सर्वोच्च न्यायालय में मिस्त्री समूह की समीक्षा याचिका ‘टाटा बनाम मिस्त्री’ कानूनी लड़ाई में एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया होगी। वकीलों का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय में काफी कम पुनर्विचार याचिकाएं सफल होती हैं।
केएस लीगल ऐंड एसोसिएट्स में मैनेजिंग पार्टनर सोनम चांदवानी ने कहा, ‘एनसीएलएटी के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पलटने से शापूरजी पलोंजी (एसपी) समूह के मुखिया को लेकर अनिश्चितता पैदा हुई है। एसपी समूह ने यह आरोप लगाते हुए पुनर्विचार याचिका दाखिल की है कि सर्वोच्च न्यायालय टाटा संस में उत्पीडऩ और कुप्रबंधन से संबंधित सभी आरोपों पर विचार करने में विफल रहा है। यह बताना जरूरी है कि पुनर्विचार याचिका की गुंजाइश सीमित है, क्योंकि इस तरह की याचिका को तभी स्वीकृत किया जाता है जब किसी नए और महत्वपूर्ण मामले या प्रमाण को पेश किया गया है या जब स्पष्ट रूप से कोई गलती हुई हो। मौजूदा मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने सभी मौजूद तथ्यों पर विचार किया।’
मिस्त्री की याचिका में निर्णय में शामिल कुछ कथित त्रुटियों का जिक्र किया गया है, जिससे खासकर कंपनी अधिनियम के अधिकारों और स्वतंत्र निदेशकों और ट्रस्ट नोमिनी की जिम्मेदारियों को कम किया गया है।
एक अन्य वकील ने कहा, ‘यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा क्या निर्णय लिया जाएगा, क्योंकि पूर्व सीजेआई, एसए बोबडे सेवानिवृत हो चुके हैं।’
अपने 26 मार्च के आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय पंचाट (एनसीएलएटी) के निर्णय को रद्द कर दिया था और टाटा संस (टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी) के पक्ष में फैसला दिया था।
टाटा संस के आर्टीकल ऑफ एसोसिएशन के अनुसार, ट्रस्ट नामित निदेशकों को होल्डिंग कंपनी द्वारा लिए गए निर्णयों को लेकर वीटो पावर है, भले ही उसकी हिस्सेदारी 40 प्रतिशत तक ही हो। टाटा संस में ट्रस्ट की हिस्सेदारी 66 प्रतिशत जबकि मिस्त्री परिवार की 18.4 प्रतिशत है।
वकील ने कहा कि अन्य संघर्ष अब दोस्तों से शत्रु बने दो पक्षों के बीच बढ़ रहा तनाव है। कंपनी में मिस्त्री की हिस्सेदारी के मूल्यांकन को लेकर यह तनाव बढ़ रहा है।
