राजधानी से सटी औद्योगिक नगरी नोएडा में भी मंदी पांव पसार चुकी है। इस वजह से पिछले आठ महीनों के दौरान फैक्ट्रियों के किराए में भी करीब 50 फीसदी की गिरावट आ चुकी है।
कारोबारी अपने पैसे को निकालने के लिए फैक्ट्रियां बेचने के लिए प्रॉपर्टी डीलरों के दरवाजों पर लगातार दस्तक दे रहे हैं। लेकिन आलम यह है कि 25-30 फीसदी की गिरी हुई कीमत पर भी उनकी फैक्ट्रियां नहीं बिक पा रही हैं।
नोएडा उद्यमी संघ (एनईए) के मुताबिक नोएडा में कुल 9,000 औद्योगिक इकाइयां हैं। पिछले साल मई-जून के महीने तक इनमें से 4,000 फैक्ट्रियां काम कर रही थीं। लेकिन, सितंबर-अक्टूबर से यहां की फैक्ट्रियों में काम घटने लगा और इस साल जनवरी तक 1,300 फैक्ट्रियां बंद हो गईं।
एनईए के अध्यक्ष राजेश कटियाल कहते हैं, ‘आने वाले समय में अभी और फैक्ट्रियों पर तालाबंदी होगी। किराये पर चल रही फैक्ट्रियां भी अपना बोरिया बिस्तर समेट रही हैं। निर्यात होने वाला सामान बनाने वाली इकाइयों के पास कोई काम नहीं है।’
बीस सालों से नोएडा में औद्योगिक इकाई चला रहे एवं एनईए के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र नाहटा कहते हैं, ‘उद्यमी किसी भी तरीके से अपनी फैक्ट्रियों को बेच कर पैसा निकालना चाह रहे हैं। इसकी वजह है कि जब प्रॉपर्टी का बाजार तेज था तो कई उद्यमियों ने बंद पड़ी फैक्ट्रियों को खरीद कर उसे किराए पर चढा दिया था या बाद में अच्छी कीमत पर बेचने के लिए उसे अपने पास रख लिया। अब फैक्ट्रियां ही नहीं चल पा रही हैं, तो उनकी प्रॉपर्टी की क्या कीमत रह गयी?’
नोएडा स्थित औद्योगिक इकाइयों की खरीद-फरोख्त से जुड़े प्रॉपर्टी डीलर विजय वासन कहते हैं, ‘पिछले तीन-चार महीनों से फैक्ट्री बेचने वालों की चाह रखने वालों की तादाद में 25 फीसदी तक का इजाफा हुआ है लेकिन बाजार में कोई खरीदार नहीं है।
छह महीने पहले तक 20 रुपये प्रति फुट के हिसाब से मिलने वाले किराए में करीब 50 फीसदी की कमी आई है।’ फैक्ट्री मालिकों ने अपनी फैक्ट्री को खाली होने से बचाने के लिए खुद ही लगातार किराए में कटौती कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि एक्सप्रेस हाईवे के पास सूचना तकनीक के लिए सुरक्षित रूप से सैकड़ों इकाइयों का निर्माण किया गया, लेकिन सबके सब खाली पड़े हैं।
ग्रेटर नोएडा उद्यमी संघ के अध्यक्ष आदित्य घिल्डियाल कहते हैं कि तालाबंदी कीशिकार अधिकतर छोटी इकाइयां हैं जो कि जॉब वर्क या निर्यात के काम से जुड़ी थीं। नाहटा कहते हैं कि इक्का-दुक्का सामान बनाने वाली इकाइयों को छोड़कर बाकी सभी की हालत खराब है। जल्द ही वे इकाइयां भी बंद हो जाएगी जहां सिर्फ नाम के लिए काम हो रहा है।
फैक्ट्रियां बेचने को तरजीह दे रहे हैं मालिक
कीमतें 30 फीसदी तक कम, लेकिन खरीदार नदारद
किराए की कीमतों में भी आ रही है कमी
धंधे को अपने हाथ में लेने से कतरा रहे हैं फैक्ट्री मालिक
तेजी से बंद हो रही हैं औद्योगिक इकाइयां
निर्यात के लिए सामान बनाने वाली इकाइयां सबसे ज्यादा प्रभावित
