नई दूरसंचार कंपनियों को विभिन्न वित्तीय विकल्प उपलब्ध कराना चीनी उपकरण आपूर्तिकर्ताओं के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है।
भारतीय बाजार के आधे से ज्यादा पर यूरोपीय वेंडरों का कब्जा है। ऐसे में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए चीनी कंपनियों को इस तरह के कदम उठाने पड़ रहे हैं।
हाल में चीनी उपकरण वेंडर जेडटीई ने लूप टेलीकॉम के साथ एक समझौता किया है। इसके साथ ही कंपनी स्वान टेलीकॉम, यूनिटेक और डाटाकॉम से भी उपकरणों की आपूर्ति के लिए बात कर रही है। ये तीनों दूरसंचार क्षेत्र की नई कंपनियां हैं।
जेडटीई को सीडीएमए क्षेत्र की नई कंपनी सिस्तेमा-श्याम से भी ऑर्डर मिला है। अनुमान है कि नए ऑपरेटर संयुक्त तौर पर करीब 1 से 3 अरब डॉलर उपकरणों पर खर्च करेंगे, जो अगले तीन साल में बढ़कर 5 से 6 अरब डॉलर होने की उम्मीद है।
अर्नस्ट ऐंड यंग के दूरसंचार विश्लेषक प्रशांत सिंघल कहते हैं, ”जितने भी उपकरण वेंडर बाजार में हैं, उनके उत्पादों की गुणवत्ता में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है। इसलिए फायदा उसी को मिलेगा जो बेहतर वित्तीय विकल्प उपलब्ध कराएगा”
जेडटीई का कहना है कि उसे मौजूदा कंपनियों के मुकाबले इसलिए फायदा मिल रहा, क्योंकि वह बेहतर वित्तीय विकल्प मुहैया करा रही हैं। कंपनी ने चाइना डेवलपमेंट बैंक के साथ एक समझौता किया है। इस समझौते के तहत कंपनी को 15 अरब डॉलर तक का कर्ज मिल सकता है। इसमें जेडटीई के विदेशी कार्यों के लिए भी कर्ज दिए जाने की व्यवस्था है।
जेडटीई टेलीकॉम इंडिया के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डी. के. घोष कहते हैं, ”नए दूरसंचार ऑपरेटरों को सरकार की तरफ से तय किए गए कई मानदंडों को पूरा करना है। इसे पूरा करने के लिए हम कंपनियों को बेहतर वित्तीय सुविधाएं दे रहे हैं।
वैश्विक वित्तीय संकट की वजह से कई ऑपरेटर शोध और विकास में खर्च करने की स्थिति में नहीं है, लेकिन चीनी कंपनियां इस काम के लिए अभी भी सक्षम हैं।” जेडटीई की चीनी सहयोगी हुआवेई पहले ही सिस्टेमा-श्याम के साथ एक समझौता कर चुकी है और उसकी नजर अब दूसरे नए ऑपरेटरों पर है।
नए ऑपरेटरों से ऑर्डर हासिल करने के अलावा, जेडटीई मौजूदा ऑपरेटरों से भी ऑर्डर पाने में सफल रही है। बीएसएनएल, टाटा टेलीसर्विसेज, रिलायंस कम्युनिकेशंस, वोडाफोन और आइडिया सेल्युलर से कंपनी को नए ऑर्डर मिले हैं। कंपनी का राजस्व पिछले साल की तुलना में 30 फीसदी बढ़कर 1 अरब डॉलर पर पहुंच गया है।
वहीं हुआवेई का भारतीय कारोबार 2008 में 1.5 अरब डॉलर पर पहुंच गया है, जबकि 2006 में यह 18 करोड़ डॉलर था। अल्काटेल-ल्यूसेंट के भारतीय इकाई के प्रबंध निदेशक विवेक मोहन कहते हैं, ”चीनी कंपनियां तगड़ी प्रतिस्पर्धा देने वाली हैं।
