दुनिया भर में मशहूर प्रोबायोटिक दूध ब्रांड याकुल्त बनाने वाली जापानी कंपनी याकुल्त होन्शा भारत में विस्तार की योजना बना रही है।
कंपनी भारत में दानोन के साथ अपने संयुक्त उपक्रम के जरिये यह विस्तार करेगी। भारत में प्रोबायोटिक उत्पादों के लिए याकुल्त और दानोन का बराबर साझेदारी का संयुक्त उपक्रम है। यह संयुक्त उपक्रम भारत में नई दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में मौजूद है।
अब कंपनी मुंबई और आगरा समेत देश भर में अपना विस्तार करने की योजना बना रही है। कंपनी ने इस साल के अंत तक भारत में रोजाना प्रोबायोटिक दूध याकुल्त की 1 लाख बोतलें बेचने का लक्ष्य रखा है। इस विस्तार के लिए कंपनी लगभग 136 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। इसमें से लगभग 100 करोड़ रुपये कंपनी उत्पादन के लिए संयंत्र लगाने के लिए खर्च करेगी। बाकी की रकम कंपनी उत्पादों के वितरण और विपणन (मार्केटिंग) पर लगाएगी।
याकुल्त दानोन इंडिया की महाप्रबंधक (कॉर्पोरेट कम्युनिकेशंस) सपरा ने बताया, ‘पिछले हफ्ते ही हमने चंडीगढ़ में इस ब्रांड का लॉन्च किया है। हमारे उत्पाद रिटेल आउटलेट्स के जरिये ही बिकते है। हालांकि हम याकुल्त लेडीज के जरिये भी ग्राहकों को प्रोबायोटिक उत्पादों के बारे में जानकारी देते हैं। दुनिया भर में इस काम के लिए हमारे पास लगभग 80,000 याकुल्त लेडीज हैं। लेकिन भारत में इनकी संख्या मात्र 50 ही है। इस साल के अंत तक हम इस संख्या को बढ़ाकर 150 करना चाहते हैं।
पहले तीन महीनों में तो हमें उत्पाद बेचने में काफी मशक्कत करनी पड़ी लेकिन अब सभी याकुल्त लेडीत रोजाना 200 बोतलें बेचने का अपना लक्ष्य आराम से पूरा कर रही हैं।’ दुनिया भर में याकुल्त की रोजाना बिक्री लगभग 2.5 करोड़ बोतलों की हैं। इस बिक्री का लगभग 60 फीसदी हिस्सा याकुल्त लेडीज के जरिये ही होती है। संयुक्त उपक्रम का दूसरा पार्टनर फ्रांसीसी डेयरी दानोन भी इसी उपक्रम के जरिये भारत में अपनी प्रोबायोटिक उत्पादों की शृंखला भी लॉन्च करने की योजना भी बना रही है।
भारत के प्रोबायोटिक बाजार में नेस्ले, अमूल और मदर डेयरी जैसे खिलाड़ी पहले ही मौजूद हैं। अमूल के महाप्रबंधक (मार्केटिंग) आर एस सोधी ने बताया, ‘महानगरों में हमारे प्रोबायोटिक उत्पादों को उपभोक्ताओं की अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। लेकिन हमें इन उत्पादों को लेकर उपभोक्ताओं को और जागरुक करने की जरूरत है।’
भारत में पैकेज्ड डेयरी उत्पादों का बाजार लगभग 50,000 करोड़ रुपये का है। हालांकि इसमें प्रोबायोटिक उत्पादों की हिस्सेदारी अभी नहीं के बराबर ही है। जबकि वैश्विक प्रोबायोटिक उद्योग लगभग 560 अरब रुपये का है।