बुद्धू बक्से पर एक विज्ञापन आता है जिसमें आखिरी पंक्ति का मजमून कुछ यूं है, ‘डर के आगे जीत है’। लेकिन हर डर के आगे जीत नहीं होती। कुछ ऐसा ही डर इंडिया इंक को लग रहा है।
चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में मुनाफा उगल रही कंपनियों को मंदी की बुरी नजर लग गई। डर इस बात का ज्यादा है कि अगली तिमाही के नतीजे अल्फ्रेड हिचकॉक की हॉरर फिल्म से भी खौफनाक न हो जाएं।
बिजनेस स्टैंडर्ड की ‘व्यापार गोष्ठी’ में भी इस बार चर्चा इसी पर थी कि क्या अगली तिमाही के नतीजे होंगे और भी बदतर। विशेषज्ञों और ज्यादातर पाठकों को तो मुश्किलों से अभी निजात मिलती नहीं दिख रही।
पाठकों का मानना है कि मांग में कमी के चलते इस तिमाही में कंपनियों को और भी बुरे वक्त के लिए तैयार रहना चाहिए।