पिछले साल वैश्विक स्तर पर इंटरनेट बंद किए जाने वाले कुल 155 मामलों में से दर्ज किए गए 109 मामलों के साथ भारत ऐसा देश रहा, जहां सबसे ज्यादा बारइंटरनेट बंद हुआ। यह लगातार तीसरा ऐसा वर्ष है, जब भारत ने सबसे अधिक बार इंटरनेट बंद किया। डिजिटल अधिकार और गोपनीयता संबंधी संगठन -एक्सेस नाउ की नई रिपोर्ट में यह जानकारी मिली है।
कम से कम छह दफा इंटरनेट बंद किए जाने के साथ भारत के बाद यमन, चार मामलों के साथ इथियोपिया और ऐेसे तीन मामलों के साथ जॉर्डन का स्थान रहा। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत, यमन और इथियोपिया वर्ष 2019 के दौरान इंटरनेट में सबसे अधिक रुकावट डालने वालों में शुमार रहे थे। ‘बिखरे सपने और गंवाए अवसर : हैशटैग कीपइटऑन की लड़ाई में एक साल ‘ नामक इस रिपोर्ट में पाया गया है कि वर्ष 2020 में बेलारूस से बांग्लादेश तक 29 देशों के विभागों ने कम से कम 155 बार इंटरनेट बंद या बाधित किया है।
एक्सेस नॉउ के वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय सलाहकार और एशिया प्रशांत के नीति निदेशक रमन जीत सिंह चीमा ने कहा कि यह चिंताजनक बात है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र-भारत विश्व में इंटरनेट बंद करने का सबसे बड़ा प्रवर्तक बना हुआ है। उन्होंने कहा कि हम कई सालों से जम्मू कश्मीर में लक्षित ब्लैकआउट में रहे हैं और देश के हर हिस्से में फैला शटडाउन देखा है तथा इसे शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाने और सरकारी विभागों के कार्यों को छिपाने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। भारत में लोग अनिश्चितता में जीते हैं। यह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुरूप नहीं है और न ही केंद्र सरकार के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के प्रगतिशील पहलू के अनुरूप ही है।
भारत ने जिन कारणों से इंटरनेट बंद किया, उनमें राजनीतिक अस्थिरता (75), चुनाव (10), विरोध प्रदर्शन (8), धार्मिक अवकाश या वर्षगांठ (5), सांप्रदायिक हिंसा (4) और परीक्षा में नकल (2) शामिल हैं। दुनिया के अन्य भागों में इंटरनेट बंद किए जाने का सबसे बड़ा कारण संघर्ष रहा है। इसके बाद चुनाव, विरोध, परीक्षा में नकल और राजनीतिक अस्थिरता जैसे कारण रहे हैं।
इस रिपोर्ट के लिए जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार 28 बार पूरी तरह से इंटरनेट बंद किया गया था, जहां विभागों ने ब्रॉडबैंड और मोबाइल संपर्क दोनों को ही रोक दिया था।