तीन वित्तीय संस्थान- आईडीबीआई बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और आईएल ऐंड एफएस लिमिटेड ने कंपनी लॉ बोर्ड (सीएलबी) को यह बताया कि वे हैदराबाद की कंपनी मायटास का बोर्ड सदस्य बनने के इच्छुक नहीं हैं।
तीनों वित्तीय संस्थानों के वकीलों ने सीएलबी के समक्ष सुनवाई के दौरान कहा कि वे सरकार द्वारा नियुक्त स्वतंत्र निदेशकों वाले बोर्ड का समर्थन करते हैं। हालांकि सीएलबी ने कहा था कि अगर ये वित्तीय संस्थान चाहें, तो अपने नुमाइंदे कंपनी बोर्ड में शामिल कर सकते हैं।
सीएलबी ने इस मामले पर अपना निर्णय सुरक्षित रखा है, जिसमें सरकार ने सत्यम के संस्थापक रामलिंग राजू के बड़े बेटे की कंपनी के बोर्ड को भंग करने के लिए याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में सरकार ने यह सलाह दी थी कि मायटास बोर्ड में चार स्वतंत्र निदेशक शामिल किए जाएं।
सरकार नए बोर्ड के गठन के तहत तीन निदेशकों की नियुक्ति मायटास इन्फ्रा से करेगी, जबकि चार स्वतंत्र निदेशक नियुक्त किए जाएंगे, ताकि नियंत्रण कंपनी के हाथ में न रहे।
जब सरकार ने मायटास के बोर्ड को भंग करने की बात कही थी, तो सीएलबी के चेयरमैन बाला सुब्रमण्यन ने कहा था कि वे इसकी अनुमति नहीं देंगे। सीएलबी ने यह भी सुझाव दिया कि बोर्ड के चेयरमैन की नियुक्ति चार स्वतंत्र निदेशकों में से की जानी चाहिए।
मायटास इन्फ्रा के वकील के मुताबिक कंपनी के मामलों के प्रबंधन में बोर्ड की तरफ से किसी प्रकार की अनियमितता के कोई सबूत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सिर्फ इस बात को ध्यान में रखते हुए कि कंपनी का प्रमोटर रामलिंग राजू के परिवार से आता है, यह मामला मजबूत नहीं हो जाता है।
वकील ने कहा कि मायटास केंद्र और राज्य सरकार की 6800 करोड़ रुपये के इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर काम कर रही है। मायटास इन्फ्रा रामलिंग राजू के बड़े बेटे बी. तेजा राजू की कंपनी है, जिसने सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज के खाते में हुई धोखाधड़ी की बात स्वीकार की थी।
सरकार ने सीएलबी के समक्ष कंपनी के खिलाफ इस आधार पर याचिका दायर की थी कि कंपनी बहुत सारी धोखाधड़ी में शामिल है।
