प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
सर्वोच्च न्यायालय ने संकटों से घिरी एडटेक फर्म बैजूस पर दिवाला कार्यवाही जारी रखने का रास्ता आज साफ कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि चूंकि ऋणदाताओं की समिति गठित की जा चुकी है। इसलिए दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता के तहत प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन के पीठ ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील अधिकरण (एनसीएलएटी) के फैसले के खिलाफ बैजू रवींद्रन की अपील खारिज कर दी। दोनों न्यायाधीशों ने कहा कि अपील अधिकरण का आकलन सही था कि एडटेक फर्म के खिलाफ शुरू की गई दिवाला कार्यवाही को वापस लेने के लिए ऋणदाताओं की समिति की मंजूरी जरूरी थी।
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एनसीएलएटी ने माना था कि भले ही कंपनी ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को 158 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया है, लेकिन दिवाला कार्यवाही को वापस लेने के लिए ऋणदाताओं की समिति की मंजूरी जरूरी होगी। ऋणदाताओं की समिति एक निर्णय लेने वाला निकाय है, जिसमें मुख्य रूप से वित्तीय लेनदार हैं।
बीसीसीआई ने 158 करोड़ रुपये के बकाया के खिलाफ एड टेक फर्म के खिलाफ दिवाला कार्यवाही शुरू की थी। मगर बैजूस ने बीसीसीआई को बकाया राशि चुका दी थी, जिसके के बाद दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया। फिर क्रिकेट प्रशासन निकाय ने अगस्त 2024 में दिवाला प्रक्रिया वापस लेने के लिए आवेदन किया था।
सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपनी याचिका में रवींद्रन ने तर्क दिया कि वापसी का आवेदन ऋणदाताओं की समिति के गठन से पहले दायर किया गया था और इसलिए उसे ऋणदाताओं की समिति की मंजूरी की आवश्यकता नहीं थी।
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मगर न्यायमूर्ति पारदीवाला ने इस तर्क पर सवाल उठाया और बताया कि एनसीएलएटी ने सर्वोच्च न्यायालय के पहले के एक फैसले पर सही ढंग से भरोसा किया था, जिसमें कहा गया था कि एक बार ऋणदाताओं की समिति बन जाने के बाद किसी भी वापसी को दिवाला और ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) की धारा 12ए के तहत सांविधिक ढांचे के अनुरूप होना चाहिए।