आतंकवाद से निजात पाने के लिए जब पूरा देश उपाय ढूंढ रहा हो, तब भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद के चार छात्रों ने उम्मीद की एक नई किरण दिखाई है।
देश के पूर्व राष्ट्रपति और जाने-माने परमाणु वैज्ञानिक डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम के निर्देशन में हुए इस शोध में इन छात्रों ने आतंकियों के मनोविज्ञान और उन परिस्थितियों का अध्ययन किया और पता लगाने की कोशिश की कि कोई आदमी आतंकवादी क्यों बनता है!
डॉ कलाम द्वारा संचालित किए जा रहे ग्रासरूट इनोवेशन टेक्लॉजी (जीआरआईटी) नामक कोर्स के तहत तीन महीने के इस अध्ययन को इस संस्थान के छात्रों सृजन पाल सिंह, निशिता अग्रवाल, रितेश बोस और पिनाकी रंजन ने मिलकर पूरा किया है। अध्ययन में इस बात पर फोकस किया गया कि कैसे एक आतंकमुक्त और सुरक्षित समाज की स्थापना संभव है!
इसके लिए आतंकवाद के प्रकारों और आतंकवादी बनाने की वजहों का अध्ययन किया गया। अध्ययन के तहत विषय से संबंधित तमाम मौजूद साहित्यों का अध्ययन हुआ और कई युवाओ से बातचीत की गई। इस तरह काफी बुनियादी आंकड़े जुटाने के बाद उनका विश्लेषण किया गया।
छात्रों और युवाओं ने आतंकवाद से जूझने के लिए कई उपाय भी सुझाए। इस अध्ययन को संचालित करने वाले समूह के एक छात्र सृजन पाल सिंह की राय है कि कोई भी जन्म से आतंकवादी नहीं होता। हमने इस अध्ययन के जरिए आतंकी बनने की वजह जानने की कोशिश की।
विभिन्न समुदायों के युवाओं से जब हमने बात की तो पाया कि समाज से अलगाव की भावना इस समस्या की सबसे बड़ी वजह है। इस अध्ययन में पाया गया कि दमन और अन्याय इस समस्या की अन्य वजहें हैं।
छात्रों ने बताया कि आतंकवाद से दो स्तरों पर लड़ा जाना चाहिए। पहला तो यह कि कड़े कानून बनाए जाएं। सिंह के मुताबिक, अब के आतंकी दिमागी तौर पर अपने काम के प्रति पूरी तरह समर्पित होते हैं।
इनसे निपटने के लिए कड़े कानूनों के साथ जिम्मेदार और समर्पित सिस्टम की जरूरत है। यही नहीं एक बेहतर खुफिया तंत्र का होना बड़ी जरूरत है ताकि विभिन्न राज्यों के बीच सूचना का आदान-प्रदान संभव हो सके। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल भी बहुत जरूरी है क्योंकि आतंकवाद जैसी वैश्विक समस्या से निपटने के कई देशों के तरीके काफी कारगर हैं।
दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण स्तर यह कि बेहतर मूल्यों वाली शिक्षा प्रणाली के जरिए आतंकवाद को जड़विहीन बनाया जाए। सिंह के मुताबिक, एक बड़ी समस्या तो यह भी है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में मूल्यों का तेजी से ह्रास हुआ है।
ऐसे में नैतिक शिक्षा जैसे विषयों को अनिवार्य बनाने की जरूरत है। देश में अब भी विभिन्न समुदायों के बीच काफी मतभेद हैं। उनके मुताबिक, सामुदायिक सेवाओं को प्रोत्साहन देने से एक-दूसरे समुदायों का सम्मान करने की आदतों में वृद्धि होगी।