटे व मझोले उद्यमी प्रभावित होंगे। ब्याज अधिक होने से मकानों की मांग कम होगी, जिससे निर्माण उद्योग से जुड़ी चीजों की मांग में भी गिरावट आएगी। कच्चे माल के महंगा होने से लोहे के कारोबारियों को पहले ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं कर्ज महंगा हुआ, तो उन्हें और मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।

ब्याज दरों में और बढ़ोतरी हुई, तो कोई भी छोटा उद्यमी अपने कारोबार का विस्तार नहीं करेगा। उनके कारोबार के साथ उनके लाभ की मात्रा भी कम होगी। बड़े उद्यमियों से प्रतिस्पर्धा के कारण छोटे कारोबारी पहले से ही परेशान है।   
(दिल्ली से राजीव कुमार)

First Published : July 31, 2008 | 12:20 AM IST