जी 20 देशों की बैठक में कर के नियम कड़े कर देने से भारत को कोई फायदा मिलने की उम्मीद नहीं है।
दरअसल, समूह के ज्यादातर देशों के द्विपक्षीय कर अनुबंध होने से देश में होने वाला ज्यादातर निवेश वैध होता है। माना जा रहा है कि ‘कर का स्वर्ग’ साबित हो रहे देशों के लिए बना यह कानून भारत को ज्यादा लाभ नहीं दिलाएगा।
भारत के लिए मॉरिशस और साइप्रस कर का स्वर्ग साबित होते रहे हैं। केवल इन दो देशों से ही देश में कुल विदेशी निवेश के आधे का निवेश होता है। इन दोनों देशों के साथ भारत का दोहरे कराधान से बचाव का अनुबंध (डीटीएए) है।
वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर बताया कि सरकार इन दोनों देशों के साथ मौजूद अपनी संधि को बदलने की तनिक भी इच्छुक नहीं है। ऐसे में नियम कड़े होने के बावजूद मौजूदा व्यवस्था में बदलाव की कोई संभावना नहीं है।
अधिकारी के मुताबिक, केवल नए डीटीएए अनुबंध के जरिए ही इस प्रावधान को और कड़ा किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि अभी भारत का 70 से ज्यादा देशों के साथ दोहरे कराधान से बचाव के अनुबंध यानी डीटीएए हैं।
पिछले कई साल से भारत मॉरिशस के साथ हुई अपनी संधि पर पुनर्विचार की कोशिश करता रहा है। भारत ने इसमें बदलाव के लिए एक साथ भुगतान का प्रस्ताव भी किया था, लेकिन इसके लिए मॉरिशस तैयार ही नहीं हो रहा है।
वित्त मंत्रालय के इस अधिकारी ने बताया, ‘मॉरिशस के साथ भारत का दोस्ताना संबंध है। इस वजह से भारत मामले में कोई एकतरफा कदम उठाने से बचता रहा है।’ देश में हुए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की बात करें, तो अप्रैल 2000 से जनवरी 2009 के बीच मॉरिशस और साइप्रस से कुल 46 फीसदी निवेश हुआ।
आर्थिक सहयोग विकास संगठन (ओईसीडी) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, इन दोनों ही देशों का दायरा अंतरराष्ट्रीय कर मानकों के अनुरूप हैं। प्राइसवाटरहाउसकूपर्स के कार्यकारी निदेशक राहुल गर्ग ने बताया, ‘हमने मॉरिशस के साथ कर हिस्सेदारी का समझौता किया है, लेकिन ये हमें इससे संबंधित सूचना मुहैया ही नहीं कराना चाहते। इतना ही नहीं राउंड ट्रिपिंग के बारे में भी कोई जानकारी हासिल कर पाना काफी मुश्किल है।’
राउंड ट्रिपिंग उस धन को कहते हैं जो देश से बाहर चला जाता है। वहां से ये धन फिर भारत लौटता है। इसकी वजह यह कि मॉरिशस और साइप्रस जैसे देशों से निवेश करने पर कर में भारी छूट मिलती है। राजस्व के नुकसान की अन्य वजह ‘ट्रिटी शॉपिंग’ है।
