उद्योग

गर्मी से भट्ठी बने कारखानों में काम करने को मजबूर दिल्ली-NCR के मजदूर

मौसम विभाग ने कहा, 'कारखानों के भीतर कई बार तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के पार चला जाता है, जिससे शरीर की काम करने की क्षमता कम हो जाती है।'

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हर्ष कुमार   
Last Updated- June 06, 2024 | 9:20 PM IST

दिल्ली से सटे फरीदाबाद में भीषण गर्मी से तपती टीन की छत वाले कारखाने में शिवकांत कुमार प्लास्टिक का सजावटी सामान बनाने में जुटे हैं। मशीनों से निकल रही गर्मी सीधे उनके चेहरे पर पड़ रही है और उनका पूरा बदन पसीने से लथपथ है मगर शिवकांत शिकायत करने के बजाय कहते हैं, ‘काम तो काम है।’

शिवकांत जैसे हजारों मजदूर आसपास के कारखानों में गर्मी से जूझ रहे हैं। फरीदाबाद आईएमटी इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष वीर भान शर्मा कहते हैं, ‘जबरदस्त गर्मी के कारण हमारा उत्पादन 10 से 15 फीसदी घट गया है क्योंकि दोपहर से शाम 4 बजे तक काम धीमा हो जाता है। हम कामगारों पर ज्यादा दबाव नहीं डाल रहे क्योंकि गर्मी में उनका बचाव भी जरूरी है।’

राजधानी में लगातार छह दिनों तक चिलचिलाती धूप और गर्मी रही, जिसमें पारा 45.6 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। मौसम विज्ञान ने इसी वजह से इस मई को 2013 के बाद से सबसे गर्म महीना बताया। न्यूनतम तापमान के आंकड़े बताते हैं कि मई में रातें 2016 के बाद से सबसे अधिक गर्म रहीं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में फरीदाबाद सबसे ज्यादा गर्म रहा, जहां तापमान 47.4 डिग्री तक गया। नोएडा में 47.3 डिग्री, गुरुग्राम में 46.9 डिग्री और गाजियाबाद में 44.7 डिग्री अधिकतम तापमान रहा।

शर्मा बताते हैं, ‘हम गर्मी से निपटने के लिए वाटर कूलर और पंखे लगा रहे हैं। मगर पानी से जंग लगने का खतरा रहता है, जिसका हमें पूरा ध्यान है। हम यह भी ध्यान रख रहे हैं कि कामगारों को थोड़ी-थोड़ी देर में पीने के लिए कुछ मिलता रहे ताकि उनके शरीर में पानी की कमी न हो।’

कारखानों में इंतजाम हो रहे हैं मगर कुछ कामगार नाखुश लगते हैं। एक कामगार नाम नहीं छापे जाने की शर्त पर कहता है, ‘मालिकों और अफसरों के लिए तो एयर कंडीशनर हैं मगर हम कामगारों को ठंडा पानी भी मिल जाए तो गनीमत है।’

कुछ कारखाना मालिकों ने गर्मी से निपटने के लिए हरेक कामगार के लिए पंखा लगवाया है। मगर मशीनों से निकलने वाली गर्मी के सामने वह भी नाकाफी साबित हो रहा है।

नई दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक प्रोफेसर डॉ. एम वली कहते हैं, ‘कारखानों में मशीनों से बहुत अधिक गर्मी निकलती है और हवा की आवाजाही का इंतजाम नहीं होता है, जिससे हीटस्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। टीन की छत से बरसने वाली गर्मी हालात और भी बदतर कर देती है। ऐसे में कामगारों के लिए अमानवीय हालत हो जाती है। कुछ कारखाना मालिक खर्च बचाने के चक्कर में कामगारों को बुनियादी सुविधाएं तक नहीं देते।’

बहरहाल कुछ कारखानों के मालिक अपने कामगारों को गमछे देने का भी दावा करते हैं। वाहन बनाने वाली कुछ कंपनियों में एसी लगे हैं और पेंट बनाने वाले कुछ कारखानों में बड़े कूलर लगाए गए हैं। सैनऑटो इंजीनियर्स इंडिया के प्रबंध निदेशक राज कुमार करवा बताते हैं, ‘गर्मी से निपटने के लिए हमने बड़े-बड़े कूलर लगाए हैं। जब गर्मी बहुत ज्यादा होती है, उस समय हम कामगारों को कुछ देर के लिए छुट्टी भी दे रहे हैं। मगर हम काम पूरी तरह बंद नहीं करा सकते क्योंकि कारोबार चलाना है।’

इस बीच मौसम विभाग ने कहा, ‘कारखानों के भीतर कई बार तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के पार चला जाता है, जिससे शरीर की काम करने की क्षमता कम हो जाती है। कारखाना मजदूरों को आराम का बहुत कम समय मिलता है, जिससे उनके शरीर पर दबाव बढ़ जाता है। हर दो घंटे में कम से कम 15 मिनट की छुट्टी देना अच्छा रहेगा।’

First Published : June 6, 2024 | 9:16 PM IST