देश की तीन शीर्ष दूरसंचार कंपनियों को अपने मौजूदा स्पेक्ट्रम (खुद के या साझेदारी के तहत मिले) तथा अगले साल जिनकी वैधता खत्म हो रही है, उसे बदलने के लिए तकरीबन 44,000 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे।
यह आंकड़ा आगामी स्पेक्ट्रम नीलामी के लिए दूरसंचार नियामक एवं विकास प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा तय आधार मूल्य पर आधारित है। साथ ही यह माना गया है कि बोली में ज्यादा प्रतिस्पद्र्घा नहीं होगी।
करीब 153 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम की वैधता अगले साल खत्म हो जाएगी, जो रिलायंस जियो, भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया के करीब 7 फीसदी स्पेक्ट्रम के बराबर हैं। इसमें रिलायंस जियो को आरकॉम के साथ किए गए स्पेक्ट्रम साझेदारी करार के तहत मिले 37.5 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम शामिल नहीं हैं। 800 मेगाहट्र्ज बैंड वाले इस स्पेक्ट्रम की वैधता भी 2021 को खत्म हो जाएगी और उसे नएए स्पेक्ट्रम से बदलना होगा।
फिलहाल स्पेक्ट्रम नीलामी के अंतिम ब्योरे को मंत्रिमंडल की मंजूरी का इंतजार है। नीलामी प्रक्रिया में पहले ही देर हो चुकी है। 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी नहीं होगी। अगर तय आधार मूल्य पर 5जी के साथ सभी स्पेेक्ट्रम की पेशकश की जाती है तो सरकार को करीब 5.86 लाख करोड़ रुपये मिल सकते हैं।
हालांकि पैसे की किल्लत का सामना कर रही सरकार के लिए अतिरिक्त प्राप्ति अच्छी खबर है लेकिन दूरसंचार कंपनियों को ज्यादा रकम खर्च करने होंगे। अधिकतर ऑपरेटरों द्वारा मौजूदा स्पेक्ट्रम को बदलने के साथ ही अतिरिक्त स्पेक्ट्रम लिए जाने की उम्मीद है क्योंकि डेटा की बढ़ती मांग से कंपनियों के नेेटवर्क पर दबाव बढ़ रहा है।
डेटा के रफ्तार की गुणवत्ता और नेटवर्क की क्षमता पर काफी दबाव है। 138 देशों में भारत 127वेें स्थान पर है, जहां औसत मोबाइल डेटा की रफ्तार महज 12.15 एमबीपीएस है। ओकला के ताजा आंकड़ों के मुताबिक यह वैश्विक औसत (34.51 एमबीपीएस) का करीब एक तिहाई है। वित्त वर्ष 2021 की पहली तिमाही में पिछले साल की तुलना में देश में प्रति ग्राहक डेटा उपयोग में 40 फीसदी का इजाफा हुआ है। करीब 70 से 85 फीसदी नेटवर्क की क्षमता का पहले से ही इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे में बढ़ती मांग को देखते हुए कंपनियों को अतिरिक्त स्पेक्ट्रम की जरूरत है।