चार्टर्ड अकाउंटेंसी की नियामक संस्था, इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) ने उन विदेशी ऑडिट फर्मों पर लगाम कसने की कवायद तेज कर दी है, जो कानून की कमियों का फायदा उठाकर अपने प्रतिनिधियों के जरिये भारत में ऑडिट सेवा मुहैया करवा रही हैं।
इसी कोशिश के तहत आईसीएआई ने उन दर्जन भर सीए फर्मों को नोटिस जारी किया है, जिनके विदेशी फर्मों के साथ संबंध हैं। कानूनन केवल वही ऑडिट फर्म भारत में अपनी सेवाएं मुहैया करवा सकती हैं, जो आईसीएआई के तहत रजिस्टर्ड हों।
आईसीएआई के अध्यक्ष उत्तम प्रकाश अग्रवाल ने बताया कि, ‘इसके बावजूद विदेशों में रजिस्टर्ड कई ऑडिट फर्म, स्थानीय फर्मों के साथ गठजोड़ कर ऑडिट सेवा मुहैया करवाती पाई गईं हैं। हम यह पता लगना चाहते हैं कि ये फर्म कैसे काम कर रही हैं और क्या इसके लिए वे कानूनों का भी उल्लंघन कर रही हैं?
इसीलिए हमने उन 12 फर्मों को नोटिस भेजा है, जिनका विदेशी संस्थाओं के साथ संबंध है। हमने यह पता लगना चाहते हैं कि इसके पीछे उनका मकसद क्या है?’ हालांकि, उन्होंने इन फर्मों के नामों का खुलासा करने से इनकार कर दिया।
इन फर्मों को इस मामले में इंस्टीटयूट को 23 मई तक जवाब देना है। देश में कई ऐसे ऑडिट फर्म हैं, जिनके विदेशी फर्मों के साथ संबंध हैं। मिसाल के तौर पर प्राइसवाटर हाउस और एसआर बाटलीबोई को ही ले लीजिए। एक तरफ, प्राइस वाटर हाउस, दुनिया की नामी-गिरामी ऑडिट फर्म प्राइस वाटरहाउसकूपर्स का एक हिस्सा है, तो वहीं एसआर बाटलीबोई अर्न्स्ट ऐंड यंग की सदस्य है।
आईसीएआई ने इन फर्मों से उनकी गतिविधियों, अंतरराष्ट्रीय गठजोड़ों और देश में उनके परिचालन ढांचे के बारे में जानकारी मांगी है। सत्यम घोटले के मामले में प्राइसवाटरहाउस से जुड़े दो ऑडिटरों ने कथित रूप से सत्यम कंप्यूटर के पूर्व संस्थापक और अध्यक्ष बी. रामालिंग राजू की 7,000 करोड़ रुपये के हेर-फेर में मदद की थी।
वैसे, इस मामले में आईसीएआई ने प्राइसवाटरहाउस के खिलाफ अब तक कोई कदम नहीं उठाया है। इंस्टीटयूट ने इस मामले की जांच के लिए अग्रवाल की अध्यक्षता में सात सदस्यीय उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया है। साथ ही, जरूरी हुआ तो यह समिति नियमों में बदलाव की भी सिफारिश कर सकती है।
जांच की इसी प्रक्रिया के दौरान समिति ने उन दर्जन भर भारतीय सीए फर्मों से जवाब मांगने का फैसला किया है, जिनका विदेशी फर्मों के साथ संबंध है। इसके लिए संस्था ने इन फर्मों से उनके विदेशी फर्मों के साथ समझौते के सारे दस्तावेजों की मांग की है।
इन दस्तावेजों में उनके विदेशी फर्मों के समझौते, विदेशी फर्मों के नाम के इस्तेमाल से जुड़ी शर्तें व नियम, फीस तथा मुनाफे में हिस्सेदारी से जुड़े दस्तावेज, मानव संसाधनों के इस्तेमाल से जुड़े दस्तावेज भी मांगा है।
