डेटा सेंधमारी के संबंध में अब कंपनियों की लागत ऐसे प्रत्येक मामले में औसतन 42.4 लाख डॉलर है। आईबीएम के वैश्विक अध्ययन में ऐसा पाया गया है। रिपोर्ट के 17 साल के इतिहास में यह सर्वाधिक लागत है। यह निष्कर्ष पोनमोन इंस्टीट्यूट द्वारा संचालित वार्षिक कॉस्ट ऑफ डेटा ब्रीच रिपोर्ट का हिस्सा थे, जिसका प्रायोजन और विश्लेषण आईबीएम सिक्योरिटी द्वारा किया गया था।
500 से अधिक संगठनों द्वारा अनुभव की गई वास्तविक जगत की डेटा सेंधमारी के गहन विश्लेषण पर आधारित इस अध्ययन से पता चलता है कि लागत में पिछले साल की तुलना में 10 प्रतिशत की वृद्धि होने से महामारी के दौरान भारी परिचालन बदलाव के कारण सुरक्षा की घटनाएं अधिक महंगी और मुश्किल हो गईं।
भारत के मामले में वर्ष 2021 के दौरान डेटा सेंधमारी की औसतन कुल लागत 16.5 करोड़ रुपये थी और इसमें वर्ष 2020 से 17.85 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।
पिछले साल कारोबारों को अपने प्रौद्योगिकी दृष्टिकोण में शीघ्रतापूर्वक सुधार के लिए विवश होना पड़ा था, क्योंकि कई कंपनियां कर्मचारियों को घर से काम करने के लिए प्रोत्साहित कर रही थी या ऐसा करने की अपेक्षा थी तथा महामारी के दौरान 60 प्रतिशत संगठन क्लाउड आधारित गतिविधियों की दिशा में बढ़ रहे थे। नए निष्कर्ष बताते हैं कि डेटा सेंधमारी का जवाब देने के लिए संगठनों की क्षमता में अड़चन डालते हुए सूचना प्रौद्योगिकी के इन तीव्र परिवर्तनों में सुरक्षा संभवत: पिछड़ सकती है। आईबीएम टेक्नोलॉजी सेल्स (भारत/दक्षिण एशिया) के सिक्योरिटी सॉफ्टवेयर सेल्स लीडर प्रशांत भटकल का कहना है ‘दूरस्थ कार्य के प्रति तेजी से बदलाव में सुरक्षा कार्यक्रमों में जबरदस्त व्यवधान देखा गया है। संगठन ऑनलाइन होने पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे और सुरक्षा बाद की चीज बन गई थी। महामारी के दौरान भारत में डेटा सेंधमारी में रिकॉर्ड उच्च स्तर देखा गया, जिसकी वजह से कई संगठनों को अपनी सुरक्षा स्थिति का मूल्यांकन करना पड़ा। एआई को अपनाने, सुरक्षा विश्लेषण और जीरो ट्रस्ट दृष्टिकोण लागू करने समेत आधुनिकीकरण से डेटा सेंधमारी से जुड़ी लागत में काफी कमी आई है। उन उपायों को सीखना और लागू करना महत्त्वपूर्ण है, जिन्होंने किसी सेंधमारी के होने पर संगठनों का काफी पैसा बचाया है, इनमें जीरो ट्रस्ट, स्वचालन, हाइब्रिड क्लाउड और इन्क्रिप्शन लागू करना शामिल है।’