8000 करोड़ रुपये की प्रीमियम रियल्टी परियोजनाएं अधर में

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 7:40 AM IST

20 जून, 2005 को भारत की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ ने मुंबई टेक्सटाइल मिल्स की 17.5 एकड़ी जमीन नैशनल टेक्सटाइल कॉर्पोरेशन से 702 करोड़ रुपये देकर खरीदी और कंपनी ने लोअर परेल में एक रिटेल-कम-एंटरटेनमेंट केन्द्र की घोषणा कर डाली।


यह परियोजना जिसकी पहले इस साल पूरा होने की उम्मीद थी अब लगभग 2010 से कुछ समय पहले ही पूरा हो पाएगी।  इसी साल शिव सेना के नेता मनोहर जोशी के कोहिनूर समूह और राज ठाकरे के मातोश्री रियल्टर्स ने दादर में नैशनल टेक्सटाइल कॉर्पोरेशन से कोहिनूर मिल्स की जमीन 421 करोड़ रुपये की अदायगी के बाद खरीदी।

ऐसी उम्मीद थी कि यह जमीन एक बड़े रिटेल मॉल का रूप लेगी, लेकिन रिटेलरों और डेवलपरों के बीच किराए को लेकर आपसी मतभेद के चलते जमीन को बेचने के लिए लगा दिया गया। अशोक पीरामल समूह की कंपनी पेनिसुला लैंड ने लोअर परेल में रुइया समूह से पूर्व डॉन मिल्स 120 करोड़ रुपये में खरीद ली थी। कंपनी की योजना इस पर 11 लाख वर्गफुट का जुलाई 09 तक पेनिंसुला बिजनेस पार्क बनाने की थी।

अब कंपनी को उम्मीद है कि इस परियोजना का सिर्फ पहला ही चरण 2010 तक पूरा हो पाएगा। ये लक्जरी रियल्टी परियोजनाओं के सिर्फ तीन ही उदाहरण हैं, जिनकी घोषणा देश की बड़ी-बड़ी रियलिटी कंपनियों ने की थी और जो अपने पूरा होने की बाट जोह रहे हैं। उद्योग के अनुमानों के अनुसार, लगभग 8000 करोड़ रुपये के रियल एस्टेट की परियोजनाएं जो लगभग 4 करोड़ वर्गफुट पर बनाई जा रही हैं, धीमी रफ्तार से चल रही हैं।

विश्लेषकों का कहना है कि एक बड़े व्यावसायिक परियोजना में प्रति वर्गफुट औसतन 2 हजार रुपये की लागत आती है। इस प्रक्रिया में डेवलपर्स को परियोजनाओं के टलने के चलते बड़ी लागत के बोझ का सामना करना पड़ रहा है। विश्लेषकों के अनुसार निर्माण लागत हर साल 20 प्रतिशत की वृध्दि दर से बढ़ रही है और डेवलपर्स पर तीन वर्ष पर 30 से 40 प्रतिशत चक्रवृध्दि ब्याज दर का बोझ भी पड़ रहा है।

रियल एस्टेट कारोबार के विशेषज्ञों का मानना है इन परियोजनाओं की लागत पिछले तीन वर्षों में दोगुनी हो चुकी है, जिसकी वजह कच्चे माल और निर्माण लागत में वृध्दि और ब्याज दरों में इजाफे का होना है। इस्पात को सीमेंट की कीमतें, जो इन परियोजनाओं में मुख्य रूप से खर्च होते हैं, दिसंबर 2005 से अब तक करीब-करीब 50 प्रतिशत बढ़ चुकी हैं।

इस काम में देरी की वजह सरकार की मंजूरी देने की धीमी प्रक्रिया, म्युनिसिपैलिटी का काम बंद करो नोटिस जारी करना, निर्माण में देरी, मजदूरों या श्रमिकों का समय पर न मिल पाना आदि-आदि हैं। पार्क लेन प्रॉपर्टी एडवाइजर्स के प्रबंध निदेशक अक्षय कुमार का कहना है, ‘सभी डेवलपर्स, जिन्होंने नैशनल टेक्सटाइल कॉर्पोरेशन से जमीन खरीदी है उन्हें बतौर अग्रिम राशि भुगतान करना पड़ता है और ऐसे में उन्होंने बाजार से काफी पैसा उठाया हुआ है।

अगर उन्होंने 10 प्रतिशत पर भी पैसा लिया है, चार वर्ष बाद चक्रवृध्दि ब्याज ही बढ़कर 40 से 50 फीसदी हो जाता है।’ प्रॉपर्टी सलाहकार कंपनी जोन्स लैंग लासेल मेघराज के चेयरमैन अनुज पुरी का कहना है कि डेवलपर्स परियोजनाओं में हो रही देरी की वजह से पिछले तीन वर्षों में प्रॉपर्टी के क्षेत्र में आई तेजी का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं। 2008 के अंत तक, मुंबई और उसके उपनगरों में 1.54 करोड़ वर्गफुट के बराबर कार्यालय उपयोगी जमीन और शामिल हो जाएगी, जिसके बारे में विश्लेषकों का मानना है कि इसका प्रॉपर्टी की कीमतों पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।

मुंबई के बीचोबीच वाणिज्यिक केन्द्रों जैसे नरीमन प्वॉइंट में दफ्तरों के किराये पिछले तीन वर्षों में लगभग 50 प्रतिशत बढ़े हैं, जबकि वर्ली और लोअर परेल जैसी जगहों में समान अवधि में लगभग 30 से 40 फीसदी का इजाफा हुआ है। बेशक डेवलपर्स मानते हैं कि उनकी परियोजनाएं समय से चल रही हैं, लेकिन व्यक्तिगत बातचीत के दौरान वे भी सरकारी मंजूरियों में होने वाली देरी को कोसते हैं।

मुंबई के बीचोबीच एक बड़ी परियोजना पर काम कर रहे एक प्रमुख डेवलपर का कहना है, ‘मुंबई में डेवलपर्स को पर्यावरण और वन विभाग, प्रदूषण नियंत्रक बोर्ड और अन्य से 56 तरह की मंजूरी हासिल करनी होती है और इसमें एक वर्ष से भी अधिक का समय लग जाता है।’ प्रॉपर्टी सलाहकार फर्म नाइट फ्रैंक के चेयरमैन, प्रणय वकील का कहना है, ‘मिल्स भूमि के मामले में मंजूरियों में पारदर्शिता में कमी है। कई मंजूरियों को जो पहले लागू थी, उन्हें रद्द कर दिया गया, जिसकी वजह से भी देरी हुई है।

मौजूदा पॉलिसियों में भी फेर-बदल के परिणामस्वरूप देरी हुई है।’ उदाहरण के लिए बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के अक्तूबर 2007 में मिल्स भूमि के डेवलपर्स को विकास नियंत्रण नियमों की अवहेलना के लिए जारी काम बंद करो नोटिस और फिर धीरे-धीरे इन नोटिसों को 2008 के शुरूआती समय में रद्द करने की वजह से मिलों पर विकास के काम में देरी हुई।  देरी के बारे में डीएलएफ के प्रवक्ता ने कहा, ‘हमारी लोअर परेल की परियोजना समय से और बिना अड़चनों के चल रही है।’

First Published : June 24, 2008 | 11:37 PM IST