एमेजॉन, टाटा समूह, फ्लिपकार्ट, पेटीएम और स्नैपडील सहित कई शीर्ष कंपनियों ने सरकार से संपर्क साध कर ई-कॉमर्स पर उपभोक्ता संरक्षण में प्रस्तावित बदलावों के अध्ययन के लिए और अधिक समय देने की मांग की है। इन कंपनियों ने सरकार से टिप्पणी देने की समयसीमा को कुछ हफ्ते या कम से कम 20 दिन तक आगे बढ़ाने का अनुरोध किया है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने प्रासंगिक साझेदारों से टिप्पणी मंगाई थी और उन्हें अपनी बात पहुंचाने के लिए दो हफ्तों की समयसीमा दी गई थी जिसकी मियाद 6 जुलाई को समाप्त हो रही है।
इस मामले से अवगत सूत्रों ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि शनिवार को उद्योग की कुछ कंपनियों के साथ आभासी बैठक में ई-कॉमर्स कंपनियों ने सरकार से कहा कि प्रगतिशील नियमन के लिए ई-कामर्स नियमों के मसौदे पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। उन्होंने चिंता जताई कि मौजूदा आकार और स्वरूप में नए नियमों का उनके कारोबारी मॉडल पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
सीआईआई, फिक्की, आईएएमएआई, नैसकॉम, आईबीएचए, यूएसआईएसपीएफ सहित अधिकांश संघों ने समग्र रूप से प्रतिवेदन जमा कराने के लिए जुलाई तक का समय मांगा है। उक्त संघों ने चिंताओं को रेखांकित किया। इस बैठक में ई-कामर्स कंपनियों द्वारा व्यक्तिगत हिस्सेदारी कम रही और उन्होंने अपनी बात संघों के माध्यम से सरकार तक पहुंचाई है।
एक सूत्र ने कहा उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय और सरकार की निवेश संवद्र्घन इकाई इन्वेस्ट इंडिया की ओर से उद्योग के कार्यकारियों के साथ आयोजित बैठक के दौरान, ‘उद्योग से जुड़ी सभी कंपनियों ने मुद्दे को समझने के लिए एक सुर में और समय दिए जाने की मांग की।’
सूत्र ने कहा, ‘विशेष तौर पर टाटा ने सरकार द्वारा इन नियमों में शामिल किए गए बातों को समझने और मशविरा करने के लिए कम से कम 20 दिनों की मांग की। अन्य कंपनियों ने भी इस पर अपनी सहमति जताई।’
सूत्रों के मुताबिक टाटा संबंधित पक्ष के पहलुओं को लेकर बहुत मुखर नजर आई थी। टाटा संस की कार्यकारी पूर्णिमा संपथ ने और अधिक समय दिए जाने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि नए नियमों का टाटा के ब्रांड पर बड़ा असर होगा और मसौदे के विभिन्न खंडों के असर के आकलन तथा इस पर अपना गंभीर मत जाहिर करने के लिए उन्हें जुलाई के अंत तक के समय की जरूरत है। मसौदे के नियमों में कहा गया है कि संबंधित पक्ष मार्केटप्लेस में कोई लेनदेन नहीं कर सकते हैं।
सूत्र ने कहा, ‘इस नियम का मतलब हुआ कि स्टारबक्स जिसका टाटा के साथ संयुक्त उद्यम है टाटा के मार्केटप्लेस पर बिक्री नहीं कर सकती है।’
उन्होंने कहा, ‘साथ ही एमेजॉन का अपनी विक्रेता कंपनियों अपारियो और क्लाउडटेल में अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी है और वे एमेजॉन पर बिक्री नहीं कर सकती हैं। मार्केटप्लेस से इन बड़ी कंपनियों के हटने पर कीमतें काफी बढ़ जाएंगी। ऐसे में यह उपभोक्ताओं को किस प्रकार से लाभ पहुंचाने वाला है?’
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि सरकार उद्योग के साझेदारों की ओर से मिली टिप्पणियों का अध्ययन कर रही है और नियमों को अंतिम रूप देने से पहले उपयुक्त बदलावों को इसमें शामिल करने पर विचार किया जाएगा। ई-कामर्स के क्षेत्र में नियामकीय व्यवस्था का पेच कसने के मकसद से लाए जा रहे उपभोक्ता संरक्षण नियमों में सरकार बदलाव करने को लेकर तैयार है।
उक्त अधिकारी ने कहा, ‘फिलहाल हम उनकी प्रतिक्रिया और इन कंपनियों द्वारा उठाई गई चिंताओं पर नजर बनाए हुए हैं। हम उसी के अनुरूप कदम उठाएंगे।’
उद्योग से जुड़ी कंपनियों ने ई-कॉमर्स की परिभाषा को लेकर भी चिंता जताई है जिसके बारे में कहा गया है कि लॉजिस्टिक्स या पूर्ति में सहयोग करने वाली कंपनियों को भी ई-कॉमर्स कंपनी के तौर पर समझा जाएगा।
उद्योग के एक अधिकारी ने कहा, ‘हालांकि, रिलायंस ने कहा कि वह बदलाव का स्वागत करती है और सरकार की चिंताओं तथा उपभोक्ताओं के बड़े हित में उठाए गए कदम की प्रशंसा करती है।’