पंजाब और हरियाणा में तीन लाख से अधिक लघु एवं मझोली इकाइयां हैं, लेकिन इनमें से महज 2124 इकाइयां (25 फरवरी, 2009 तक) ही बीआईएस (भारतीय मानक ब्यूरो) के साथ पंजीकृत हैं।
यह संख्या कुल इकाइयों की संख्या की 1 फीसदी से भी कम है। यह आंकड़ा बीआईएस के चंडीगढ़ कार्यालय द्वारा मुहैया कराया गया है। बीआईएस चंडीगढ़ के साथ पंजीकृत इकाइयों की संख्या 2005-06 में 2600 थी। 2007-08 में यह घट कर 2,038 रह गई और मौजूदा समय में यह 2125 है।
अधिकारियों को उम्मीद है कि मार्च के अंत तक इस संख्या में इजाफा होगा। बीआईएस चंडीगढ़ के उप महानिदेशक भूपिंदर सिंह ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हमारे साथ नए व्यापार संगठन जुड़े हैं और कई पुराने उद्यमी हमारी सूची से बाहर हुए हैं। इसलिए ऐसा नहीं है कि लोग इसके बारे में अवगत नहीं हैं, लेकिन यह उनकी जरूरत पर निर्भर करता है। कई उद्यमियों ने सरकारी निविदाओं के लिए योग्य होने का प्रमाणन हासिल कर लिया है और अगर वे इसे लेकर गंभीरता नहीं दिखाते हैं तो उनके प्रमाणन को नवीनीकृत नहीं किया जाएगा।’
उन्होंने बताया कि बीआईएस प्रमाणन को लेकर लघु एवं मझोले उद्यमों (एसएमई) का उत्साह बढ़ाने के लिए जागरुकता शिविरों का आयोजन कर रहा है। उन्होंने कहा कि कुछ छोटी इकाइयां बीआईएस प्रमाणन से बच रही हैं, क्योंकि उन्हें ऐसा करने पर विशेष बुनियादी ढांचे, शोध प्रयोगशालाओं, तकनीकी स्टाफ को कायम रखना होगा और निर्धारण शुल्क के तौर पर रकम खर्च करनी होगी जिससे वे अब तक परहेज करने की कोशिश कर रही हैं।
पंजाब और हरियाणा में कई सहायक इकाइयां वाहन उद्योग की जरूरतों की पूर्ति कर रही हैं। इकाइयों का मानना है कि उन्हें बीआईएस प्रमाणन की जरूरत नहीं है। भूपिंदर सिंह ने कहा कि पैंट, कैटलफीड और सैनिटरीवेयर निर्माता उनके साथ नियमित रूप से पंजीकृत हैं।
