अदाणी समूह के चेयरमैन गौतम अदाणी | फाइल फोटो
अदाणी समूह के चेयरमैन गौतम अदाणी ने आगाह किया है कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा का स्वरूप बदल कर रख देगी और देशों और कंपनियों के बीच शक्ति संतुलन दोबारा स्थापित करेगी। उन्होंने भारत से तकनीकी आत्मनिर्भरता को अपने अगले स्वतंत्रता संग्राम के रूप में मानने काआह्वान किया।
सोमवार को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), खड़गपुर के प्लैटिनम जयंती समारोह में अदाणी समूह के चेयरमैन ने कहा कि एआई और संबंधित तकनीकों में नवाचार की गति इतनी तेज है कि आज जो कामयाबी मिलती है वह रातोरात गायब हो जाती है। उन्होंने भारत सरकार और कंपनियों दोनों से ही एक ऐसे युग के लिए तैयार रहने का आग्रह किया जिसमें अल्गोरिद्म, डेटा और बौद्धिक संपदा संप्रभुता का निर्धारण करते हैं।
अदाणी ने छात्रों से भरे एक सभागार में कहा, ‘आज हम जो युद्ध लड़ते हैं वे अक्सर अदृश्य होते हैं। वे खंदकों या बंकरों से नहीं बल्कि सर्वर फार्म में लड़े जाते हैं। हथियार बंदूकें नहीं, एल्गोरिदम हैं। साम्राज्य भूमि पर नहीं, डेटा सेंटरों में बनाए जाते हैं।‘
अदाणी ने इस चुनौती को भारत का दूसरा स्वतंत्रता संग्राम बताया। उन्होंने महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता के लिए राष्ट्र के प्रयास की तुलना औपनिवेशिक शासन के खिलाफ 20 वीं शताब्दी की लड़ाई से की। उन्होंने तर्क दिया कि 1947 में राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त होने के बावजूद भारत अभी भी सेमीकंडक्टर, ऊर्जा और रक्षा प्रणालियों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि लगभग 90 प्रतिशत चिप आयात होते हैं।
उन्होंने आईआईटी खड़गपुर के छात्रों से कहा, ‘आपका नवाचार, आपका सॉफ्टवेयर कोड और आपके विचार आज के हथियार हैं। आप तय करेंगे कि भारत स्वयं अपनी कहानी लिखेगा या तकनीक से जुड़ी आवश्यकताओं के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहेगा।‘
अदाणी ने चेताया कि जैसे ही एआई अन्य एआई का निर्माण, रोबोट दूसरे रोबोट का निर्माण करना शुरू कर देंगे और एक मशीन दूसरी मशीन तैयार करने लगेगी तो पूरे उद्योगों और शिक्षा प्रणालियों को व्यवधान का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि देश जब तक बौद्धिक संपदा निर्माण और तकनीक में आगे नहीं बढ़ेगा तब श्रम से जुड़े कम लागत से जुड़े लाभों से हम वंचित रह जाएंगे।अदाणी ने स्वीकार किया कि भारत का निजी क्षेत्र अनुसंधान और नवाचार में पीछे है। उन्होंने कहा कि बहुत लंबे समय से इसरो और डीआरडीओ जैसे सरकार द्वारा वित्त पोषित संस्थानों पर निर्भर रहा है जबकि उद्योग जगत ने मूल बौद्धिक संपदा बनाने के बजाय कारोबार विस्तार पर ध्यान केंद्रित किया है।