जहां बड़ी तादाद में प्रमुख भारतीय कंपनियां दबाव का सामना कर रही हैं, वहीं कुछ को नकदी किल्लत की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। इंडिया रेटिंग्स के एक विश्लेषण से पता चला है कि इसकी वजह यह है कि खासकर धातु एवं खनन क्षेत्रों में प्रवर्तकों के स्वामित्व वाले 50 प्रतिशत से ज्यादा शेयर जून तिमाही में ऋणदाताओं के पास गिरवी रखे गए थे।
इंडिया रेटिंग्स ने वित्तीय दबाव से जूझ रही कंपनियों के नाम का खुलासा किए बगैर कहा, ’11 कंपनियों में वित्तीय दबाव बढ़ा है, जिनमें प्रवर्तक या प्रवर्तक समूह के नियंत्रण वाले 50 प्रतिशत या इससे ज्यादा शेयर वित्त वर्ष 2023 की जून तिमाही तक गिरवी थे। रेटिंग एजेंसियों ने तरलता पर दबाव को चिन्हित किया है।’
वित्त वर्ष 2020 की पहली तिमाही (महामारी-पूर्व) और इस साल जून तिमाही के बीच, जिंस कंपनियों ने गिरवी शेयर में वृद्धि दर्ज की। रेटिंग फर्म ने कहा है कि खपत और सेवा-आधारित कंपनियों ने गिरवी शेयरों में गिरावट दर्ज की। बीएस रिसर्च ब्यूरो द्वारा एकत्रित आंकड़े से पता चलता है कि हिंदुस्तान जिंक और वेदांत उन कंपनियों की सूची में शीर्ष पर थीं, जिनमें प्रवर्तकों की हिस्सेदारी या तो गिरवी रखी हुई थी।
रेटिंग फर्म ने कहा है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर, अयस्क/इस्पात और टेक्स्टाइल ऐसे क्षेत्र हैं जिन्होंने गिरवी शेयरों की सूची में दबदबा बनाया है। कई कंपनियों ने 50 प्रतिशत से भी ज्यादा प्रवर्तक शेयरों को ऋणदाताओं के पास गिरवी रख दिया। इनमें इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियों की संख्या ज्यादा है, क्योंकि इनमें से ज्यादातर कर्ज समाधान प्रक्रिया के अधीन हैं।
रेटिंग फर्म ने कहा है, ‘जिंस कीमतों में भारी तेजी और ऊंची परिचालन लागत अयस्क एवं इस्पात तथा टेक्स्टाइल क्षेत्र की कंपनियों के लिए ऐसे कुछ कारण हैं जिनकी वजह से वे शेयर गिरवी रखकर पैसा जुटाने को मजबूर हुई हैं। हालांकि इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र के समान, अयस्क एवं टेक्स्टाइल कंपनियों ने ऋण पुनर्गठन पर जोर दिया, जिससे शेयर गिरवी रखे जाने को बढ़ावा मिला है।’
एक वरिष्ठ विश्लेषक सागर देसाई ने कहा, ‘सख्त तरलता हालात और उधारी की ऊंची लागत को देखते हुए, कमजोर ऋण प्रोफाइल वाली कंपनियां अपनी वित्तीय जरूरतें पूरी करने के लिए लोन-अगेन्स्ट-शेयर सुविधा का इस्तेमाल कर सकती हैं।’