फ्यूचर समूह के खुदरा व्यापार के लिए कानूनी लड़ाई की धार अब तेज होती दिख रही है। सिंगापुर इंटरनैशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (एसआईएसी) के एक अंतरिम आदेश ने रिलायंस इंडस्ट्रीज और फ्यूचर ग्रुप के बीच 27,000 करोड़ रुपये के सौदे को फिलहाल रोक दिया है। एसआईएसी का यह अंतरिम आदेश भारत में कितना प्रभावी हो सकता है? अब फ्यूचर समूह, एमेजॉन एवं रिलायंस रिटेल के पास क्या कानूनी विकल्प हो सकते हैं? आइए जानते हैं विशेषज्ञों की राय:
अंतरिम अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता आदेश के प्रवर्तन में कानूनी चुनौतियां क्या हैं?
भारत यूएन कॉन्वेंशन ऑन द रिकॉग्निशन ऐंड एनफोर्समेंट ऑफ फॉरेन आर्बिट्रल अवाड्र्स 1958 का एक हस्ताक्षरकर्ता देश है। यह विदेशी मध्यस्थता फैसलों को भारत में मान्यता और प्रवर्तन सुनिश्चित करता है। हालांकि यह विदेशी मध्यस्थता ट्रिब्यूनल के केवल अंतिम फैसले पर ही लागू होता है।
फ्यूचर समूह और एमेजॉन के बीच कानूनी लड़ाई में आपातकालीन मध्यस्थ द्वारा पारित आदेश महज एक अंतरिम स्थगनादेश है। विशेषज्ञ बताते हैं कि भारतीय मध्यस्थता अधिनियम विदेशी अंतरिम आदेशों को मान्यता नहीं देता है। कानून फर्म इंडसलॉ के पार्टनर अमित जाजू ने कहा, ‘हालांकि विदेशी पक्ष वाले मध्यस्थता में दोनों पक्षों के पास विकल्प खुला है कि वे भारतीय मध्यस्थता अधिनियम की धारा 9 के तहत भारत में अंतरिम राहत के लिए आवेदन कर सकते हैं।’
कॉरपोरेट वकील मुरली नीलकांतन ने कहा कि सिंगापुर में आपातकालीन मध्यस्थता द्वारा दिए गए इस स्थगनादेश को लागू करने के लिए भारत में एक उच्च न्यायालय से इसकी पुष्टि करने की आवश्यकता होगी। इसके लिए मामले की सुनवाई मध्यस्थता अधिनियम की धारा 9 के तहत की जाएगी।
फ्यूचर रिटेल का यह दावा कानूनी तौर पर कितना सही है कि एमेजॉन ने जिस समझौते के तहत मध्यस्थता की प्रक्रिया शुरू की है उसमें वह कोई पक्ष नहीं है और इसलिए फ्यूचर समूह एवं रिलायंस रिटेल के बीच हुए सौदे को इसके दायरे में नहीं लाया जा सकता है?
वकीलों का कहना है कि आपातकालीन मध्यस्थता आदेश की प्रवर्तनीयता मामले के तथ्यों और शेयरधारकों के समझौते पर निर्भर करती है जिसके तहत मध्यस्थता प्रक्रिया शुरू की गई है। जाजू ने कहा, ‘यह देखना होगा कि क्या फ्यूचर रिटेल, जो इस समझौते का पक्ष न होने का दावा करती है, फ्यूचर समूह और एमेजॉन के बीच हुए समझौते से कहां तक बंधी है।’
अंतरिम मध्यस्थता आदेश का उल्लंघन न हो, इसे ध्यान में रखते हुए फ्यूचर समूह के पास क्या विकल्प मौजूद हैं?
विशेषज्ञों का कहना है कि फ्यूचर समूह के पास आपातकालीन मध्यस्थ द्वारा पारित अंतरिम आदेश को चुनौती देने का कानूनी विकल्प मौजूद है। जाजू ने कहा, ‘यदि न्यायिक क्षेत्राधिकार भारत में है (जैसा कि फ्यूचर समूह का दावा है) तो भारतीय मध्यस्थता अधिनियम की धारा 37 के तहत आदेश को चुनौती दी जा सकती है। यदि आदेश किसी विदेशी मध्यस्थ द्वारा पारित किया गया है तो उसे देश के घरेलू कानूनों के तहत चुनौती दी जा सकती है।’
क्या नियामकीय मंजूरियों के दौरान एमेजॉन इस सौदे को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) अथवा नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में चुनौती दे सकती है?
विशेषज्ञों का कहना है कि एमेजॉन को पहले अपना पक्ष साबित करना होगा जो उसके लिए एक बड़ी बाधा होगी क्योंकि एनसीएलटी में सौदे को चुनौती देने की पात्रता के लिए वह किसी भी पक्ष का शेयरधारक नहीं है। उन्होंने कहा कि एमेजॉन को सीसीआई/ एनसीएलटी एवं अन्य फोरम में व्यवधान डालने का अधिकार नहीं है। लेकिन अंतरिम आदेश के जरिये इन नियामकीय फोरम में सौदे को चुनौती दी जा सकती है।
अब इस मामले में आगे की कार्रवाई क्या हो सकती है?
हालांकि एमेजॉन एसआईएसी के अंतरिम आदेश को लागू करने के लिए बंबई या दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख कर सकती है। लेकिन फ्यूचर समूह भी इस आदेश को चुनौती देने सकता है। यदि एसआईएसी में इस मामले को आगे बढ़ाया जाता है तो दोनों पक्षों द्वारा मध्यस्थों का एक पैनल नियुक्त किया जाएगा। कानून विशेषज्ञों का मानना है कि रिलायंस समूह इस सौदे के लिए नियामकीय मंजूरियां हासिल करने की प्रक्रिया में तेजी लाएगा।