किराना और एपेरेल रिटेल विस्तार पर ही मंदी की मार नहीं पड़ी है, बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों (ओएमसी) की ईंधन रिटेल विस्तार पर भी मंदी का ग्रहण लग गया है।
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन और भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों के विस्तार कार्यक्रम में कमी दर्ज की गई है। वह तो कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में गिरावट की वजह से इन कंपनियों के सेहत पर ज्यादा असर नहीं पड़ा।
अगर मौजूदा साल की बात करें, तो सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों ने मात्र 800 रिटेल ईंधन आउटलेट खोले हैं। साल के शुरूआत में कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से भी रिटेल ईंधन आउटलेटों के विस्तार की गति धीमी हो गई थी।
पिछले महीने पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री दिनशा पटेल ने संसद में कहा था कि ओएमसी मौजूदा वर्ष में 1680 ईंधन रिटेल आउटलेट खोलने पर विचार कर रही है। हालांकि तेल बेचने वाली एक कंपनी के अधिकारी ने कहा कि रिटेल आउटलेट खोलने का कोई प्रस्तावित लक्ष्य नहीं था और वैसे भी ये सारी बातें बाजार की स्थिति पर निर्भर करता है।
एक विशेषज्ञ ने कहा, ‘चूंकि पेट्रोल और डीजल सब्सिडी पर बेची जाती है, इसलिए अगर इसके रिटेल आउटलेटों की संख्या बढ़ेगी, तो घाटा और बढ़ेगा। इससे कंपनियों द्वारा अपनाए गए राहत उपायों पर भी असर पड़ेगा। अभी की जो बाजारीय स्थिति है, उसके हिसाब से मंदी से उबरना कंपनियों का प्रमुख लक्ष्य है।’
जुलाई 2008 में भारत में कच्चे तेल की कीमत 142.04 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर था। अगर मौजूदा वर्ष में कच्चे तेल की औसत कीमत की बात करें, तो यह 84.55 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर है। वर्ष 2007-08 में यह औसत कीमत 79.25 डॉलर प्रति बैरल थी।
इस लिहाज से मौजूदा वर्ष में कच्चे तेल की औसत कीमत में 6.69 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि इस बाबत रुपये की कमजोरी का लाभ भी तेल कंपनियों को मिला है। अप्रैल से अब तक रुपये 26 फीसदी कमजोर हो गया है।
वित्त वर्ष 2008-09 में सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को बतौर राहत 103,908 करोड़ रुपये मुहैया कराई गई है। इसमें 60,967 करोड़ रुपये तेल बॉन्ड के जरिये उगाही की गई है। इसके बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों ने मौजूदा वर्ष की अप्रैल-दिसंबर अवधि में 11,094 करोड़ रुपये का घाटा दिखाया है।
