भारत में ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका टीके के परीक्षण में शामिल 40 वर्षीय वॉलंटियर के गंभीर रूप से बीमार पडऩे और 5 करोड़ रुपये का हर्जाना मांगे जाने के बाद भारत में टीके के परीक्षण पर अनिश्चितता के बादल गहरा गए हैं। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने कहा है कि कानूनी नोटिस में शामिल आरोप ‘दुर्भावनापूर्ण और गलत’ हैं और वह इसके लिए 100 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति मांगेगी।
शनिवार को, एसआईआई के मुख्य कार्याधिकारी ने संकेत दिया है कि वह दो सप्ताह में भारतीय नियामक के समक्ष टीके के आपात इस्तेमाल प्राधिकरण (ईयूए) के लिए आवेदन करेंगे। 40 वर्षीय व्यक्ति (नाम छिपाया गया है) कोविडशील्ड (यह टीका या प्लेसेबो हो सकता है) के चिकित्सकीय परीक्षण से गुजरने के 10 दिन बाद बीमार पड़ गया था। हालांकि बाद की जांच में पता चला कि उसमें सार्र्स-कोव-2 वायरस के लिए एंटीबॉडी विकसित हो गए हैं और इसकी संभावना ज्यादा है कि उसे टीका दिया गया था। टीके की खुराक के 10 दिन बाद, 11 अक्टूबर को उसे गंभीर सिर दर्द और उल्टियां आने की समस्या हुई। सीटी स्कैन, कोविड-19 टेस्ट और एमआरआई स्कैन के बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया और आईसीयू में रखा गया। अस्पताल में 11 दिन के बाद उसे छुट्टी दी गई और अस्पताल की आखिरी रिपोर्ट में कहा गया कि वह ‘एक्यूट इंसेफ्लोपैथी’ से गुजर रहा था। इसे लेकर विवाद अभी भी बना हुआ है। उसकी ओर से एक विधि कंपनी ने एसआईआई को भेजे कानूनी नोटिस में 5 करोड़ रुपये की क्षतिपूति मांगी है।
कानूनी नोटिस (जिसे बिजनेस स्टैंडर्ड ने भी देखा है) में कहा गया है कि प्रतिभागी को उन सभी समस्याओं के लिए मुआवजा तो जरूर दिया जाना चाहिए, जिनसे उसका परिवार गुजरा है और जिनके भविष्य में सामने आने की आशंका है। 40 वषीय इस व्यक्ति की ओर से कानूनी नोटिस भेजने वाली कंपनी एडवोकेट्स रॉ ऐंड रेड्डी ऐंड आर राजाराम ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि उसका चिकित्सा खर्च किसी ने वहन नहीं किया है।
दूसरी तरफ, एसआईआई का दावा है कि कानूनी नोटिस में लगाए गए आरोप दुर्भावनापूर्ण और गलत हैं। कंपनी के प्रवक्ता ने कहा, ‘हालांकि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया इस वॉलंटियर की चिकित्सा स्थिति को लेकर दुखी है, लेकिन टीके के परीक्षण और वॉलंटियर की चिकित्सा स्थिति के साथ कोई संबंध नहीं है। वॉलंटियर अपनी चिकित्सा समस्या कोविड वैक्सीन परीक्षण की वजह से पैदा होने का झूठा आरोप लगा रहा है।’
