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ऑडिट के आधार पर ही होती है रेटिंग

Last Updated- December 09, 2022 | 9:06 PM IST

रामलिंग  राजू के सनसनीखेज खुलासे से यह साफ जाहिर होता है कि राजू वित्तीय अनियमितताओं की खिचड़ी सालों से पकाते रहे और उनके निदेशक इससे बेफिक्र रहे।


यहां तक कि पूर्णकालिक निदेशक ने भी अनियमितता से जुडा कोई भी मुद्दा नहीं उठाया।

आईसीआरए के प्रबंध निदेशक नरेश टक्कर ने कहा, ‘रेटिंग एजेंसियां ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर हीं रेटिंग तैयार करती है। अगर ऑडिट रिपोर्ट ही विश्वसनीय नहीं है, तो जाहिर सी बात है कि रेटिंग की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी।’ 

साथ ही रेटिंग एजेंसियों के पास ऐसे अधिकार और संसाधन नही होते कि वे किसी कंपनी की फिर से ऑडिट करा सकें। जब तक सत्यम की अनियमितताओं का खुलासा नहीं हुआ था, तब तक कंपनी उन सारी शर्तों को पूरा करती थी, जो किसी कंपनी को सर्वोच्च रेटिंग देने के लिए जरूरी होता है।

मुंबई की एक रेटिंग एजेंसी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘कागज पर सत्यम अधिकतम रेटिंग प्राप्त करने की सारी योग्यता रखता था। इस मामले में कंपनी के खिलाफ जो एकमात्र बात जाती है, वह है इनके प्रोमोटर्स की राजशाही।’

एडेल्विस के विशेषज्ञ विजू जॉर्ज कहते हैं कि कॉरपोरेट गवनर्स का संचालन कड़े तौर तरीकों पर निर्भर नहीं करता है, इसे परिमाणों में नहीं रखा जा सकता है। उनके मुताबिक काफी लंबे समय में यह महसूस किया जा सकता है कि कोई कंपनी प्रबंधन के हर स्तर पर अच्छा या गलत प्रदर्शन कर रही है।

आईसीआरए और क्रिसिल जैसी प्रमुख रेटिंग एजेंसियां मानती है कि बोर्ड की संरचना, मालिकाना हक संरचना, पारदर्शिता और घोषणा, शेयरधारकों से संबंध, वित्तीय अनुशासन आदि ऐसे कारक हैं, जिसके आधार पर बेहतर कॉरपोरेट गवनर्स का आकलन किया जा सकता है।

बोर्ड में स्वतंत्र और कार्यकारी निदेशकों के बीच एक बेहतर संतुलन होना चाहिए। सत्यम इन सारे मानकों पर खरा उतरता था।

First Published - January 9, 2009 | 10:46 PM IST

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